दिल ही दुखाने के लिए आ

अहमद फ़राज़ की ग़ज़ल

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रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ, फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

पहले से मरासिम1 न सही, फिर भी कभी तो
रस्मो-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे ख़फ़ा है, तो ज़माने के लिए आ

अब तक दिले-ख़ुशफ़हम2 को हैं तुझसे उमीदें
ये आख़िरी शम्ऐं भी बुझाने के लिए आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़ते-गिरिया3 से भी महरूम
ऐ राहते-जां मुझको रुलाने के लिए आ

कुछ तो मेरे पिन्दारे-मुहब्बत4 का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

माना कि मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ

जैसे तुम्हें आते हैं न आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ

1. मेल-जोल, 2. शीघ्र बात समझ जाने वाला दिल 3. आँसुओं का स्वाद, 4. प्यार का ख़याल
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