वृंदावन। रंगभरी एकादशी के बाद श्रीबांकेबिहारी धाम में परंपरागत रूप से होली उत्सव शुरू हो जाता है। चारों तरफ केसर टेसू के फूलों से केसर रंग की धूम नजर आती है और वातावरण सुगंधित हो जाता है। मंदिर में टेसू के रंगों के साथ-साथ चोवा, चंदन और गुलाल के साथ होली खेली जाती है। बांकेबिहारी के दर्शन के लिए दूरदराज से लोग आते है और यहां अबीर-गुलाल की मस्ती से सराबोर हो जाते हैं।
होली का नाम सुनते ही मन में एक गीत घुमड़ आता है, 'आज ब्रज में होली रे रसिया...'। मथुरा-वृंदावन की गलियों में होली रास और रंग की तैयारी 1 महीने पहले से प्रारंभ हो जाती है। देश-विदेश के पर्यटक होली पर बांकेबिहारी की नगरी में पहुंच जाते हैं और होली की मस्ती उनके कण-कण में नजर आती है।
ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में मंगलवार को नजारा एकदम बदला हुआ दिखाई दिया। मंदिर के पट खुले और श्रृंगार आरती के बाद वहां के पुजारियों और सेवाधिकारी ने ठाकुरजी के गालों पर गुलाल लगाया। ठाकुरजी के गालों पर गुलाल लगते ही मंदिर में अबीर और गुलाल के साथ होली की मस्ती का अद्भुत नजारा नजर आने लगा। मंदिर परिसर में जगमोहन के सेवादार टेसू के रंग की बरसात कर रहे थे जिसे देखकर श्रद्धालुओं का मन बरबस ठाकुरजी के चरणों में शीश नवाने के लिए आतुर हो उठा।
देश के कोने-कोने से आए भक्तगण ठाकुरजी के प्रसादस्वरूपी रंग में रंगने को आतुर नजर आए। मंगलवार 9 बजे सुबह से दोपहर तक जब राजभोग आरती का समय हुआ, तब होली की खुमारी भक्तों के सिर चढ़कर बोल रही थी। होली की मस्ती में भक्त समय भूल गए और मंदिर परिसर से बाहर नहीं आना चाहते थे। बस वे अपने ठाकुरजी के साथ होली का भरपूर आनंद लेना चाहते थे। शाम को जब मंदिर के कपाट खुले तो मंदिर में होली का रंगरास फिर से शुरू हो गया।