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ज्योति मौर्य का एसडीएम होना क्या अपराध है?

हमें फॉलो करें ज्योति मौर्य का एसडीएम होना क्या अपराध है?

हिमा अग्रवाल

, गुरुवार, 6 जुलाई 2023 (15:47 IST)
UP PCS officer Jyoti Maurya: वक्त का पहिया बहुत तेजी से बदल रहा है। एक महिला एसडीएम ने पति छोड़ा तो पुरुष समाज बिलबिलाने लगा। मीडिया को यह ऐसी चटकारेदार खबर लगी जिसे दर्शकों और पाठकों को बेचा जा सके। टीआरपी के लिए फिल्मी स्टाइल में बुलेटिन निर्मित हुए और किस्सागोई अखबारों की सुर्खियां बनी। सोशल मीडिया पर भी खूब मीम्स वायरल हुए।
 
कुछ ऐसे वीडियो वायरल हुए जिसमें फर्श पर बैठी एक महिला अपने पति को अपमानित कर रही है और उस महिला की शब्दावली निश्चित ही निंदनीय है, लेकिन महिला का चेहरा उस वायरल वीडियो में ब्लर है। एसडीएम महिला ने इस वीडियो को फेक बताया तो उसके पति ने भी अब तक इसकी पुष्टि नहीं की लेकिन भीम आर्मी ने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करने का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया और शिकायत भी दर्ज करा दी।
 
मामला उत्तर प्रदेश की पीसीएस अधिकारी ज्योति मौर्य का है। ज्योति का विवाह 2010 में प्रयागराज के आलोक मौर्य से हुआ था। उस समय ज्योति ग्रेजुएशन कर रही थीं। शादी के बाद ससुराल में रहते ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की और 2015 में यूपी पीसीएस में उसका चयन हो गया। उसके पति का कहना है कि उसने अपनी पत्नी को पढ़ाने और अधिकारी बनाने के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराई। उसकी कोचिंग की महंगी फीस अपनी हैसियत न होते हुए लोन पर लेकर भरी। लेकिन अब वह इसलिए तलाक देना चाहती है क्योंकि बीच में एक तीसरा व्यक्ति आ गया है।
 
तलाक की नौबत : सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है कि एसडीएम ज्योति के पति आरोप लगा रहे हैं कि गाजियाबाद में होमगार्ड कमांडेंट के पद पर तैनात अधिकारी के साथ उसे एक होटल में 'रंगेहाथ' पकड़ लिया था। यहां 'रंगेहाथ' पकड़ने जैसा शब्द भी आपत्तिजनक है। यदि वह किसी व्यक्ति के साथ होटल में चाय पीने या भोजन करने चली गई तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट गया या सिर्फ इतनी सी बात पर कोई लांछन लगाना जायज है। आलोक को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वह वर्तमान में प्रशासनिक अधिकारी है और उस पर इस तरह की बंदिशें भी नहीं लगाई जा सकतीं। फिर क्या यह मानसिक स्तर का मामला है जिसकी परिणति दोनों को तलाक के पायदान तक ले गई है। 
 
झूठ बोलकर हुई शादी : जिन रिश्तों की बुनियाद झूठ पर टिकी होती है वह लंबे समय तक चल नहीं सकते। कुछ ऐसा ही है इस कहानी में भी हुआ। शादी के समय आलोक को ग्राम विकास अधिकारी बताया गया था बाद में पता चला कि वह ग्राम पंचायत में चतुर्थ श्रेणी का सफाई कर्मचारी है। छोटी-सी दुकान चलाकर परिवार की गुजर बसर करने वाले ज्योति के पिता का कहना है कि वर पक्ष ने शादी के कार्ड में भी आलोक के आगे ग्राम पंचायत अधिकारी छपवा कर उन्हें धोखे में रखा था।
 
मिली जानकारी के मुताबिक ज्योति पक्ष का यह भी आरोप है कि आलोक तलाक के एवज में 50 लाख रुपए और घर की मांग कर रहा है। ज्योति आलोक पर निजी चैट लीक करने का भी आरोप लगा रही है। हालांकि आधिकारिक तौर पर ज्योति ने कहा है कि वह इस मसले पर मीडिया को कोई बयान नहीं देगी। आठ साल की दो जुड़वा बेटियों की मां ज्योति इसे एकदम निजी मामला बताते हुए कहती हैं कि यह मैट्रिमोनियल केस है। मुझे जो भी कहना है कोर्ट में कहूंगी। बहरहाल फिल्मी स्टाइल की यह कहानी बरसात के मौसम में लोगों को चाय पकौड़ी जैसा जायका दे रही है।
 
इस तरह कहानियां सुर्खियों में : अब मीडिया में इस घरेलू मामले के सामाजिक प्रभाव वाली कहानियां भी खूब प्रसारित हो रही हैं। एक अखबार ने तो गिनती भी कर ली कि 135 ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें युवकों ने अपनी पत्नी की पढ़ाई इस घटना की खबरें पढ़ने या सुनने के बाद बंद करा दी।
 
वैसे बदलते दौर में ऐसे मामले भी प्रकाश में आते हैं जिनमें विवाह के 25 साल बाद भी जब बच्चे सेटल हो जाने के बाद भी लोगों को रिश्ता खत्म करने में कोई संकोच नहीं होता। फिर, इस मामले में इतनी क्यों हाय तोबा मची हुई है। इसकी वजह पत्नी का अधिकारी होना है या पुरुष समाज मौका देखकर केंचुल बदल रहा है।
 
पुरुष महिला को छोड़ देता है तो पत्नी कभी नहीं कहती क्यों उसे बनाने में उसने पूरा दिन रात एक कर दिया। इसे वे अपनी ड्यूटी समझती हैं। सोसाइटी में भी प्रश्न नहीं उठाया जाता कि क्यों छोड़ दिया? ससुराल वाले यही कहते हैं कि बहुत बेकार थी! हो सकता है घर का सारा काम करने के बाद उसने बचे हुए समय में दिन-रात उसने पढ़ाई की हो। हो सकता है ससुराल वालों के ताने सुनने के बाद भी उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी हो। इसलिए कुछ बोलने की जगह ससुरालीजन शांत रहे हों। 
 
ज्योति मौर्य ने दर्ज कराया मामला : मिली जानकारी के मुताबिक प्रयागराज के धूमनगंज थाने में एसडीएम ज्योति मौर्य ने अपने पति आलोक मौर्य और उनके परिवार वालों के खिलाफ केस दर्ज कराया है। हालांकि इसका अभी कोई अधिकारिक बयान नही मिला है।
 
'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ फिर बेटी ब्याहो', योग्य वर के साथ। ताकि न ससुराल जाकर पढ़ने की नौबत आए और न वधू ससुराल छोड़े। लड़कियों को चाहिए कि वे अपने मायके को छोड़ने से पहले अपनी आकांक्षाओं के अनुसार पूरी पढ़ाई कर करियर बनाएं और फिर शादी करने की सोचें। यह इसलिए जरूरी लगता है कि स्त्री अस्मिता जैसे शब्द आज के समाज में भी अस्तित्वहीन लगते हैं। सवाल उठता है कि ज्योति का एसडीएम होना भी क्या अपराध है!

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