लखनऊ। आज हम आपको एक ऐसी फसल के बारे में बताएंगे जिस फसल को नकदी फसल के नाम से भी जाना जाता और यह फसल किसानों को समृद्ध बनाने में भी बेहद सहयोगी होती है। नकदी फसल के बारे में जानने के लिए 'वेबदुनिया' ने चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के प्रभारी अधिकारी डॉक्टर जगदीश कुमार से बातचीत की।
उन्होंने बताया कि कपास को नकदी फसल के नाम से भी जाना जाता है अन्य फसलों की अपेक्षा इसमें लागत बेहद कम लगती है और इसके पीछे एक और मुख्य वजह यह है कि इस फसल को तत्काल प्रभाव से बेचना बेहद आसान होता है और दाम भी अच्छे मिलते हैं क्योंकि कपास के रेशे को कंबल,दरियां,फर्श आदि के निर्माण में उपयोग किया जाता है तथा कपास के रेशों से सूती वस्त्र,मेडिकल कार्य हेतु प्रयोग तथा होजयरी के सामान का निर्माण किया जाता है।
उन्होंने बताया कि कपास से निकलने वाले बिनौलों से पशुओं का आहार भी तैयार किया जाता है। डॉक्टर जगदीश कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कपास का क्षेत्रफल लगभग 6000 हेक्टेयर है। प्रदेश में वर्ष 2018-19 में रुई की उत्पादकता 343 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा कपास की उत्पादकता 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018-19 में कुल रुई का उत्पादन 1951 टन तथा कपास का उत्पादन 64,383 टन था।
उन्होंने बताया कि किसानों के खेतों में इस समय कपास की फसल लगभग एक महीने की हो गई है।इसलिए अब कपास की फसल में खरपतवार प्रबंधन बहुत जरूरी है इसके लिए किसान भाई खुरपी की सहायता से खरपतवार निकालने तथा घने पौधों का विरलीकरण कर दें।
उन्होंने बताया कि वर्षाकाल के समय खेत में पर्याप्त जल निकास की सुविधा हो जिससे वर्षा का पानी खेत में ठहरने न पाए।कलियां,फूल व गूलर बनते समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।कपास की फसल में कीट प्रबंधन के बारे में उन्होंने बताया कि गूलर भेदक की रोकथाम के लिए क्विनालफास 25 ईसी 2 लीटर दवा को 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर दो-तीन सप्ताह के अंतराल पर तीन या चार बार छिड़काव करें।
उन्होंने बताया कि कपास की फसल में साकाडू झुलसा एवं अन्य परडी झुलसा बीमारी लगती है जिसकी रोकथाम के लिए डेढ़ किलोग्राम ब्लाईटॉक्स 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी को कीटनाशक दवाइयों के साथ मिलाकर छिड़काव करें।