लखनऊ। आज हम आपको ऐसी जानकारी देने जा रहे हैं जिसके बारे में जानने की इच्छा आज की युवा पीढ़ी में बेहद अधिक है। ज्यादातर देखा गया है कि युवा घड़ियाल और मगरमच्छ की बारे में जानने को लेकर उत्साहित रहते हैं और कहां पर पाए जाते हैं, ऐसे कई सवाल उनके मन में चलते हैं। इसी को लेकर हमने एक पड़ताल की है और इसमें जानकारी प्राप्त हुई है कि सर्वाधिक घड़ियाल और मगरमच्छ उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश के बीच में पाए जाते हैं। आइए हम आपको बताते हैं कि इन्होंने कहां पर अपना ठिकाना बना रखा है?
चंबल नदी में है घड़ियालों और मगरमच्छों का आशियाना : मिली जानकारी के अनुसार उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के ठेठ बीहड़ों के बीच विचरण करने वाली स्वच्छ नदी चंबल में भारी संख्या में घड़ियालों और मगरमच्छों ने अपना आशियाना बना लिया है। ओरैया, जालौन, इटावा व भिंड की सीमा पर पचनद तीर्थस्थल है। यहां 5 नदियों यमुना, चंबल, क्वारी, सिंध और पहुज का संगम होता है। अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव भीम ने यहां भगवान शिवलिंग स्थापित कर पूजा-अर्चना की थी।
300 से ज्यादा घड़ियाल और मगरमच्छ : पचनद की एक नदी है चंबल जिसका पानी अन्य चारों नदियों से ज्यादा साफ और गहरा है। स्वच्छ पानी के चलते ही इस क्षेत्र में चंबल नदी में बड़ी संख्या में घड़ियालों, मगरमच्छों और डॉल्फिनों को आसानी से देखा जा सकता है। मगरमच्छ और घड़ियाल कभी-कभी नदी से बाहर तलहटी में आ जाते हैं और अंडे भी बाहर ही देते हैं। जानकारों की मानें तो पचनद से लेकर इटावा के चकरनगर तक चंबल नदी में घड़ियाल और मगरमच्छ देश में सबसे ज्यादा यहीं पाए जाते हैं। अकेले इस क्षेत्र (पचनद से चकरनगर) की चंबल नदी में 300 से ज्यादा घड़ियाल और मगरमच्छ पाए जाते हैं।
240 घड़ियालों का जन्म : हाल ही में मादा घड़ियालों ने लगभग 240 घड़ियालों को जन्म दिया है। घड़ियालों और मगरमच्छों के डर से सामान्य लोग इस क्षेत्र में चंबल के किनारे नहीं जाते हैं। मगरमच्छों और घडियालों का रैनबसेरा हमेशा स्वच्छ और गहरे पानी में ही होता है इसलिए इनके रहने और विचरने की सीमा पचनद के पहले ही समाप्त हो जाती है, क्योंकि चंबल के अलावा अन्य चारों नदियां प्रदूषित हैं।
पर्यावरणविद दीपक विश्नोई का कथन : पर्यावरणविद दीपक विश्नोई का कहना है कि पचनद क्षेत्र का वातावरण बहुत ही सुरम्य और सुंदर है। चंबल राजस्थान से मध्यप्रदेश होते हुए उत्तरप्रदेश में यमुना में मिलती है। जहां यह मिलती है उस क्षेत्र को पचनद कहते हैं, क्योंकि यहीं पर सिंधु, पहुच और क्वारी नदियां भी यमुना में मिलती हैं। पचनद मुख्य रूप से ओरैया, इटावा, जालौन व भिंड जनपद की सीमाओं पर स्थित है। लेकिन पिछले 7-8 सालों में चंबल नदी में पानी का बहाव लीन पीरियड (ग्रीष्म काल व शीत ऋतु) में गिरता जा रहा है जिसका मुख्य कारण मध्यप्रदेश में कई स्थानों गांवों व शहरी क्षेत्र में जलापूर्ति के लिए चंबल का जल लगातार लिया जा रहा है।
विश्नोई ने कहा जिस कारण जलीय जीव-जंतुओं को जल का आवश्यक उत्प्रवाह जिसे मिनिमम एनवॉयरन्मेंट फ्लो भी कहते हैं, वो नहीं मिल पा रहा है। शायद उस उत्प्रवाह का अध्ययन या विश्लेषण न हुआ हो जबकि उसका अध्ययन या विश्लेषण करके वो ही फ्लो चंबल में सदैव मेन्टेन रहना चाहिए ताकि यहां के जलीय जीव-जंतुओं की पूरी सुरक्षा की जा सके। कोटा बैराज से कितना फ्लो छोड़ा जाना चाहिए, उसका मुख्य रूप से अध्ययन होना चाहिए और कोटा बैराज से उतना फ्लो सदैव चंबल में छोड़ा जाना चाहिए, विशेषकर लीन पीरियड में यह उत्प्रवाह बेहद जरूरी है।
विश्नोई ने बताया कि 1979 में भारत सरकार द्वारा इस क्षेत्र को सेंचुरी घोषित किया गया था। चंबल नदी के पूरे सेंचुरीच क्षेत्र (पचनद से वाया आगरा) में लगभग 1,800 घड़ियाल, 600 मगरमच्छ और 100 के करीब डॉल्फिन हैं। जलीय जीव-जंतुओं का यह एक तरह से केंद्र है। यहां भारत की किसी भी नदी से ज्यादा घड़ियाल हैं और इनको संरक्षित तभी किया जा सकता है, जब पानी का प्रवाह लगातार रहे और इनका शिकार न हो।
पचनद पर कालेश्वर महादेव का सिद्ध मंदिर : उन्होंने बताया कि पचनद पर कालेश्वर महादेव का सिद्ध मंदिर है जिस कारण यहां का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। यहां पर अन्य कई छोटे-बड़े तीर्थस्थल भी हैं। यह क्षेत्र महाभारत काल से भी जुड़ा है। किंवदंती है कि कालेश्वर महादेव की स्थापना पांडव भीम ने पूजा-अर्चना कर की थी। यहां की और भी कई कहानियां प्रचलित हैं। बकासुर का वध भी यहीं पर हुआ था जिस कारण एक स्थान का नाम बकेवर है, जो इटावा में है। धार्मिक के साथ-साथ जलीय जीव-जंतुओं के प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पचनद का यह क्षेत्र है।