उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद में यति नरसिंहानंद फाउंडेशन को कथित धर्म संसद आयोजित करने की राज्य सरकार के अनुमति देने के मामले को कई पूर्व वरिष्ठ नौकरशाहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अदालत की अवमानना करार देते हुए राज्य की पुलिस और संबंधित जिला प्रशासन के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस अवमानना याचिका पर तत्काल सुनवाई की अधिवक्ता प्रशांत भूषण की गुहार पर विचार करने का सोमवार को आश्वासन दिया और उन्हें याचिका के संबंध में अपने अनुरोध ईमेल के जरिए भेजने को कहा।
यह याचिका 17 से 21 दिसंबर के बीच गाजियाबाद में यति नरसिंहानंद फाउंडेशन द्वारा आयोजित कथित धर्म संसद की अनुमति देने के मामले में दायर की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने गाजियाबाद जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर तत्काल सुनवाई की गुहार लगाई है।
याचिकाकर्ताओं में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के सेवानिवृत्त अधिकारी अरुणा रॉय, सेवानिवृत्त आईएफएस अशोक कुमार शर्मा, देब मुखर्जी और नवरेखा शर्मा के अलावा योजना आयोग की पूर्व सदस्य सईदा हमीद और सामाजिक शोधकर्ता और नीति विश्लेषक विजयन एम जे शामिल हैं।
उन्होंने अपनी याचिका दावा किया कि गाजियाबाद में कथित धर्म संसद की अनुमति देना शीर्ष अदालत के आदेशों की जानबूझकर अवमानना का मामला है। याचिका में कहा गया है शीर्ष अदालत अदालत ने सभी सक्षम और उपयुक्त अधिकारियों को सांप्रदायिक गतिविधियों और नफरत भरे भाषणों में लिप्त व्यक्तियों या समूहों के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
याचिका में दावा किया गया, “यह यति नरसिंहानंद फाउंडेशन द्वारा 17-21 दिसंबर के बीच गाजियाबाद में आयोजित की जा रही धर्म संसद के मद्देनजर है। इस संसद की वेबसाइट और विज्ञापनों में इस्लाम के अनुयायियों के खिलाफ कई सांप्रदायिक बयान शामिल हैं, जो मुसलमानों के खिलाफ हिंसा भड़काते हैं।”
शीर्ष अदालत ने 28 अप्रैल, 2023 को शाहीन अब्दुल्ला की एक रिट याचिका पर सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को बिना किसी शिकायत के नफरत भरे भाषण के मामलों में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए, 153बी, 295ए और 506 आदि के तहत स्वतः संज्ञान लेते हुए आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का निर्देश दिया था। इनपुट एजेंसियां