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कौन हैं यूपी के वनटांगिया, जिनके बीच हर साल मनती है CM योगी की दीपावली

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गिरीश पांडेय

उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में एक प्रमुख शहर है गोरखपुर। प्राचीन काल से ऐतिहासिक अहमियत वाला यह शहर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जनपद भी है। साथ ही मुख्यमंत्री जिस नाथ पंथ से संबधित हैं उसका मुख्यालय माना जाने वाला गोरखनाथ मंदिर एवं मठ भी यहीं स्थित है। योगी इस मठ के पीठाधीश्वर भी हैं। 
 
गोरखपुर से ही लगे कुसम्ही जंगल हैं। इसी में स्थित है वनटांगिया बस्ती 'जंगल तिकोनिया नम्बर तीन' पिछले कई वर्षों से योगी के दीपावली की शुरुआत इसी गांव से होती है। इस दिन सुबह की रूटीन दिनचर्या के बाद योगी इस बस्ती में अपने समर्थकों के साथ जाते रहे हैं। यहां प्राइमरी स्कूल के अस्थाई ढांचे में वह बच्चों एवं स्थानीय लोगों से मिलते हैं।
 
कुल मिलाकर माहौल गांव के किसी स्कूल के आयोजन जैसा होता था। बच्चों को सुनने, दुलारने एवं उनको पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के बाद सबको स्कूली बैग, साल भर के लिए पढ़ाई के उपयोग में आने वाली स्टेशनरी, मिठाई और दीपावली के लिए आतिशबाजी के कुछ सामान देते थे। मंदिर वापस आने के पहले अमूमन उनका एक पड़ाव बेतियाहाता स्थित चन्द्रलोक कुष्ठाश्रम होता था। वहां भी वनटांगिया बस्ती जैसा ही कार्यक्रम होता था।
 
मुख्यमंत्री बनने के बाद भी वनटांगिया बस्ती में जाने का सिलसिला उसी तरह जारी है। अलबत्ता पद के अनुसार आयोजन की भव्यता बढ़ गई है। साथ ही अब तक के कार्यकाल में मुख्यमंत्री ने इस बस्ती को इतना दिया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। 
 
2009 में पहली बार बस्ती में योगी ने मनाई दिवाली : वर्ष 2009 से बतौर गोरखपुर के सांसद योगी का दीपावली के दिन यहां की वनटांगिया बस्ती में जाना शुरू हुआ। उसके बाद आम लोगों को इस बस्ती के बारे में पता चला। उस समय तक इनकी बस्तियों को राजस्व गांव का दर्जा तक नहीं हासिल था। इनको मतदान का भी अधिकार भी नहीं था। एक तरीके से यह आजाद भारत के गुलाम नागरिक थे। वोट देने का अधिकार नहीं होने से किसी जनप्रतिनिधियों को इनकी फिक्र भी नहीं थी। वन विभाग के नियमानुसार वे वहां किसी तरह का स्थाई निर्माण भी नहीं करा सकते थे। लिहाजा घास-फूस की झोपड़ियों में रहना इनकी विवशता थी। समय-समय पर विभागीय उत्पीड़न अलग से।
 
ऐसे समय में इनकी बस्तियों को राजस्व गांव का दर्जा एवं मताधिकार का अधिकार दिलाने के लिए योगी संसद में इनकी आवाज बन गए। इस बीच इनको समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इनकी शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर भी गोरखनाथ मंदिर से जुड़ी संस्थाओं ने ध्यान देना शुरू किया। 
 
जब योगी पर दर्ज हुई एफआईआर : सबसे पहले यहां लोहे के एंगल के सहारे एक छोटा सा शेड डालकर प्राइमरी स्कूल की व्यवस्था की गई। जब यह काम हो रहा था तो वन विभाग ने इसे स्थाई ढांचा मानकर योगी समेत कुछ लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करा दिया।
 
व्यवस्था यह की गई कि प्राइमरी की शिक्षा के बाद आगे की शिक्षा के लिए यहां के बच्चे मंदिर के शैक्षणिक प्रकल्प की संस्था महाराणा शिक्षा परिषद की ओर से संचालित एमपी कृषक इंटर कॉलेज और आगे की शिक्षा के लिए एमपी पीजी कॉलेज जंगल धूसड़ जा सकेंगे। इनसे किसी भी तरह का शुल्क नहीं लिया जाएगा। इस बीच इनके स्वास्थ्य की जांच के लिए मंदिर से ही जुड़े गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पतालकी मोबाइल वैन भी नियमित अंतराल पर वहां जाने लगी।
 
मिटा दी 100 साल की कसक : मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने वनटांगिया समुदाय की 100 साल की कसक मिटा दी। लोकसभा में वनटांगिया अधिकारों के लिए लड़कर 2010 में अपने स्थान पर बने रहने का अधिकार पत्र दिलाने वाले योगी ने सीएम बनने के बाद अपने कार्यकाल के पहले ही साल वनटांगिया गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दे दिया। राजस्व ग्राम घोषित होते ही ये वनग्राम हर उस सुविधा के हकदार हो गए जो सामान्य नागरिक को मिलती है। इसके बाद उन्होंने वनटांगिया गांवों को आवास, सड़क, बिजली, पानी, स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र और आरओ वाटर मशीन जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवा दीं। 
 
वनटांगिया गांवो में आज सभी के पास अपना सीएम योजना का पक्का आवास, कृषि योग्य भूमि, आधार कार्ड, राशन कार्ड, रसोई गैस है, बिजली, पक्की सड़कें, इन पर स्ट्रीट लाइट, कंपोजिट स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र,स्वयं सहायता समूह, पात्रता के अनुसार सबको पेंशन आदि की सुविधा है।
 
बच्चों के लिए टॉफी बाबा : यही वजह है कि इस बस्ती के हर किसी को दिवाली पर पूरी शिद्दत से बाबा या टॉफी बाबा (गोरक्षपीठाधीश्वर के नाते बड़े लोग योगी जी को बाबा और बच्चे टॉफी बाबा के नाम से जानते हैं) की प्रतीक्षा रहती है। एक स्वर से सब यही कहते हैं कि दिवाली के दिन बस्ती में जलने वाला हर दिया बाबा के नाम होता है। हमें अब तक जो कुछ मिला वह बाबा की वजह से ही मिला। बाबा ने हम लोगों का उद्धार उसी तरह किया जैसे भगवान श्रीराम ने अहिल्या का। इस तरह की सुविधाएं गोरखपुर, महराजगंज की वनटांगिया बस्ती के अलावा थारू, मुसहर और अन्य घुमक्कड़ जातियों के लिए भी है। 
 
मन की बात वनटांगिया बस्ती का जिक्र : सरकार से मिले इस सहयोग के कारण इस समुदाय के कुछ लोगों ने उल्लेखनीय काम किए हैं। ऐसा ही काम करने वाले महराजगंज की वनटांगिया बस्ती के बरगदवा राजा के रामगुलाब का जिक्र करीब दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मन की बात में भी कर चुके हैं। रामगुलाब पौष्टिकता से भरपूर सुनहरी शकरकंद की खेती करते हैं। एक कंपनी करार के तहत उनसे तैयार फसल ले लेती है। लिहाजा उनकी और उनसे प्रेरित होकर खेती करने वालों की आय बढ़ गई। ये सारी बात रामगुलाब ने प्रधानमंत्री से हुए वर्चुअल संवाद के दौरान बताया था।
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कौन हैं 100 साल से उपेक्षित वनटांगिया : अंग्रेजी शासनकाल में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटाई हुई। इसकी भरपाई के लिए अंग्रेज सरकार ने साखू के पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया। साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की टांगिया विधि का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए।
 
कुसम्ही जंगल के 5 इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी 5 बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं। 1947 में देश भले आजाद हुआ, लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा। जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास न तो खेती के लिए जमीन थी और न ही झोपड़ी के अलावा कोई निर्माण करने की इजाजत।
 
पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवन यापन का कोई अन्य साधन भी नहीं। और तो और इनके पास ऐसा कोई प्रमाण भी नहीं था जिसके आधार पर वह सबसे बड़े लोकतंत्र में अपने नागरिक होने का दावा कर पाते। समय समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय। पर 5 वर्षों में ही ये सब अतीत बन चुका है। अब तो यह बस्ती वीराने में बहार है। (फाइल फोटो)

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