फूलन के गांव में ठाकुरों का प्रभाव

Webdunia
शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012 (11:21 IST)
कालपी विधानसभा सीट के तहत आने वाले इस गांव में वैसे तो कई सुविधाओं का अभाव है लेकिन हत्या के दस साल बाद भी यहां पूर्व दस्यु और राजनीतिज्ञ फूलन देवी का प्रभाव साफ नजर आता है। बहरहाल, पिछड़ी जातियों की बहुलता वाले इस गांव में ज्यादातर बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस, सपा, बसपा और भाजपा ने उंची जाति के प्रत्याशियों को उतारा है। इस सीट पर मतदान 23 फरवरी को हुआ है।

मार्च 1981 में फूलन ने इस गांव में उंची जाति के 22 ठाकुरों की कथित तौर पर हत्या कर दी थी। अपने साथ किए गए सामूहिक बलात्कार का बदला लेने के लिए फूलन द्वारा अंजाम दिए गए इस कथित बेहमई नरसंहार ने शेखपुर गोरहा गांव को सुखिर्यों में ला दिया था।

लंबा समय हाथों में बंदूक ले कर बीहड़ों में बिताने वाली फूलन ने बाद में राजनीति में कदम रखा था। 25 जुलाई 2001 को नई दिल्ली में फूलन की हत्या कर दी गई थी।

फूलन की याद करते हुए इस गांव की विद्या देवी कहती हैं कि अगर दूसरी बार सांसद बनने के बाद फूलन की हत्या नहीं की गई होती तो वह दूसरी सोनिया गांधी बन सकती थीं। सांसद बनने के बाद फूलन अक्सर गांव आती थीं और गरीबों को उनकी जरूरत का सामान बांटती थी।

एक अन्य ग्रामीण, चरवाहा जाति के भरत सिंह पाल ने कहा कि फूलन मिर्जापुर से सांसद बनीं तो हमारी आवाज सुनी जाने लगी। अब तो हमारा कोई नेता ही नहीं है। यहां केवल चौहानों (ठाकुरों) को ही टिकट दी जाती है।

यहां निषाद और पाल मतदाताओं की संख्या करीब 90,000 है जबकि जाटव, कोरी और अन्य अनुसूचित जातियों के मतदाताओं की संख्या लगभग 40,000 है। ब्राह्मण, मुस्लिम और कुशवाहा मतदाताओं की संख्या भी यहां खासी है।

फूलन की बड़ी बहन रूक्मणि देवी मिर्जापुर में प्रेमचंद भिंड की प्रगतिशील मानव समाज पार्टी की सदस्य हैं। करीब 56,000 पाल मतदाताओं को देखते हुए पार्टी ने कालपी विधानसभा सीट से जीराखन पाल को प्रत्याशी बनाया है।

शेखपुर गोरहा गांव के ग्राम प्रधान विजय बहादुर निषाद ने कहा कि फूलन की मौत के बाद कोई राष्ट्रीय नेता अब तक हमारे गांव नहीं आया।

यमुना और स्थानीय नोन नदी के संगम पर बसे इस गांव के निवासी भूमि के क्षरण की शिकायत करते हैं। रामजीवन निषाद कहते हैं कि हमारी सुध कोई नहीं ले रहा है।

ग्रामीण याद करते हैं कि फूलन ने बड़े पत्थर डलवा कर भूमि का क्षरण रोकने की कोशिश की थी। उन्होंने लड़कियों के लिए एक इंटरमीडिएट कॉलेज खुलवाने का वादा किया था। गांव में पानी की टंकी बनवाने की भी योजना थी।

ग्रामीण सपा और बसपा दोनों से नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं कि मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने तो केवल यादवों को नौकरी मिली। मायावती के मुख्यमंत्री बनने पर सिर्फ जाटवों को फायदा हुआ।

कपड़े रंगने का काम करने वाला छुन्ना कहता है कि गांव में मतदान 23 फरवरी को हुआ लेकिन यहां के करीब एक तिहाई युवा मतदान नहीं कर सके। इनमें से ज्यादातर युवा रोजगार के लिए दिल्ली, गुजरात और हरियाणा गए हैं क्योंकि गांव में रोजगार नहीं है।

निषाद और मल्लाह समुदाय के वोटों के महत्व को देखते हुए मुलायम सिंह यादव ने उन्हें दलितों का दर्जा दिलाने का वादा किया है। (भाषा)

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