प्रेमग्रंथ

ढाई आखर प्यार के....

शैफाली शर्मा
WDWD
बस घर के लिए निकल ही रही थी कि उसने रोककर कहा- सबके सवालों के जवाब देती हो, कभी जीवन की परिभाषा, कभी रिश्तों की व्याख्या, तो कभी आध्यात्म, मुझे प्रेम के बारे में नहीं बताओगी?

प्रेम के बारे में बहुत कुछ लिखा था और उसे पढ़वाया था, वो पढ़ने के बाद भी मुझसे फिर वही सवाल पूछ रहा था, इसका मतलब वह सिर्फ सुनना चाहता था उसके दिल की तरंगों को मेरे शब्दों में।

मैं मना नहीं कर सकी, हम दोनों ही कोई ऐसा तरीका ढूँढ रहे थे जिसके जरिए हम एक-दूसरे की भावना को जान सकें। जो मैं उससे सुनना चाहती थी, उसे वह मेरे शब्दों में ढालने को कह रहा था। उसकी आँखों में आए रंगों को अपने शब्दों में ढालते हुए मैंने कहना शुरू किया...

  प्रेम आसमान में उड़ती चिड़िया जैसा, स्वच्छंद आकाश में, सपनों के पर लगाकर उड़ता रहता है, उसे नहीं पता होता उसे कहाँ जाना है? आसमान की तुलना में उसका कोई अस्तित्व नहीं, लेकिन उसके लिए पूरा आसमान उसका अपना है।      
प्रे म
एक बच्चे की ड्राइंग कॉपी जैस ा, पेंसिल और रंगों को हाथ में लेकर उसक े जो मन में आता है बनाता ह ै, उसमें तरह-तरह के रंग भरता है। उसकी कल्पना को कोई नही ं पकड़ सकता। वो चाहे तो जोकर बना द े, चाहे तो हाथ ी, चाहे तो एक छोटा-सा घर और आसमा न में उड़ती चिड़ियाएँ... वो चाहे तो आसमान को हरा कर द े, पानी को लाल और हाथी क ो पीला ।

प्रेम
आसमान में उड़ती चिड़िया जैस ा, स्वच्छंद आकाश मे ं, सपनों के प र लगाकर उड़ता रहता ह ै, उसे नहीं पता होता उसे कहाँ जाना ह ै? आसमान की तुलना में उसक ा कोई अस्तित्व नही ं, लेकिन उसके लिए पूरा आसमान उसका अपना है ।

प्रे म
समन्दर के किनारे बरसों से खड़ी चट्टानों जैस ा, जिसे कोई टस से मस नहीं कर पात ा, लेकिन समय की लहरों के थपेड़ों को लगता है उसने उसे रेत कर दिया ह ै, लेकिन उसे य े नहीं पता कि समन्दर की ही तरह रेत के किनारों का अस्तित्व भी फैल गया है चारो ं ओर... और वो समन्दर उसके रेतीले किनारों की वजह से ही सुंदर दिखता है ।

WDWD
प्रेम
जैसे कोरे कागज पर जब हम पहली बार कुछ लिखने की कोशिश करते हैं, तो बहुत संभल-संभलकर साफ-सुथरा-सा लिखते हैं। लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं, लिखने की गति और लापरवाही बढ़ती जाती है। कहीं-कहीं कुछ गलतियाँ भी हो जाती हैं, तो या तो हम उसी पर दोबारा से दूसरा शब्द बना लेते हैं या फिर हलकी-सी लाइन से उसे काटकर आगे बढ़ जाते हैं। प्रेम कभी-कभी ऐसा ही कुछ लगता है ।

फिर कभी-कभी प्रेम पर्सनल डायरी-सा हो जाता है, दुनिया से छुपाकर मन की खामोश भावनाओं को शब्दों के रूप में डायरी में उतार दिया।

मेरे लिए प्रेम एक पवित्र ग्रंथ की तरह है, जिसे किसने लिखा है आज तक पता नहीं चला, लेकिन जो भी उसे पूरी श्रद्धा और पवित्रता से पढ़ता है, उसका नाम और उसकी कहानी उस ग्रंथ में जुड़ जाती है...

वह ध्यान से सुन रहा था, मैं चुप हो गई। वो टकटकी लगाए देखता रहा। मैंने उसे थोड़ा-सा थपथपाया और पूछा क्या हुआ?

कुछ नहीं कहा उसने और मुस्कराकर लौट गया। फिर थोड़ी देर बाद मेरे मोबाइल पर उसका मैसेज आया, जिसमें लिखा था- ‘वो ग्रंथ कहीं तुम्हारा मोबाइल तो नहीं? देखो इसमें मेरा नाम आ गया है ।’
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