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Valentines Day : चाइना मेड प्यार

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अनिरुद्ध जोशी

पश्‍चिमी देशों का पर्व वेलेंडाइन डे जो 14 फरवरी को आता है और इसी के आसपास ही वसंत पंचमी का त्योहार भी आता है। भारत में वसंत पंचमी को प्रेम दिवस भी माना जाता है। भारत में पहले प्यार आलमआरा, संगम, हीर रांझा, सोहनी महिवाल, सिरी फरहाद हुआ करता था और अब तो नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम या ओटीटी हो गया है।
 
 
1. एक जमाना था जब प्यार होना बहुत मुश्किल होता था। टेलीफोन की सुविधा हर किसी के पास नहीं थी। पिछले साल भाई की शादी में देखा था उसे अब इस बार दादाजी के नुक्ते में दिखाई दी़, सोचा इस बार तो पत्र थमा ही दूंगा।...परंतु ऐसा कम ही हो पाता था। कम से कम 2 साल में इजहार हो पाता था। कई बार एक साल बाद पता चलता था कि उसकी शादी कहीं और हो गई। हालांकि उस दौर में प्यार सचमुच ही प्यार होता था।

 
 
2. अब तो वाट्सएप और फेसबुक का दौर है। पहले ऐसा था कि एक पत्र या प्रेम संदेश को पहुंचाने में बहुत पापड़ बेलना पड़ते थे। कम से कम दो माह लग जाते थे। लेकिन जब से एसएमएस का दौर प्रारंभ हुआ तो प्यार ने थोड़ी स्पीड पकड़ी। फिर उसी के साथ याहू जैसी कंपनियों ने फ्री-चेट सुविधा प्रारंभ की तो और स्पीड बढ़ गई। अब तो वॉट्सऐप और फेसबुक ने तो सबकुछ बदल कर रख दिया। अब तो लिखते लिखते किसी से कब लव हो जाए और कब ब्रेकअप हो जाए कोई भरोसा नहीं क्योंकि स्पीड हाईटेक है। टेक्नॉलाजी ने लड़के और लड़कियों को तुरंत मिलाने में अहम् भूमिका निभाई है लेकिन इससे अब भावनाएं पीछे छुटती गई है। परिवार से जुड़ाव पीछे छुट गया है। लोग अब तो ऑनलाइन मंगनी, शादी और तलाक भी करने लगे हैं। आप सोचिए कि जमाना कहां जा रहा है। पहले कहते थे कि चट मंगनी और पट ब्याव। पर, अब कहते हैं- चट ब्याव और पट तलाक और झट पुन: ब्याव। आप सोचिए शादी से बड़ा आयोजन तो प्री-वेडिंग हो चला है अब तो लोग तलाक की भी पार्टी देने लगे हैं।
 
 
3. ज्यादातर प्रेमियों का प्यार शादी के बाद रफूचक्कर हो जाता है- यदि ऐसा था तो यह समझे की वह प्यार नहीं बुखार था। जिस तरह नए गाने आते हैं कुछ समय तक उनका खुमार छाया रहता है फिर दूसरे नए गाने आ जाते हैं तो पुराने का खुमार उतर जाता है। अब तो महामारी के दौर में ऐसा होने लगा है कि एक बुखार उतरा नहीं कि 2 या 3 माह में दूसरा बुखार चढ़ जाता है।
 
 
4. यह कौन जान पाया कि प्यार किसे कहते हैं जिसने किया वह जान पाया? यह भी कौन तय करेगा कि प्यार जिसने किया वही अच्छे से व्यक्त कर पाएगा कि प्यार क्या होता है? हो सकता है कि उसने प्यार नहीं किया हो। जिस भी लड़की या लड़के से उसके संबंध हैं उसके प्रति उसके मन में प्यार हो यह जरूरी नहीं। तब कैसे जाने बाबू कि प्यार किसे कहते हैं? फ्रेग मार्क ने कहीं कहा था कि ''सच्चा प्रेम भूत की तरह है, चर्चा उसकी सब करते हैं, देखा किसी ने नहीं।'' हां, कुछ लोग यह भी कहते हैं कि प्यार किया नहीं जाता हो जाता है। कैसे? ऑटो जनरेट है क्या?
 
 
5. अमेरिकी पत्रिका 'सायकोलॉजी टुडे' के संपादक रोबर्ट एप्सटेन ने कभी कहा था कि उन्होंने एक ऐसी प्रक्रिया तैयार की है, जिसमें छह महीनों में एक-दूसरे के प्रति प्यार पैदा किया जा सकता है। दूसरी ओर अगर यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल की डॉ. लेसेल डॉसन के शोध पर आपने विश्वास किया तो आपको हैरानी होगी। उनका कहना है कि दुनिया में प्यार एक बीमारी है और इस बीमारी का इलाज सिर्फ सेक्स है। प्रेमी-‍प्रेमिकाओं ने एक-दूसरे में क्या देखकर प्रेम किया होगा? क्या यह भी मनोविज्ञान की उन सारी हदों में आते हैं जिसे कि एक बीमारी कहा गया है?
 
 
6. रूस की ड्यूक यूनिवर्सिटी में सम्मोहन के प्रयोग चलते थे। उनका मानना है कि जो बात व्यक्ति के आत्मसम्मान से जुड़ी है उसे छोड़कर सम्मोहन की अवस्था में उससे हर कार्य कराया जा सकता है। मसलन किसी भी व्यक्ति के मन में किसी के भी प्रति प्रेम जाग्रत किया जा सकता है। चाहे वह दुनिया की सर्वाधिक काली लड़की हो, लेकिन सम्मोहनकर्ता उसे इस बात का विश्वास दिला देगा कि वही लड़की तेरे लिए बनी है।
 
 
7. लीव एंड रिलेशनशिप, गे, लैस्बियन और कंडोम संस्कृति के इस युग में वेलेंटाइन डे मनाना हास्यास्पद है या कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी वेलेंटाइन संस्कृति ने यह सब गढ़ा हो? आप सोचिये वेलेंटाइड डे के जो सात डे होते हैं वे किसने गढ़े हैं? क्या रही होगी इसके पीछे बाजारवाद की मंशा? जो भी हो सचमुच ही पुराने जमाने के प्यार और आज के जमाने के प्यार में बहुत कुछ बदलाव हो गया है, बदलाव होना चाहिए लेकिन यदि बदलाव का रुख पतन की ओर हो तो जरा डर ही लगता है...। आज का प्यार चाइना मेड की तरह हो चला है...यूज एंड थ्रो...।

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