ऑफिस में आज ही नई लड़की आई है सुजाता। अंदर घुसते ही उस पर निगाह पड़ी अविनाश की। कट्स इतने अच्छे निगाह ही नहीं हटी और दिल में मची अजीब सी हलचल। लेकिन शायद पहली बार मची है किसी को देखकर।
सुजाता आकर बगल वाली सीट पर बैठ गई। अविनाश से ही पहली बात हुई। स्वाभाविक है कुछ भी मदद की जरूरत होती है तो अविनाश से ही कहती है। घर से ऑफिस आती है सिटी बस से और वापस अपने भाई के साथ चली जाती है।
एक दिन काफी वेट करने के बाद भी जब उसका भाई नहीं आया और अविनाश के जाने का समय हुआ तो उसने पूछ लिया क्या मैं तुम्हें घर छोड़ दूँ, तुम्हारा घर मेरे रास्ते में ही आता है। खुशी-खुशी दोनों साथ चले गए।
ऐस े मौक े क ई बा र आए । धीरे-धीरे बढ़ती यह दोस्ती प्यार में बदल गई और अविनाश के लिए सुजाता से सूजी हो गई। छुट्टी के दिन मिलना-जुलना पार्क में घूमना उनका शगल बन गया। दोनों का ही पहला-पहला प्यार है और प्यार के बारे में सोच भी एक जैसी है।
आजकल लड़के का कई लड़कियों और इसी तरह लड़कियों का अनेक लड़कों से मिलना, घूमना-फिरना और इसको प्यार का नाम देना इन दोनों को पसंद नहीं। घोर नफरत है इस काम से उन्हें। सुबह लड़का किसी और लड़की के साथ था शाम को किसी और के साथ और उधर लड़की भी 8 दिन में कितने ही ब्वॉयफ्रेंड बदल रही है। ऐसे लोगों के बारे में बातें सुनना भी पसंद नहीं।
धीरे-धीरे जब इनका प्यार परवान चढ़ने लगा। तब एक दिन सुजाता ने बताया कि मेरे घर वालों ने बिरादरी के ही एक घर में मेरा रिश्ता पक्का कर दिया है। अविनाश बोला बधाई हो। लड़का क्या करता है। शादी कब कर रही हो। सूजी को विश्वास नहीं हुआ कि इतनी सहजता से अविनाश ने यह सब बातें कैसे कह दीं। फिर सुजाता ने सँभलते हुए कहा कि अभी तो इतनी जानकारी मुझे भी नहीं है। कहकर बात आई-गई जैसी हो गई।
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एक दिन कॉफी हाउस में सुजाता ने अंतरजातीय विवाह के बारे में अविनाश के विचार जानने चाहे। अविनाश बोला सूजी मुझे लगता है कि शादी एक ऐसा बंधन है जिसमें लड़का-लड़की के ऊपर अच्छी-खासी जिम्मेदारियाँ होती हैं और इन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए दोनों का टेंशन फ्री होना बहुत जरूरी है। चंद दिनों की चाहत में अपनी मर्जी से शुरू में विवाह तो कर लेते हैं लेकिन या तो बाद में आपस में तकरार शुरू हो जाती है या फिर परिजनों से बनती नहीं है। ऐसी हालत में विवाह का तो पूरा मजा ही किरकिरा हो जाता है।
उदाहरण के लिए मेरे भैया को ही देखता हूँ उन्होंने अंतरजातीय विवाह किया। मन मसोसकर मम्मी-पापा ने उनकी खुशी के लिए शादी की इजाजत तो दे दी लेकिन अब उनकी ससुराल वालों से अनबन चला ही करती है। भाभी की घर में किसी से पटरी नहीं बैठती। कई बार तो उनके घर छोड़ने की भी नौबत आ गई। तो इन हालातों में दोनों तो परेशान रहते ही हैं, उनके 2 बच्चे अलग इसमें पिस रहे हैं।
इसलिए मैं इसके पक्ष में कम ही रहता हूँ। आखिर तुम्हारे माँ-बाप कोई तुम्हारा बुरा थोड़े ही चाहेंगे वह तुम्हारे लिए लड़का या लड़की ढूँढते हैं। कुछ सोच-समझकर ही तुम्हारी शादी करेंगे।
ठीक कहा अविनाश तुमने। लेकिन मेरा मानना है कि शादी के बाद का जीवन लड़का-लड़की को आपस में बिताना होता है न कि अपने माँ-बाप के साथ। इसलिए उनको इतनी आजादी तो मिलना ही चाहिए न कि अपनी पसंद का जीवनसाथी अपना सकें। खैर बात यहीं खत्म कर दोनों घर आ गए।
समय बीतता रहा। एक दिन सुजाता ने अविनाश से कहा। तो क्या हमारा प्यार अपने माता-पिता की खुशी के कारण अधूरा रह जाएगा? तुम्हें क्या लगता है सूजी कि इंसान का प्यार पूरा हो गया। क्या उसकी एक सीमा होती है। अपने प्यार के साथ शादी करना, बच्चों की परवरिश करना और अंत में इस दुनिया को अलविदा कह देना। क्या सिर्फ यही प्यार है। कल यदि हमारी शादी अलग-अलग घरों में हो जाएगी तो क्या यह हमारा प्यार, प्यार नहीं रहेगा?
उसे भी समझ में आ गया था कि अब वह चाहकर भी अपने प्यार को प्रत्यक्ष रूप से पा नहीं सकती आखिरी बार अविनाश को अपने गले लगाकर सुजाता खूब रोई। उसके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
प्यार की कोई सीमा नहीं होती। वह तो हर दिन बगिया में खिलने वाले फूलों की तरह अपनी महक फैलाता है, प्यार को पा लेना ही तो सब कुछ नहीं, प्यार का दूसरा नाम जुदाई भी तो है। अविनाश बोलता जा रहा था और उसकी सूजी सिर्फ सुनती जा रही थी।
वह खुद जानता था कि यह बातें बोलना और उस पर अमल करना हर किसी के लिए आसान नहीं। अविनाश ने परिस्थितियों में अपने आपको ढालना सीख लिया था और आज वह अपने प्यार को भी जीवन की सत्यता से वाकिफ करना चाहता था।
वह दोनों जानते थे कि अब उनका मिलना किसी भी तरह मुमकिन नहीं भलाई सिर्फ इसमें है कि वह खुशी-खुशी एक दूसरे को अलविदा कह दे। पर ? सुजाता बोली..
देखो सूजी प्यार कभी कोई सवाल नहीं करता। जहाँ पर भी सवाल और शंकाएँ हों वहाँ प्यार कभी हो ही नहीं सकता। तुम जीवन भर मेरे दिल के कोने में रहोंगे जहाँ पर तुम आज भी हो। मैं तुम्हें कभी भी मन से अलग नहीं करूँगा यह मेरा वादा है। अब तुम भी अपने माता-पिता का वादा निभाओ और उनकी खुशी के लिए वह जो चाहते हैं वैसा ही करो।
उसे भी समझ में आ गया था कि अब वह चाहकर भी अपने प्यार को प्रत्यक्ष रूप से पा नहीं सकती आखिरी बार अविनाश को अपने गले लगाकर सुजाता खूब रोई। उसके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे।
आज उस बात को 2 साल हो गए हैं। कहते हैं ना जो सच्चा प्यार करते हैं उसे ऊपरवाला सच्चा जीवनसाथी जरूर देता है। सूजी का पति सूजी को ढेर सारा प्यार करता है और अविनाश की पत्नी भी अविनाश को। दोनों ने अपने अतीत से जुडी हुई एक भी बात उनसे नहीं छुपाई शायद इसलिए ही आज उन चारों का प्यार परवान चढ़ा है।