वसंत ऋतुओं पर गीतों की श्रृंखला

गीत श्रृंखलाएं

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कुमार गंधर्व ने ऋतुओं पर गीतों की श्रृंखला तैयार की थी- 'गीत वसंत,' 'गीत हेमंत' और ' गीत वर्षा।' इन तीनों श्रृंखलाओं के कुछ गीत अर्थ सहित यहां प्रस्तुत जा रहे हैं।

गीत-वर्षा

राग मियां मल्हार-द्रुत तीन ताल
जाज्यो रे बदरवा
जाय तू तो सैंयाजी खेता बरसो रे॥

जाय सुनावो मैं तोहे पठावा
गरजो रे, पिया मुख हरसो रे॥

- ( हे बादल, जाओ और जा कर मेरे पिया के खेत में बरसो। उनसे जाकर कहना कि तुम्हें मैंने भेजा है। वहां जा कर गरजो, जिससे पिया के चेहरे पर खुशी झलकने लगे।)

झूला तीज मालवी लोकगीत- ताल सतवा

दलरे बादल बीच चमक्यो हैं तारा
सांजे पडे पीयू लागे प्यारा
कई रे जो आबे करो रसिया से॥

जो आबे करोनी जो पापे करोनी
दलरे बादल बीच॥

ND
- ( बादलों के समूह के बीच तारा चमक उठा है, संध्या हो गई है। ऐसे समय पिया बहुत प्रिय लगता है। मैं पिया से किस बात का जवाब मांगू? क्या बातें करूं? अरी, बातें तो क्या चाहे तो प्रेम भी कर लो।)

' चन्द्रसखी' का भजन- ताल कहरवा

त आई बोले मोरा रे।
मोरा श्याम बिना जिव डोला रे॥

दादुर मोर पपीहा बोले
कोयल करत किलोला रे॥
उतर दिसा से, आई बदरिया
चमकत है घन घोरा रे॥

रिमझिम-रिमझिम मेवला बरसे
आंगण मच रह्यो सोरा रे॥

- ( वर्षा की ऋतु आ गई। मोर बोल रहे हैं। मेरा जी श्याम के बिना बेचैन है। मेंढक, मोर, पपीहा बोलते हैं, कोयल भी किलकारी भर रही है। उत्तर दिशा से बादल आए, बिजली जोर से चमक रही है। पानी रिमझिम-रिमझिम बरस रहा है और मेरे आंगन में वर्षा का आनंद ले रहे लोग भीगकर शोर मचा रहे हैं।)

वसंत स्तवन

आयल हो रितुराजा रसराजा।
उमंग भरे खेलन फाग,
कुंद कुसुम पेहेरे फूलन के हरूवा॥

गावत नाचत सब सखीयां मिल
हस हस कर मन रंजन
डारे कृष्ण गल बैयां, डारे श्याम गल बैयां॥

ND
- ( रस के राजा ऋतुराज फाग खेलने के लिए आए हैं, फूलों के हार पहन कर। सब सखियां मिलकर गा रही हैं, नाच रही हैं और अपना मनोरंजन कर रही हैं। कृष्ण के गले में बांहे भी डाल रही हैं।)

भीमपलासी, ताल मध्य लय रूप क

आयो रंग फाग, सखी सब खेलें
मेरो मन रसिया, आ रे मंदर॥

सब रंग घोले धूम मचायो,
तुम बिन कैसे खेलूं लंगर ॥

- ( फाग अपने पूरे रंग पर है। सारी सखियां खेल रही हैं। मेरे मन के रसिया घर आओ। रंग घोलकर सब लोग धूम मचाए हुए हैं। लेकिन हे प्रिया, तुम्हारे बिना मैं कैसे होली खेलूं।)

रसिया की धुन-ताल कहरवा
रसिया को नार बनावो री, रसिया को॥

गाल गुलाल, दृगन बिच अंजन,
बेंदी भाल लगावो री रसिया को॥

कट लेहेंगा उरमाय कंचुकी,
चूनर सीस ओढ़ावो री रसिया को॥

मानत कौन फाग में प्रभुता
मन मान्यो सो कीजो री रसिया को॥

पुरुषोत्तम प्रभु की छब निरखे,
जसुमत पास नचावो री रसिया को॥

- ( आज जो रसिया को स्त्री रूप में सजाएंगी हम। गाल पर गुलाल, आंखों में अंजन और माथे पर बिंदी लगा दो। कमर में लहंगा, वक्ष पर कंचुकी और सिर पर चुनरी ओढ़ा दो। होली में कोई छोटा-बड़ा नहीं होता, जैसा मन कहे वैसा करो। और इस मोहिनी छवि वाले रसिया को यशोदा के समक्ष नचवाओ।)

गारी गीत- ताल कहरवा

आवो री आवो तुम, गावो री गारी तुम
देवो री गारी तुम, मोहन को जी जी॥

फागुन में रसिया घर बारी, फागुन में फागुन में,
हां हां बोलत गलियन डोले गारी दे दे मतवारी॥
फागुन में॥

लाज धरी छपरन के ऊपर, आप भये हैं अधिकारी॥
फागुन में॥

- ( आओ सखियो आओ, और सब मिलकर मोहन को गाली दो। फागुन के महीने में रसिया बड़े घर बार वाले बनते हैं। यूं तो खुद गली-गली डोलते फिरते हैं, मतवाली गालियां देते हैं, सारी लाज शरम तो छप्पर पर धर दी है और अपने आपको बड़ा बता रहे हैं। आओ आकर इन्हें गालियां दो।)

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