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प्लाट या फॉर्म हाऊस खरीदते वक्त रखें वास्तु का ध्यान...

कैसे जानें अपने प्लॉट का वास्तु कैसा है....

Webdunia
अगर आप अपने सपनों के घर के लिए प्लाट खरीद रहे हैं, तो उस प्लाट की भूमि की वास्तु अनुसार जांच कर लें और यदि वह भूमि वास्तु अनुसार नहीं है तो पहले उसे वास्तु अनुसार शुद्ध करें फिर उसका उपयोग करें। अन्यथा आपके एक खुशहाल जीवन में तूफान उठ खड़ा होगा।

वास्तु का ध्यान रखेंगे तो आपका घर खुशियों से भर उठेगा एवं आप खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर सकेंगे। आइए यह जानते हैं कि कैसे करें भूमि की जांच।

भूमि के प्रकार..

1. उत्तम : ब्रह्म, पितामह, दीर्घायु, सुपथ, स्थंडिल और अर्गल भूमि।
2. मध्यम : पुण्यक, स्थावर, चर, सुस्थान और सुतल भूमि।
3. निम्न : अपथ, रोगकर, श्येनक, शंडुल, श्मशान, सम्मुख और स्वमुख।

ब्रह्म वास्तु, अगले पन्ने पर...


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ब्रह्म वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के नैऋत्य, आग्नेय एवं ईशान कोण की भूमि ऊंची एवं वायव्य कोण की भूमि नीची है तो इसे ब्रह्म वास्तु कहते हैं। यह भाग्यवर्धक भूमि है। इससे भाग्य के द्वार खुल जाते हैं और सर्व कार्य सम्पन्न होते रहते हैं। ऐसी भूमि पर अवश्य भवन बनाना चाहिए।

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पितामह वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि पूर्व दिशा और आग्नेय कोण में ऊंची तथा पश्चिम तथा वायव्य कोण में धंसी हुई है तो ऐसी भूमि को वास्तु शास्त्र में पितामह वस्तु कहा जाता है। ऐसी भूमि पर निवास करने वालों के सभी कष्ट दूर होते रहते हैं।

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दीर्घायु वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि ईशान कोण व उत्तर दिशा में नीची और दक्षिण व पश्चिम कोण में ऊंची है तो ऐसी भूमि को दीर्घायु वास्तु के अंतर्गत माना जाता है। ऐसी भूमि पर बने मकान में रहने वाले लोगों को लंबी आयु प्राप्त होती है। साथ ही वे हर प्रकार के रोगों से भी बचे रहते हैं।

अगले पन्ने पर सुपथ वास्तु....



सुपथ वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि आग्नेय कोण में ऊंची व वायव्य कोण एवं उत्तर दिशा में नीची है तो ऐसी भूमि को वास्तुशास्त्र में सुपथ वास्तु कहा गया है। ऐसी भूमि पर भवन निर्माण करना शुभ माना गया है।

स्थंडिल वास्तु, अगले पन्ने पर...



स्थंडिल वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के नैऋत्य कोण की भूमि ऊंची एवं आग्नेय, वायव्य एवं ईशान कोण की भूमि नीची है तो ऐसी भूमि पर रहने वाले लोगों में क्रिएटिविटी बढ़ जाती है। नए-नए प्रयोग और नए-नए विचारों का जन्म होता है। ऐसी भूमि पर भवन बनाकर रहने वाले लोगों में लेखन, चित्रकला, अभिनय आदि में रुचि रहती है।

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अर्गल वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि का नैऋत्य कोण एवं दक्षिण दिशा के मध्य नीची भूमि हो एवं उत्तर दिशा एवं ईशान कोण के मध्य ऊंची भूमि हो तो यह भूमि अर्गल वास्तु के अंतर्गत शुभ प्रभाव वाली मानी गई है। यह भूमि भूस्वामी के कष्ट एवं महापापों को नष्ट कर देती है। ऐसी भूमि पर अगर मंदिर बनाया जाए तो वह सिद्ध मंदिर होगा।

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पुण्यक वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा में ऊंची और पूर्व एवं ईशान कोण में नीची है तो ऐसी भूमि वास्तु शास्त्र अनुसार पुण्यक वास्तु के अंतर्गत आती है।

यह भूमि भवन निर्मण के लिए शुभ है किंतु यह भूमि आपकी विचारधारा को प्रभावित कर सकती है। निम्न प्रकार का विचार है तो निम्नतर होते जाएंगे। अत: इस पर निर्माण करते वक्त वास्तु का विशेष ध्यान रखें और विचार सकारात्मक रखें।

स्थावर वास्तु, अगले पन्ने पर...




स्थावर वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के आग्नेय कोण की भूमि ऊंची एवं नैऋत्य, ईशान एवं वायव्य कोण की भूमि नीची है तो यह स्थावर वास्तु के अंतर्गत मानी गई है। इस भूमि पर भवन के बजाय व्यावसायिक प्रतिष्ठान का निर्माण लाभदायक सिद्ध होगा।

चर वास्तु, अगले पन्ने पर...



चर वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के ईशान एवं वायव्य कोण और उत्तर दिशा की भूमि ऊंची तथा दक्षिण दिशा की भूमि नीची है तो यह चर वास्तु के अंतर्गत आती है। वास्तुशास्त्री से पूछकर ही इस भूमि पर भवन बनवाएं। हालांकि यह भूमि व्यवसाय के लिए उत्तम मानी गई है।

सुस्थान वास्तु, अगले पन्ने पर...




सुस्थान वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के नैऋत्य एवं ईशान कोण की भूमि ऊंची तथा वायव्य कोण की भूमि नीची है तो सुस्थान वास्तु का द्योतक है। वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसी भूमि को समतल करके फिर भवन बनाना चाहिए। यह पाठशाला, मंदिर या किसी धार्मिक संस्थान के लिए उत्तम मानी गई है।

सुतल वास्तु, अगले पन्ने पर...



सुतल वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के पूर्व दिशा की भूमि नीची तथा नैऋत्य एवं वायव्य कोण और पश्चिम दिशा की भूमि ऊंची है तो यह सुतल वास्तु कहलाएगी। वास्तुशास्त्री से पूछकर ही इस भूमि पर भवन बनवाएं। हालांकि यहां शासन-प्रशासन का भवन बनाना उत्तम होगा।

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अपथ वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि का पूर्व व आग्नेय कोण नीचा और पश्‍चिम और वायव्य कोण ऊंचा है तो यह अपथ भूमि के अंतर्गत आता है जिसे वास्तु दोष से ग्रसित मानते हैं।

इस प्रकार की भूमि पर रहने वाले लोगों को किसी न किसी प्रकार का कष्ट सदैव बना रहता है। इस दोष से बचने के लिए पूर्व दिशा का हिस्सा खुला रखना चाहिए।

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रोगकर वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की भूमि का आग्नेय कोण एवं दक्षिण दिशा नीची और वायव्य कोण एवं उत्तर कोण ऊंचा है, तो यह रोगकर वास्तु के अंतर्गत आता है।

इस प्रकार के भूमि पर रहने वाले लोग हमेशा किसी न किसी रोग के शिकार होते रहते हैं और अंतत: किसी गंभीर रोग की चपेट में आ जाते हैं। अगर आपके भवन की भूमि या बनावट इसी प्रकार की है तो मकान के आग्नेय कोण में मुख्य द्वार का निर्माण करें जिससे रोगकर वास्तु दोष का बुरा प्रभाव खत्म हो जाएगा।

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श्येनक वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के आग्नेय कोण में भूमि नीची तथा नैऋत्य, ईशान और वायव्य कोण में भूमि ऊंची है तो यह श्येनक वास्तु के अंतर्गत है। यह वास्तु सभी प्रकार से अशुभ माना गया है। आग्नेय कोण को बगीचे के रूप में विकसित कर लेने से वास्तु दोषों से कुछ हद तक मुक्ति मिल सकती है।

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शंडुल वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के ईशान कोण की भूमि ऊंची एवं आग्नेय, नैऋत्य एवं वायव्य कोण की नीची है तो वास्तु शास्त्र के अनुसार इसे शंडुल वास्तु दोष कहते हैं। ऐसी भूमि पर वास्तु रचना करते समय भूमि को समतल कर लें अन्यथा ऐसी भूमि पर रहने वाली स्त्रियां संधि रोग से ग्रस्त रहेंगी।

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श्मशान वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस की ईशान दिशा एवं पूर्व दिशा के बीच ऊंची भूमि तथा नैऋत्य कोण एवं पश्चिम दिशा में नीची भूमि है तो यह भूमि वास्तु शास्त्र अनुसार श्मशान भूमि कहलाती है। इस प्रकार की भूमि पर बने भवन में रहने वाला व्यक्ति भीषण संकट में फंस सकता है।

इस भूमि के वास्तु के कारण वंशवृद्धि रुक जाती है। साथ ही जीवित वंश भी नष्ट होने लग जाता है। ऐसी भूमि पर बने भवन का त्याग कर देना ही ‍बुद्धिमानी है।

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सम्मुख वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के ईशान, आग्नेय व पश्चिम दिशा में ‍भूमि ऊंची एवं नैऋत्य कोण में नीची है तो इससे सम्मुख वास्तु दोष उत्पन्न होता है। इस दोष से ग्रसित भवन में रहने वालों की आर्थिक दशा हमेशा दयनीय बनी रहती है। इस दोष को दूर करने के लिए अपने घर का मुख्य द्वार ईशान कोण में बनाएं एवं महालक्ष्मी की निरंतर आराधना करते रहें।

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स्वमुख वास्तु : यदि आपके प्लाट या फॉर्म हाउस के पश्चिम दिशा की भूमि नीची एवं ईशान, आग्नेय और पूर्व दिशा की भूमि ऊंची है तो इससे स्वमुख वास्तु का निर्माण होता है। ऐसी भूमि पर रहने वाले लोगों के पास स्थायी संपत्ति का सदैव अभाव रहता है। इस भूमि पर भवन निर्माण के पूर्व वास्तुशास्त्री की सलाह लें ।

( समाप्त)

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