कैसा हो घर व देवघर

- महेन्द्र कुमार जैन

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वह पवित्रता जो मंदिर में रखी जाती है, उसके नियमों का पालन वहाँ किया जाता है, वह लाख कोशिशों के बाद भी हम हमारे घरों में नहीं रख सकते। घर को सुंदर घर रहने दीजिए, उसे इतना पवित्र करने की कोशिश न करें कि हम सरलता से जीना भूल जाएँ।

पूजा का एक निश्चित समय होना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त सवेरे 3 बजे से, दोपहर 12 बजे तक के पूर्व का समय निश्चित करें। ईशान कोण में मंदिर सर्वश्रेष्ठ होता है। हमारा मुँह पूजा के समय ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए, जिससे हमें सूर्य की ऊर्जा एवं चुंबकीय ऊर्जा मिल सके। इससे हमारा दिन भर शुभ रहे। कम से कम देवी-देवता पूजा स्थान में स्थापित करें। एकल रूप में स्थापित करें।

मन को पवित्र रखें। दूसरों के प्रति सद्भावना रखें तो आपकी पूजा सात्विक होगी एवं ईश्वर आपको हजार गुना देगा। आपके दुःख ईश्वर पर पूर्ण भरोसा करके ही दूर हो सकते हैं।

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जानकार गुरु आपको सही मार्ग दिखाता है, पर उन्हें भी कसौटी पर कसकर, लोगों से पूछकर, राय जानकर उनके पास 100 प्रतिशत भरोसे से जाएँ तभी आपका कार्य सफल होगा। थोड़ी देर की पूजा स्थान की शांति हमारे मन के लिए काफी है। ध्यान केंद्र व अगरबत्ती लगाने का स्थान घर में होगा तो आप सुखी रहेंगे। जब भी ईश्वर के प्रति भावना जागे। घर में सिर्फ असाधना लगेगी? घर से नहीं, प्राण प्रतिष्ठित मंदिर में पूजा-पाठ से चमत्कार होगा।

कम से कम प्रतिमाएँ, कम से कम तस्वीर (लघु आकार की), पाठ, मंत्रोच्चार, कम से कम समय एकांत में रहिए तो सही अर्थों में पूजा-प्रार्थना सार्थक होगी। एक 'सद्गृहस्थ' को यह नियम अपनाने से घर-परिवार में सुख-शांति आएगी। ईश्वर की सेवा में कुछ दान-पुण्य, गौ-सेवा, मानव सेवा कीजिए।

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