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वास्तु : मकान बनाने से पहले याद रखें यह 5 बातें

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वास्तु : मकान के लिए कैसी भूमि का चयन करें 
 
1. भूमि-परीक्षा- भूमि के मध्य में एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा व एक हाथ गहरा गड्ढा खोदें। खोदने के बाद निकली हुई सारी मिट्टी पुन: उसी गड्ढे में भर दें। यदि गड्ढा भरने से मिट्टी भर जाए तो वह उत्तम भूमि है। यदि मिट्टी गड्ढे के बराबर निकलती है तो वह मध्यम भूमि है और यदि गड्ढे से कम निकलती है तो वह अधम भूमि है। 


 

 
दूसरी विधि- उपर्युक्त प्रकार से गड्ढा खोदकर उसमें पानी भर दें और उत्तर दिशा की ओर सौ कदम चलें, फिर लौटकर देखें। यदि गड्ढे में पानी उतना ही रहे तो वह उत्तम भूमि है। यदि पानी कम (आधा) रहे तो वह मध्यम भूमि है और यदि बहुत कम रह जाए तो वह अधम भूमि है। अधम भूमि में निवास करने से स्वास्थ्य और सुख की हानि होती है।
 
ऊसर, चूहों के बिल वाली, बांबी वाली, फटी हुई, ऊबड़-खाबड़, गड्ढों वाली और टीलों वाली भूमि का त्याग कर देना चाहिए।
 
जिस भूमि में गड्ढा खोदने पर राख, कोयला, भस्म, हड्डी, भूसा आदि निकले, उस भूमि पर मकान बनाकर रहने से रोग होते हैं तथा आयु का ह्रास होता है।
 
2. भूमि की सतह- पूर्व, उत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सब दृष्टियों से लाभप्रद होती है। आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य और मध्य में नीची भूमि रोगों को उत्पन्न करने वाली होती है।
 
दक्षिण तथा आग्नेय के मध्य नीची और उत्तर एवं वायव्य के मध्य ऊंची भूमि का नाम 'रोगकर वास्तु' है, जो रोग उत्पन्न करती है।
 
3. गृहारम्भ- वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष और फाल्गुन मास में गृहारंभ करना चाहिए। इससे आरोग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
 
नींव खोदते समय यदि भूमि के भीतर से पत्थर या ईंट निकले तो आयु की वृद्धि होती है। यदि राख, कोयला, भूसी, हड्डी, कपास, लोहा आदि निकले तो रोग तथा दु:ख की प्राप्ति होती है।
 
4. वास्तुपुरुष के मर्मस्‍थान- सिर, मुख, हृदय, दोनों स्तन और लिंग- ये वास्तुपुरुष के मर्मस्थान हैं। वास्तुपुरुष का सिर 'शिखी' में, मुख 'आप्' में, हृदय 'ब्रह्मा' में, दोनों स्तन 'पृथ्वीधर' तथा 'अर्यमा' में और लिंग 'इन्द्र' तथा 'जय' में है (देखे- वास्तुपुरुष का चार्ट)। वास्तुपुरुष के जिस मर्मस्थान में कील, खंभा आदि गाड़ा जाएगा, गृहस्वामी के उसी अंग में पीड़ा या रोग उत्पन्न हो जाएगा।
 
5. गृह का आकार- चौकोर तथा आयताकार मकान उत्तम होता है। आयताकार मकान में चौड़ाई की दुगुनी से अधिक लंबाई नहीं होनी चाहिए। कछुए के आकार वाला घर पीड़ादायक है। कुंभ के आकार घर कुष्ठ रोग प्रदायक है। तीन तथा छ: कोन वाला घर आयु का क्षयकारक है। पांच कोन वाला घर संतान को कष्ट देने वाला है। आठ कोन वाला घर रोग उत्पन्न करता है। 
 
घर को किसी एक दिशा में आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। यदि बढ़ाना ही है तो सभी दिशाओं में समान रूप से बढ़ाना चाहिए। यदि घर वायव्य दिशा में आगे बढ़ाया जाए तो वात-व्याधि होती है। यदि वह दक्षिण दिशा में बढ़ाया जाए तो मृत्यु-भय होता है। उत्तर दिशा में बढ़ाने पर रोगों की उत्पत्ति होती है। 

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