Festival Posters

वट सावित्री का व्रत ज्येष्‍ठ अमावस्या को रखें या पूर्णिमा को, जानिए 11 रोचक जानकारी

Webdunia
Vat savitri vrat: ज्येष्ठ माह की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही दिन वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। हालांकि कई महिलाओं के मन में यह प्रश्न होगा आखिर वट सावित्री का व्रत कब रखा जाना चाहिए। आओ जानते हैं कि क्या मत है इस संबंध में।
 
 
1. स्कन्द और भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है। 
 
2. यह भी कहते हैं कि भारत में अमानता व पूर्णिमानता ये दो मुख्य कैलेंडर प्रचलित हैं। हालांकि इन दोनों में कोई फर्क नहीं है बस तिथि का फर्क है। पूर्णिमानता कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है जिसे वट सावित्री अमावस्या कहते हैं जबकि अमानता कैलेंडर के अनुसार इसे ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाते हैं, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं।
 
3. वट सावित्री अमावस्या का व्रत खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, पंजाब और हरियाणा में ज्यादा प्रचलित है जबकि वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात सहित दक्षिण भारत के क्षेत्रों में प्रचलित है। 
 
4. वट सावित्री का व्रत शादीशुदा महिलाएं अपने पति की भलाई और उनकी लम्बी उम्र के लिए रखती हैं। दोनों ही व्रतों के पीछे की पौराणिक कथा दोनों कैलेंडरों में एक जैसी है।
 
5. दोनों ही व्रत के दौरान महिलाएं वट अर्थात बरगद की पूजा करके उसके आसपास धागा बांधती है। 
 
6. पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। 
7. मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से पति की अकाल मृत्यु टल जाती है। वट अर्थात बरगद का वृक्ष आपकी हर तरह की मन्नत को पूर्ण करने की क्षमता रखता है।
 
8. वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
 
9. इस दिन सती सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है। 
 
10. इस व्रत को सभी प्रकार की स्त्रियां (कुमारी, विवाहिता, विधवा, कुपुत्रा, सुपुत्रा आदि) इसे करती हैं। इस व्रत को स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं।
 
11. भारतीय संस्कृति में 'वट सावित्री अमावस्या एवं पूर्णिमा' का व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। वट पूजा से जुड़े धार्मिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक पहलू में 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह व्रत सौभाग्य और संतान प्राप्ति में सहायता देने वाला माना गया है। 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि: साधना के 9 खास नियम

Navratri Story 2025: नवरात्रि पर्व की कहानी

Dussehra 2025 Date: विजयादशी दशहरा कब है?

Shardiya navratri 2025: नौदुर्गा है स्त्री के जीवन के 9 रूप, जानिए रहस्य

Navratri 2025: माता के इस मंदिर में चढ़ता है 12 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक का रक्त, जानिए कौन सा है मंदिर

सभी देखें

धर्म संसार

Happy Navratri 2025 Wishes: शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन, अपनों को भेजें ये खास शुभकामनाएं

September 23 Day and Night Equal: आज दिन रात होंगे बराबर, जानें खगोलीय कारण और ज्योतिषीय महत्व

Navratri 2025: नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाने के 5 नियम, इनके पालन से ही घर आएगी सुख समृद्धि, मिलेगा मां का आशीर्वाद

Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि पर तृतीया देवी चंद्रघंटा की कथा, मंत्र और पूजा विधि

Solar Ashwin Month 2025: सौर आश्विन मास, जानें महत्व और पौराणिक बातें

अगला लेख