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मदर टेरेसा से पहले सिस्टर अल्फोंजा

भारतीय महिला को मिली 'संत' की उपाधि

गायत्री शर्मा
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कहते हैं उसी का जीवन धन्य होता है, जो लोगों को भाईचारे, प्रेम व ईश्वर की भक्ति का पाठ पढ़ाए। संत का चोला तो हर कोई पहन लेता है लेकिन मन, वचन और कर्म से 'संत' विरले ही लोग बनते हैं।

* जीवन का सफर :-
बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जिनके पदचिह्नों पर दुनिया चलती है और उनके दुनिया से अलविदा कहने के बाद भी अपनी स्मृति में उन्हें हमेशा जीवित रखती है। भारत के केरल राज्य क ी ए क ऐसी ही एक महिला थीं -सिस्टर अल्फोंजा, जिनके कार्यों की सराहना करते हुए मृत्यु के पश्चात उन्हें 'संत' का दर्जा दिया गया है।

साथ ही तीन अन्य हस्तियों स्विट्जरलैंड की मारिया बेर्नाडा, इक्वेडोर की नार्सिसा द जीजस मार्लिलो तथा इटली के पादरी गोटानो एरिक को भी 'संत' का सम्मान दिया गया।

  संत का दर्जा पाने वालों की वेटिंग लिस्ट में मदर टेरेसा के नाम की अटकलें भी लगाई जा रही थीं क्योंकि सन् 2003 में वेटिकन ने मदर टेरेसा को भी 'धन्य' कहा था, पर किसी कारणवश यह सौभाग्य उनको न मिलते हुए केरल की सिस्टर अल्फोंजा को मिला।       
इस उच्च सम्मान को पाने वाली इस विदुषी महिला का जन्म 19 अगस्त 1910 को केरल के कोट्टायम में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनका असली नाम अन्ना मुत्तथुमदथु था। सन् 1928 में इन्हें सिस्टर अल्फोंजा नाम दिया गया।

महज तीन वर्ष की उम्र में ही इस नन्ही बालिका को एक बड़ा आघात सहना पड़ा। वह आघात था - अपने पिता मुत्तथुपदत्त और माता ओरियन की मृत्यु का।

उसी समय से इस अनाथ बालिका ने ईश्वर से प्रीति करना शुरू कर दी और प्रभु यीशु मसीह की शरण में अपना जीवन सौंप दिया।

लगातार बीमार रहने के कारण मात्र 36 वर्ष की आयु में 28 जुलाई 1946 को सिस्टर अल्फोंजा ने अपनी देह का त्याग कर दिया और प्रभु यीशु की शरण में सदा के लिए चली गईं।

  सिस्टर अल्फोंजा ने भले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया है परंतु आज भी लोग इस महिला को देवता की तरह पूज‍ते हैं व घरों में इनकी तस्वीरें लगाते हैं। सिस्टर अल्फोंजा की जन्मभूमि आज एक तीर्थ स्थान का रूप ले चुकी है।      
* धार्मिक यात्रा की शुरुआत :-
सन् 1927 में अल्फोंजा 'पुअर क्लैयर्स ऑफ फ्रैंसिकन' में शामिल हो गईं। सिस्टर अल्फोंजा ने 1932 से 1933 के दौरान वाकक्कड़ स्कूल में बच्चों को गणित व मलयालम विषय पढ़ाए।

सिस्टर अल्फोंजा को एक चमत्कारिक महिला कहा जाता था क्योंकि अपने जीवनकाल में सिस्टर ने कई लोगों के दु:ख-दर्द दूर कर उन्हें रोगमुक्त भी किया। सिस्टर अल्फोंजा की मानवसेवा व जीवदया की भावना को देखते हुए 2 दिसम्बर 1953 में इन्हें 'सर्वेंट ऑफ गॉड' घोषित किया गया।

9 जुलाई 1986 को जब पॉप जॉन पॉल द्वितीय भारत यात्रा पर आए थे, तब उन्होंने सिस्टर अल्फोंजा को धार्मिक भाषा में 'बेटिफि़केशन' अर्थात् 'धन्य' कहा।

* अल्फोंजा से पहले :-
केरल की नन सिस्टर अल्फोंजा को 'संत' का दर्जा पाने वाली पहली भारतीय महिला का गौरव प्राप्त हुआ है, जो हम सभी भारतवासियों के लिए एक सम्मान की बात है।

इनसे पहले मुंबई के पास जन्मे सेंट गोंसालो गार्सिया को 'संत' की उपाधि मिली थी, लेकिन उनकी माता पुर्तगाली थीं। सिस्टर अल्फोंजा कैथोलिक चर्च से संत घोषित होने वाली केरल चर्च की पहली सदस्य हैं।

* मदर टेरेसा के नाम को लेकर लगी थीं अटकलें :-
संत का दर्जा पाने वालों की वेटिंग लिस्ट में मदर टेरेसा के नाम की अटकलें भी लगाई जा रही थीं क्योंकि सन् 2003 में वेटिकन ने मदर टेरेसा को भी 'धन्य' कहा था, पर किसी कारणवश यह सौभाग्य उनको न मिलते हुए केरल की सिस्टर अल्फोंजा को मिला।

* सदियों तक याद किया जाएगा :-
सिस्टर अल्फोंजा ने भले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया है परंतु आज भी लोग इस महिला को देवता की तरह पूज‍ते हैं व घरों में इनकी तस्वीरें लगाते हैं। सिस्टर अल्फोंजा की जन्मभूमि आज एक तीर्थ स्थान का रूप ले चुकी है।

बहुत कम उम्र में सिस्टर अल्फोंजा ने लोकप्रियता हासिल की। मानवता की सेविका सिस्टर अल्फोंजा की स्मृतियाँ आज भी लोगों की यादों में कैद हैं। क्या हिंदू, क्या मुस्लिम, हर कोई इस महिला के बेदाग जीवन व मानवसेवा की गाथा सुना रहा है। हम सभी के लिए यह हमेशा के लिए अमर रहेगी।
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