जब करें जीवनसाथी का चुनाव

प्री मैरीटल काउंसलिंग की जरूरत

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सुमन और विधान की शादी को मात्र ६ महीने ही हुए थे कि छोटी-छोटी बातों को लेकर शुरू हुई, उनकी तकरार बड़े झगड़ों में बदलने लगी। पहले परिजनों ने घर में ही शांति से मामले को सुलझाने का प्रयास किया, लेकिन बात नहीं बनी।

असल में सुमन और विधान की पसंद-नापसंद, चीजों को समझने के रवैये, सामाजिकता निभाने के तरीके और अन्य बातों में साम्य तो ठीक, दूर-दूर तक कोई नाता ही नहीं था। जाहिर है कटुताएँ बढ़ने से अंततः नौबत तलाक तक पहुँच गई, क्योंकि दोनों एक-दूसरे को बेहद नापसंद करने लगे थे और उन्हें अलग रहने में ही भलाई नज़र आ रही थी।

सुमन और विधान का किस्सा अनोखा नहीं है। वर्तमान में ऐसे कई किस्से आपको सुनने को मिल जाएँगे। असल में ऐसी घटनाओं के पीछे मुख्य कारण होता है, जल्दबाजी में तय किए गए रिश्ते और एक-दूसरे को समझ पाने के लिए मिलने वाले समय की कमी। ऐसे में विवाहपूर्व मार्गदर्शन या प्री मैरीटल काउंसलिंग एक सही कदम है, जो आपको झंझटों से बचा लेती है।

 
  विवाह पूर्व मार्गदर्शन में युवाओं के मन में मौजूद उन कल्पनाओं, जो सच्चाई से कोसों दूर रहती हैं, भ्रांतियाँ आदि को दूर कर सच्चाई की तस्वीर पेश की जाती हैं। इसमें शरीर संबंध, कानूनी जानकारियाँ, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक सभी पहलुओं से अवगत कराया जाता है      
लंबे और सफल वैवाहिक जीवन की कामना सभी करते हैं, लेकिन कई बार जरा-सी चूक रिश्तों के टूटने का कारण बन जाती है। यह सही है कि कोई भी मनुष्य "परफेक्ट" नहीं होता, लेकिन यदि विवाहपूर्व कुछ बातों पर गौर कर लिया जाए तो जिंदगी का यह बंधन अटूट रहने का विश्वास और भी बढ़ जाता है।

आजकल "प्री मैरीटल काउंसलिंग" या विवाहपूर्व मार्गदर्शन, एक अच्छे विकल्प के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। इसके अंतर्गत लड़का-लड़की के स्वभाव, पसंद-नापसंद, भविष्य की योजना, अपेक्षाएँ आदि जैसे विषय पर चर्चा कर उन्हें एक-दूसरे को समझने का मौका दिया जाता है। इससे न केवल सही जीवन साथी चुनने में मदद मिलती है, बल्कि गलत परिस्थितियों के बनने की नौबत भी टल जाती है।

आज जिस तरह जिंदगी तेज रफ्तार से चल रही है, नए दूल्हा-दुल्हन को जरूरत है कि उस जिंदगी की रफ्तार से अपनी रफ्तार मिलाकर चले, ताकि उस ट्रैक से बाहर ना निकलना पड़े। आज शादी करने के पूर्व किसी भी जोड़े से यह पूछना अनिवार्य है- "शादी कर रहे हो, काउंसलिंग की क्या?"

अब वह पहले की बात नहीं रही, जब आपकी कुंडली के ग्रह-तारे बताते थे कि आपकी शादी सफल होगी कि नहीं। अब धीरे-धीरे मैचमेकर्स और ज्योतिषी की जगह मैरिज काउंसलर्स ले रहे हैं। वे लड़के और लड़की के बीच एक ऐसे पुल का काम कर रहे हैं, जिस पर चलकर दोनों एक व्यवस्थित और स्थिर जीवन की नींव रख सकते हैं।

दूल्हा और दुल्हन द्वारा एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ लेना, एक-दूसरे की पसंद-नापसंद को अपनाना यह बातें अब कुंडली के ग्रहों से ज्यादा आवश्यक होने लगी हैं और इन्हीं बातों को मैरिज काउंसलर साथ बैठकर शांति के साथ समझते तथा समझाते हैं। असल में भागती दुनिया में टिकाऊ रिश्तों के लिए ऐसे कदम उठाने आवश्यक हो गए हैं, जहाँ आपसी सामंजस्य तथा विश्वास के बल पर रिश्तों की बुनियाद खड़ी की जा सके।

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अब पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत में भी तलाक के मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। तलाक के ९० प्रतिशत केसेस में यह पाया गया है कि अगर उस जोड़ी ने पहले काउंसलिंग द्वारा एक-दूसरों को समझने के बाद विवाह कर लिया होता तो शायद तलाक की नौबत नहीं आती। यह मानी हुई बात है कि जो दंपत्ति शादी पूर्व सलाह लेते हैं, उनका आपसी सामंजस्य दूसरे दंपत्ति से बेहतर रहता है।

आजकल जिंदगी में चारों तरफ से दबाव बढ़ रहा है, तनाव बढ़ रहा है। पहले जैसे संयुक्त परिवार नहीं रहे। लड़के-लड़कियाँ उच्च शिक्षा के लिए विदेशों में रहते हैं या विदेशों में नौकरी के सिलसिले में जाते हैं। जाहिर है उनकी सोच-विचार में पहले की अपेक्षा काफी परिवर्तन हुआ है।

धर्म, जाति के पार पहुँचकर अलग देशों के जोड़ीदार भी चुने जा रहे हैं। कई शादियाँ इस तरह भी तय हो रही हैं कि लड़का तीन हफ्ते के लिए अमेरिका से आता है, उसके लिए अभिभावक दस चुनिंदा लड़कियों की लिस्ट तैयार रखते हैं। उसमें से एक पसंद कर चट मंगनी पट ब्याह कर दुल्हन सहित लड़का वापस अमेरिका के लिए उड़ान भरता है।

अब बताइए यहाँ एक-दूसरे को देखने-समझने का अवसर कहाँ मिल रहा है? उन्हें ये भी नहीं पता रहता है कि अपनी साथीदार से क्या अपेक्षा रखें? विवाह के मंत्र-रस्मों का क्या मतलब है? या शादी से उन्हें क्या मतलब है, यह उन्हें खुद ही समझ में नहीं आता। जिंदगी भर का साथ निभाने का वचन देने के पूर्व क्या यह सब जरूरी नहीं?

विवाह बंधन से बँध जाने के पहले एक-दूसरे के व्यक्तित्व के तरह-तरह के पहलू जाने, समझे तो विवाह कायम रूप से सफल रहते हैं। आजकल महिलाओं की या युवतियों की स्थिति समाज में पहले की अपेक्षा काफी मजबूत हो चुकी है।

लड़कियाँ पढ़ती हैं, लड़के के बराबर अथार्जन करती हैं और घर में भी बराबर के दर्जे की अपेक्षा रखती हैं, लेकिन ऑफिस में सहकर्मी जैसे व्यवहार रखने वाला पति घर पहुँचते ही पत्नी का बॉस बन जाता है। दूसरी बात अर्थ नियोजन की है। जो लड़की अच्छी तनख्वाह पाती है अपने पैसे का नियंत्रण भी खुद करना चाहती है। इस वजह से लड़के (पति) की जो स्थापित छबि है, उसे धक्का पहुँचता है।

लड़कियाँ भी अब अन्याय या सेकंड क्लास ट्रीटमेंट बर्दाश्त नहीं करती है। वो करियर बनाना चाहती है, अपना "स्पेस" चाहती हैं, स्वयं को इंसान की तरह ट्रीट किया जाना पसंद करती हैं, अपने लिए समय चाहती है, वहीं फिल्म और टीवी के परिणामों से भी प्रेशर बढ़ता है।

आज अच्छी फिगर होना और सुंदर दिखना जैसे अनिवार्य बन गया है। इन सारे दबावों के बीच वे परिवार वालों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार नहीं कर पाती हैं। कई लड़कियाँ माँ बनने से डरती हैं, क्योंकि अपना जॉब संभालकर बच्चे की देखभाल करने की ताकत या समय उनके पास नहीं है। इससे भी पति-पत्नी के बीच दूरी बढ़ती है।

इसीलिए इन सब बातों को पहले ही समझा-सुलझा लिया जाए, युवाओं की एक जरूरत बन गई है, विवाह पूर्व मार्गदर्शन। शादी के बाद क्या जिम्मेदारियाँ होती हैं, इसका एहसास उन्हें होना चाहिए। विवाह अटूट रहे इसके लिए निःस्वार्थ भावना, औदार्य, दया, सहानुभूति, विश्वास इन सबकी जरूरत होती है।

एक अच्छे परिवार का निर्माण जहाँ बच्चे की परवरिश एक सुरक्षित वातावरण में हो पाए, इसके लिए युवा पति-पत्नी को काफी प्रयास करना चाहिए। ऐसा होने से उन्हें वो मानसिक शांति मिलेगी, जो करियर या परिवार सुख के लिए अति आवश्यक है।

विवाह पूर्व मार्गदर्शन में युवाओं के मन में मौजूद उन कल्पनाओं, जो सच्चाई से कोसों दूर रहती हैं, भ्रांतियाँ आदि को दूर कर सच्चाई की तस्वीर पेश की जाती हैं। इसमें शरीर संबंध, कानूनी जानकारियाँ, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक सभी पहलुओं से अवगत कराया जाता है। शादी टूटने से बचने का यह कोई मंत्र तो नहीं है, लेकिन सच से रूबरू होने के कारण शादी के चैलेंज को बेहतर रूप से स्वीकारने के लिए युवा मानसिक रूप से तैयार हो जाते हैं।

आजकल कई अभिभावक अपने युवा बेटे-बेटियों को विवाह के पूर्व मार्गदर्शन वर्कशॉप जरूरी भेजते हैं। जो बातें कई बार युवा अपने पेरेंट्स को नहीं बता पाते वह काउंसलर को बता सकते हैं।

इसीलिए प्री मैरीटल काउंसलिंग की लोकप्रियता मेट्रो सिटीज के साथ छोटे शहरों में भी बढ़ रही हैं। अगर आप भी विवाह के बंधन में बँधने जा रहे हैं तो इस शानदार विकल्प को नजरअंदाज़ न कर, ताकि आपके रिश्ते को आपकी अपनी ही नजर न लगे।
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