प्रथमेश व्यास
कहते हैं कि इंसान अगर अपने लक्ष्य पर भरोसा करे और पूरी लगन के साथ उसे हासिल करने के लिए प्रयत्नशील रहे, तो एक ना एक दिन उसे अपनी मेहनत का फल मिल ही जाता है। इस बात का बड़ा ही उम्दा उदाहरण मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में सामने आया, जहां एक सब्जी बेचने वाले की बेटी व्यवहार न्यायाधीश (सिविल जज) के पद के लिए चयनित हुई।
अपार संघर्ष करके इतना बड़ा मुकाम हासिल करने वाली मध्य प्रदेश की इस होनहार बेटी का नाम है-अंकिता नागर। अंकिता कहती हैं 'मैंने अपने चौथे प्रयास में व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-दो भर्ती परीक्षा में सफलता हासिल की है। अपनी खुशी को बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।'
अपनी बेटी की इस सफलता पर गौरवान्वित सब्जी विक्रेता पिता अशोक का कहना है कि उनकी बेटी समस्त नारी जाति के लिए एक मिसाल है, क्योंकि उसने इतनी विफलताओं के बावजूद हार नहीं मानी।
उन्होंने ये भी बताया कि एक साधारण परिवार से होते हुए इतनी कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण होने की राह आसान नहीं थी। उनके पिता अशोक नागर इंदौर के मूसाखेड़ी इलाके में सब्जी बेचते हैं और भर्ती परीक्षा की तैयारी के दौरान समय मिलने पर वह इस काम में उनका हाथ भी बंटाती थी।
अंकिता के दोनों भाई-बहनों की शादी हो गई है। मगर न्यायाधीश बनने के सपने के चलते अंकिता अभी तक अविवाहित है। उन्होंने शुरू से ही अपने जीवन में पढ़ाई को सबसे ऊंचा स्थान दिया।
अंकिता के अलावा उनके 2 भाई-बहन और हैं। इतने बड़े परिवार का भरण पोषण बड़ी ही मुश्किलों से हो पाता था। एक बार तो अंकिता के पास परीक्षा फॉर्म भरने के लिए पैसे कम पड़ गए थे। फॉर्म की कीमत 800 रुपए थी, जबकि अंकिता के पास 500 रुपए ही थे। फिर उनकी मां ने पूरे दिन सब्जी बेचकर उन्हें 300 रुपए जमा करके दिए।
अंकिता बचपन से ही कानून की पढ़ाई करना चाहती थी और एलएलबी के अध्ययन के दौरान उन्होंने मन बना लिया था कि उन्हें न्यायाधीश ही बनना है। परीक्षा में उत्तीर्ण होने से पहले अंकिता तीन साल तक असफल हुई। लेकिन, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और चौथे प्रयास में चयनित हुई। उन्होंने बताया कि न्यायाधीश का पद ग्रहण करते ही उनका यह कर्त्तव्य होगा कि उनकी अदालत में आने वाले हर व्यक्ति को न्याय मिले।