नारी को चाहिए स्वनिर्णय की आजादी

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घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर दुनिया देखने का सपना प्रत्येक नारी का होता है। पुरुष के दबदबे को कम करने की जब भी कोशिश की गई, नारी को अपमानित होना पड़ा। परिवार में अथवा बाहर आज भी कई बार उसे हर निर्णय के लिए पुरुष पर निर्भर रहना पड़ता है।

महिलाओं को बात-बात पर पति अथवा ससुर की स्वीकृति लेना पड़ती है। आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा जहाँ नारी ने अपनी पहचान नहीं बनाई, इसके उपरांत भी उसकी ऐसी उपेक्षा आश्चर्यजनक है। दरअसल पुरुष हमेशा नारी से ऊँचा रहना ही पसंद करता है।

उसका अहम इस बात की इजाजत नहीं देता है कि नारी उससे आगे निकल जाए। आज देश ने जरूर आजादी प्राप्त कर ली परंतु नारी आज भी आजादी के लिए संघर्षरत है। इससे निजात पाने हेतु महिलाओं को स्वावलंबी बनने की जरूरत है।

  आज महिला नौकरी करे या नहीं, इसके लिए उसे ससुर व पति की स्वीकृति भी जरूरी है। बालिका पढ़ाई करे तो उसे माता-पिता की रजामंदी आवश्यक है। उसकी पसंद या नापसंद को पैरों तले रौंद दिया जाता है।      
उसके द्वारा स्वयं किसी भी कार्य के लिए निर्णय लेने पर उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा। क्योंकि दूसरों पर आश्रित रहने से स्वयं का विकास रुक जाता है। वहीं विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग रहने के लिए स्वनिर्णय की ही आवश्यकता पड़ती है। जबकि आश्रित रहने से हर कार्य में व्यवधान उत्पन्न होता है।

इस स्वनिर्णय की कमजोरी से मुक्त होने के लिए नारी को स्वयं आगे आना पड़ेगा। इसके लिए सबसे जरूरी पहलू 'शिक्षा' पर गंभीर सोच की आवश्यकता है। शिक्षा का प्रचार-प्रसार होना उसकी आधी जीत है। अशिक्षा के कारण उस पर हर निर्णय थोप दिया जाता है। उसकी सबसे बड़ी कमजोरी अशिक्षा ही है।

आज महिला नौकरी करे या नहीं, इसके लिए उसे ससुर व पति की स्वीकृति भी जरूरी है। बालिका पढ़ाई करे तो उसे माता-पिता की रजामंदी आवश्यक है। उसकी पसंद या नापसंद को पैरों तले रौंद दिया जाता है। वह अपनी इच्छानुसार शादी की बात तो सोच भी नहीं सकती है। उसे हर निर्णय के लिए हाँ में हाँ करनी प़ड़ती है। उसे अपने विचार व्यक्त करने का हक नहीं है।

भाषण तथा गोष्ठी के जरिए जरूर उसे आजादी दिला दी जाती है। उत्थान तथा समानता का ताना-बाना बुना जाता है परंतु उसके खाते में कुछ भी जमा नहीं होता है। कभी-कभी महिलाओं को आरक्षण की बैसाखी पकड़ाकर घर की चौखट लँघवाने का प्रयास जरूर किया गया है। किंतु वहाँ भी पुरुषों का ही हुक्म तथा आदेश चलता है।

विडंबना देखिए कि चुनाव में महिलाओं की जीत होती है, पर माला पतियों के गले में डाली जाती है। पति की जय जयकार के नारे लगाए जाते हैं। कागजों में जरूर पत्नी का नाम चलता है। पर कलम पति के इशारे से ही चलती है। अतः महिलाओं को संघर्ष करके ही असली आजादी प्राप्त करना होगी। अपने अधिकार जानकार उन्हें प्राप्त करना होगा। स्वयं को आर्थिक तथा सामाजिक रूप से सशक्त बनाना होगा, तभी वह स्वनिर्णय की पात्र बनेगी।

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