पटाखों का शोर, मत कहना वन्स मोर

अब आ गए है इकोफ्रेंडली पटाखे

गायत्री शर्मा
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दीपावली व आतिशबाजी का गहरा नाता है। लक्ष्मी पूजन के बाद शगुन के रूप में फोड़े जाने वाले पटाखे अब हमारी ही मौत का सामान बनते जा रहे हैं। हवा में जहर घोलते ये पटाखे कई प्रकार की शारीरिक व मानसिक व्याधियों को जन्म दे रहे हैं।

पटाखों की धमक हमारे चेहरे पर जरूर मुस्कान लाती है, पर यह मुस्कान हमारी बर्बादी का पूर्वाभ्यास होती है। इसका आभास हमें उस वक्त नहीं होता जब हम पटाखों की रोशनी में खो जाते हैं।

आजकल के युवा पटाखे खरीदते समय उसकी तीखे शोर व प्रकाश पर ध्यान देते हैं। पटाखे के रूप में हम पैसों की बर्बादी व जान को जोखिम में डालने का पूरा-पूरा सामान खुशी-खुशी घर लाते हैं।

  पटाखों के शौकीनों के लिए इस दीपावली पर बाजार में इकोफ्रेंडली पटाखे आए हैं, जिससे आपका पटाखे जलाने का शौक भी पूरा हो जाएगा और वो भी वायुमंडल को नुकसान पहुँचाए बगैर। अब आप ही बताएँ कि है ना यह फायदे का सौदा?      
* बीमारियों को खुला न्योता :-
पटाखे जब जलते हैं और तेज धमाके के साथ फूटते हैं तो हममें से हर किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट छा जाती है। उस वक्त हम भूल जाते हैं कि इन पटाखों के काले धुएँ व शोर का हमारे शरीर पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा?

जब पटाखे जलते व फूटते हैं तो उससे वायु में सल्फर डाइआक्साइड व नाइट्रोजन डाइआक्साइड आदि गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। ये हमारे शरीर के लिए नुकसानदेह होती हैं। पटाखों के धुएँ से अस्थमा व अन्य फेफड़ों संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

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* पटाखों का शोर मत कहना वन्स मोर :-
पटाखों की आवाज हमारी श्रवण शक्ति पर भी प्रभाव डालती है। इससे भविष्य में हमारी श्रवण शक्ति कमजोर हो सकती है।

आम दिनों में शोर का मानक स्तर दिन में 55 व रात में 45 डेसिबल के लगभग होता है परंतु दीपावल‍ी आते-आते यह 70 से 90 डेसिबल तक पहुँच जाता है। इतना अधिक शोर हमें बहरा करने के लिए पर्याप्त है।

* पटाखे, हादसों का पर्याय :-
कोई चीज हमें नुकसान पहुँचा सकती है। यह जानते हुए भी हम उसका उपयोग करते हैं। पटाखे हादसों का पर्याय हैं। हमारी थोड़ी-सी लापरवाही हमारे अमूल्य जीवन को बर्बाद कर सकती है। यह जानते हुए भी हम अपने शौक के खातिर हँसते-हँसते अपनी जान को दाँव पर लगाते हैं।

  पटाखों की धमक हमारे चेहरे पर जरूर मुस्कान लाती है, पर यह मुस्कान हमारी बर्बादी का पूर्वाभ्यास होती है। इसका आभास हमें उस वक्त नहीं होता जब हम पटाखों की रोशनी में खो जाते हैं।       
प्रतिवर्ष दीपावली पर कई लोग पटाखों से जल जात े हैं व कई अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। अनार, रॉकेट, रस्सी बम आदि धमाकेदार पटाखों के शौकीनों के साथ तो ये हादसे होते ही हैं। उस विध्वंसकारी चीज को आखिर हम क्यों इस्तेमाल करते हैं, जो हमें केवल क्षणिक सुख देती है?

* इकोफ्रेंडली पटाखे बेहतर विकल्प :-
पटाखों के शौकीनों के लिए इस दीपावली पर बाजार में इकोफ्रेंडली पटाखे आए हैं, जिससे आपका पटाखे जलाने का शौक भी पूरा हो जाएगा और वो भी वायुमंडल को नुकसान पहुँचाए बगैर। अब आप ही बताएँ कि है ना यह फायदे का सौदा?

जिस परिवेश में हम रहते हैं, उसी को हम प्रदूषित करके अपनी जान के लिए खतरा मोल लेते हैं। पटाखे फोड़ना कोई बुरी बात नहीं है। दीपावली खुशियों का त्योहार है तो क्यों न हम इस दीपावली पर वायुमंडल को नुकसान पहुँचाए बगैर इकोफ्रेंडली पटाखों से अपने इस शौक को पूरा करें।
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