प्यार बसा है रोम-रोम में

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- डॉ. सीमा शाहजी

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प्रेम... प्यार! एक संवेदनाभरी अनुभूति है। भावनाओं का कोमल नाजुक इजहार, जिसके सहारे ताउम्र बिता देने के वायदे होते हैं। प्यार के इस पवित्र बंधन को कोई नाम नहीं दिया जा सकता। कल्पना के पंखों की खनखनाहट इसे कब विस्तार देती चली जाती है पता ही नहीं चलता।

युवा उम्र के इस पड़ाव पर एक शख्सियत जब पूरी तरह आपकी आँखों में उतर जाए, पूरा व्यक्तित्व एक भीनी-भीनी खुशबू से सराबोर रहे और हर धड़कन से वासंती प्रेम की खुशबू आए। बस उसी वक्त पता चल जाता है कि प्यार हो गया।

जज्बातों की धीमी आँच में प्यार भरे रिश्ते कुंदन की आभा से दमक उठते हैं। "आई लव यू" की अदृश्य डोर से मन जुड़ जाता है। शायद इसीलिए कहा गया है कि "वो दिल ही क्या जो प्यार करना न जाने, वो अहसास ही क्या जो किसी के ख्यालों से महक न पाए, वो भावनाएँ ही क्या जो उनके लिए न गुनगुनाए" तभी तो शायद इश्क में चाँद-तारे तक तोड़ लाने की बातें कह जाते हैं। एक ऐसी अगन, जो इसकी लौ में दहक पाया हो सिर्फ वही महसूस कर सकता है।

  जब लोग प्रेम को पूरी शिद्दत से निबाहने की कोशिश करते हैं, तब प्यार के साथ... समर्पण... उदात्तता... आत्मीयता... तरलता... अंतरंगता भी इजहारे इश्क में यक-ब-यक बयाँ होने लगती हैं।      
यदि हमारे पास वाकई है कोई, जिसके साथ हम हमारी भावनाएँ शेयर कर सकें तो आइए पूरी ईमानदारी से उससे हम वो सब कुछ कह दें जो कहना चाह रहे हैं। पूरी पारदर्शिता, पूरी सत्यता के साथ। फिर उसकी मर्जी वो जाने, लेकिन ऐसा तो शायद संभव नहीं कि सितार का एक तार ही बजे और मन का मयूर झूम-झूम उठे।

जरूरी है तारों का पूरी तरह झंकृत होना। आपके मन की चाह व्यक्त नहीं तो कौन जानेगा आपके अंतरंग की थाह। इसीलिए कभी कहीं किसी ने कहा है- "प्रेम का एक छोर खामोश "सफरिंग" होता है तो दूसरा उन्माद। स्त्री-पुरुष संबंध इसीलिए जटिल होते हैं।" फिर भी रसायनों का यह खेल रोचक है।

जब लोग प्रेम को पूरी शिद्दत से निबाहने की कोशिश करते हैं, तब प्यार के साथ... समर्पण... उदात्तता... आत्मीयता... तरलता... अंतरंगता भी इजहारे इश्क में यक-ब-यक बयाँ होने लगती हैं।

प्रेम का अनुभव सभी के लिए विलक्षण होता है, अद्वितीय बिलकुल अपना-सा खजाना हाथ की ओट में बची हुई बहुत नन्ही-नन्ही लौ की मीठे उजास की भाँति।

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