महिला समानता दिवस : 26 अगस्त

आधी आबादी की आधी-अधूरी समानता

वार्ता
महिलाएं आज हर मोर्चे पर पुरुषों को टक्कर दे रही हैं.. चाहे वह देश को चलाने की बात हो या फिर घर को संभालने का मामला, यहां तक कि देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी वे बखूबी निभा रही हैं। महिलाओं ने हर जिम्मेदारी को पूरी तन्मयता से निभाया है, लेकिन आज भी अधिकांश मामलों में उन्हें समानता हासिल नहीं हो पाई है ।
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जहां देश में प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति के पद पर प्रतिभा देवी सिंह पाटिल रह चुकी हैं वहीं मौजूदा दौर में आज दिल्ली की सत्ता पर कांग्रेस की शीला दीक्षित, तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक अध्यक्ष जयललिता और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी राज्य की बागडोर संभाल रही हैं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष भी एक महिला मायावती हैं ।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को तो विश्व की ताकतवर महिलाओं में शुमार किया ही जा चुका है। वर्तमान में यदि देश की संसद में देखें तो लोकसभा में विपक्ष की नेता के पद पर सुषमा स्वराज और लोकसभा अध्यक्ष के पद पर मीरा कुमार आसीन हैं। कॉरपोरेट सेक्टर, बैंकिंग सेक्टर जैसे क्षेत्रों में इंदिरा नूई और चंदा कोचर जैसी महिलाओं ने अपना लोहा मनवाया है ।

लेकिन इन कुछ उपलब्धियों के बाद भी देखें तो आज भी महिलाओं की कामयाबी आध ी- अधूरी समानता के कारण कम ही है। हर साल 26 अगस्त को महिला समानता दिवस तो मनाया जाता है लेकिन दूसरी ओर महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार आज भी जारी है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिशत कम है।

साक्षरता दर में महिलाएं आज भी पुरुषों से पीछे हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार महिलाओं की साक्षरता दर में 12 प्रतिशत की वृद्धि जरूर हुई है लेकिन केरल में जहां महिला साक्षरता दर 92 प्रतिशत है, वहीं बिहार में महिला साक्षरता दर अभी भी 53.3 प्रतिशत है।

दिल्ली महिला आयोग की सदस्य रूपिन्दर कौर कहती हैं, 'बदलाव तो अब काफी दिख रहा है। पहले जहां महिलाएं घरों से नहीं निकलती थीं वहीं अब वे अपने हक की बात कर रही हैं। उन्हें अपने अधिकार पता हैं और इसके लिए वे लड़ाई भी लड़ रही हैं।'

दिल्ली विश्वविद्यालय के दौलत राम कॉलेज में सहायक प्रोफेसर डॉ. मधुरेश पाठक मिश्र कहती हैं, 'कॉलेजों में लड़कियों की संख्या देखकर लगता है कि अब उन्हें अधिकार मिल रहे हैं। लेकिन एक शिक्षिका के तौर जब मैंने लड़कियों में खासकर छोटे शहर की लड़कियों में सिर्फ शादी के लिए ही पढ़ाई करने की प्रवृत्ति देखी तो यह मेरे लिए काफी चौंकाने वाला रहा। आज भी समाज की मानसिकता पूरी तरह नही बदली नहीं है। काफी हद तक इसके लिए लड़कियां भी जिम्मेदार हैं।'

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