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समलैंगिक संबंध: दो तर्क-दो विचार

आखिर यह लुका-छिपी कब तक?

गायत्री शर्मा
WDWD
नोकिया ने अपना नया मोबाइल कंप्यूटर N96 यूके में लांच करने की तिथि 1 अक्टूबर तय की है। इस फोन में 2.8 इंच क्यूवीजीए डिस्प्ले है जिसका पिक्चर रिसोल्यूशन 240 x320 पिक्सल है ।
इस फोन में ईयरफोन के लिए 3.5 एमएम का सॉकेट दिया गया है। इसके साथ ही इसमें टीवी ब्रॉडकास्ट की सुविधा, ब्लूटूथ और वाई-फाई की सुविधा भी है। इस फोन की इंटरनल मेमोरी 16 जीबी की है लेकिन इसमें माइक्रो एसडी कार्ड के लिए भी स्लॉट दिया गया है ।
यह फोन जीपीएस तकनीक से लैस है और इसमें 5 मेगापिक्सल ऑटोफोकस कैमरा भी है। इस शानदार फोन की कीमत 32,000 रुपए है।

सवाल यह है कि यदि वे रिश्ते जो वासनातृप्त हैं। तृप्ति की बुनियाद पर पानी के बुलबुले की तरह जन्म लेकर नष्ट हो जाते हैं तो उन रिश्तों का क्या जो भारतीय संस्कृति में साल दर साल नहीं बल्कि जन्म-जन्मांतर साथ निभाने के संकल्पों से बंधे होते हैं।

  आज भी हमारे देश में कई स्त्री-पुरुष ऐसे हैं जो सालों से समलैंगिक संबंधों को जीते आ रहे हैं और एक-दूसरे का ताउम्र साथ निभाने का वचन देकर अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर रहे हैं। इसमें हर्ज ही क्या है यदि कोई दो समलैंगिक एक में अपनी खुशियों को टटोलें?       
देश का स्वास्थ्य मंत्री यदि इन अप्राकृतिक संबंधों का समर्थन करता है तो इसका आशय यह भी निकाला जा सकता है कि देश में कथित स्वच्छंदता दिए के पक्ष में खुद सरकार भी अपना मन बनाने जा रही है। अकेले स्वास्थ्य मंत्री के हामी भर देने से कुछ नहीं होना है। इस विषय पर खुले दिमाग से अपने सांस्कृतिक मूल्य और संस्कारों को पटल पर रखकर बहस होना चाहिए।

* समलैंगिक संबंध कितने उचित:-
समलैंगिक संबंध आमतौर पर खुले रूप में सामने नहीं आते। देश का कानून, मान-मर्यादा, शर्म व झिझक इन संबंधों को अनैतिक बनने पर विवश करती है। आज इस विषय पर समाज के सभी वर्गों की राय जानने की महती आवश्यकता है कि क्या समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए?

साल दर साल बीतते गए। इस मुद्दे पर हर बार बहस जिस तरह से गर्माई, उसी तरह से सामाजिक रीति-रिवाजों के छीटों ने उसे ठंडा भी कर दिया। जिससे अब तक हम किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए हैं।

यदि समलैंगिक संबंधों की कानूनी मान्यता के मुद्दे पर कोई निष्कर्ष निकलता और आशा की किरण जागती तो आज शायद आज ये संबंध अनैतिक न होते। शारीरिक तृप्ति की आग में अब तक जो कुछ चोरी छिपे हो रहा था वो आज सामान्य संबंधों की तरह होता और किसी भी प्रकार का कोई विवाद न उपजता।

आज भी हमारे देश में कई स्त्री-पुरुष ऐसे हैं जो सालों से समलैंगिक संबंधों को जीते आ रहे हैं और एक-दूसरे का ताउम्र साथ निभाने का वचन देकर अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर रहे हैं। इसमें हर्ज ही क्या है यदि कोई दो समलैंगिक एक में अपनी खुशियों को टटोलें?

हाल ही में अभिनेता रीतेश देशमुख पर तथा कुछ वर्षों पूर्व राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर भी समलैंगिक संबंधों का आरोप लगाया गया था। उसके बाद आज स्वास्थ्य मंत्री अंबुमणि रामदास इन संबंधों को हरी झंडी दिखाने का आज खुले तौर पर समर्थन कर रहे हैं तो फिर समाज आज इन संबंधों को स्वीकारने में क्यों पीछे हट रहा है?

शुरुआत तो कहीं से भी होनी चाहिए। अब देखते हैं कि स्वास्थ्य मंत्री का समलैंगिक संबंधों की पक्षधरता संबंधी मैक्सिको में दिया भाषण उनके अपने देश भारत में क्या रंग दिखाएगा?

* निष्कर्ष:-
जिस तरह किसी भी विषय या विचार के दो पक्ष होते हैं तथा दोनों ही पक्ष अपने-अपने तर्कों को प्रमाणित करते हैं। उसी प्रकार 'समलैंगिक संबंधों की मान्यता या अमान्यता' संबंधी विवाद भी तभी सुलझ सकता है जब इसके दोनों पक्षों पर समाज खुले मन से विचार करे जिससे कि समलैंगिक संबंधों पर समाज की स्वीकारोक्ति की मोहर लग सके।
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