गुड़ियाएं कब तक नोंची जाएंगी?

ललि‍त गर्ग
हिमाचल की शांत, शालीन एवं संस्कृतिपरक वादियां गुड़िया के साथ हुए वीभत्स एवं दरिंदगीपूर्ण कृत्य से न केवल अशांत हैं बल्कि कलंकित भी हुई हैं। एक बार फिर नारी अस्मिता एवं अस्तित्व को नोंचने वाली घटना ने शर्मसार किया है। देवभूमि भी धुंधली हुई है, क्योंकि उस पवित्र माटी की गुड़िया जैसी महक को जब दरिंदों ने शिमला के निकट कोटखाई में न केवल हवस का शिकार बनाया बल्कि एक मासूम बालिका को गहरी मौत की नींद सुला दिया। 
 
यह वीभत्स घटना भरी महाभारतकालीन उस घटना का नया संस्करण है जिसमें राजसभा में द्रौपदी को बाल पकड़कर खींचते हुए अंधे सम्राट धृतराष्ट्र के समक्ष उसकी विद्वत मंडली के सामने निर्वस्त्र करने का प्रयास हुआ था। 
इस वीभत्स घटना में मनुष्यता का ऐसा भद्दा एवं घिनौना स्वरूप सामने आया है जिसने न केवल हिमाचल, बल्कि पूरे राष्ट्र को एक बार फिर झकझोर दिया है। एक बार फिर अनेक सवाल खड़े हुए हैं कि आखिर कितनी बालिकाएं कब तक ऐसे जुल्मों का शिकार होती रहेंगी? कब तक अपनी मजबूरी का फायदा उठाने देती रहेंगी। 
 
दिन-प्रतिदिन देश के चेहरे पर लगती इस कालिख को कौन पोछेगा? कौन रोकेगा ऐसे लोगों को, जो इस तरह के जघन्य अपराध करते हैं, नारी को अपमानित करते हैं। इन सवालों के उत्तर हमने 'निर्भया' के समय भी तलाशने की कोशिश की थी। लेकिन इस तलाश के बावजूद इन घटनाओं का बार-बार होना दु:खद है और एक गंभीर चुनौती भी है।
 
गुड़िया बलात्कार कांड और ऐसी ही अनेक शक्लों में नारी अस्मिता एवं अस्तित्व को धुंधलाने की घटनाएं- जिनमें नारी का दुरुपयोग, उसके साथ अश्लील हरकतें, उसका शोषण, उसकी इज्जत लूटना और हत्या कर देना- मानो आम बात हो गई हो। महिलाओं पर हो रहे बलात्कार, अन्याय, अत्याचारों की एक लंबी सूची रोज बन सकती है। गुड़िया का चीखते-चिल्लाते गहरी नींद में सो जाना, मौत की आगोश में समा जाना मानवता की मौत है।
 
गुड़िया के बर्बर गैंगरेप के बाद आक्रोशित युवा सड़कों पर थे लेकिन राजनीतिक नेतृत्व नदारद था। कोटखाई के जंगल में हवस, हैवानियत और दरिंदगी का ऐसा तांडव मनुष्य के रूप में उन भेड़ियों ने किया जिसका शिकार 10वीं में पढ़ने वाली गुड़िया बनी जो हवस, हैवानियत और दरिंदगी की परिभाषा भी नहीं जानती होगी। जंगल में भेड़ियों ने एक मासूम की एक-एक सांस को नोंच डाला। विडंबनापूर्ण तो यह है कि दरिंदों ने मौत के बाद भी उसे नहीं बख्शा। 
 
ऐसी घटना पर लोगों का भड़कना और सड़कों पर उतर आना स्वाभाविक था, क्योंकि हर बार की तरह इस बार भी पुलिस ने मामले को दबाने की पूरी कोशिश की। जनता का कानून से विश्वास उठ गया। हैरानी की बात तो यह है कि इस घटना पर राष्ट्रीय मीडिया भी खामोश रहा।
 
जहां पांव में पायल, हाथ में कंगन, हो माथे पे बिंदिया... इट हैपन्स ओनली इन इंडिया- जब भी कानों में इस गीत के बोल पड़ते है, गर्व से सीना चौड़ा होता है। लेकिन जब उन्हीं कानों में यह पड़ता है कि इन पायल, कंगन और बिंदिया पहनने वाली लड़कियों के साथ इंडिया क्या करता है? तब सिर शर्म से झुकता है। 
 
गुड़िया के साथ हुई त्रासद एवं अमानवीय ताजा घटना हो या निर्भया कांड, नीतीश कटारा हत्याकांड, प्रियदर्शनी मट्टू बलात्कार व हत्याकांड, जेसिका लाल हत्याकांड, रुचिका मेहरोत्रा आत्महत्या कांड, आरुषि मर्डर मिस्ट्री की घटनाओं में पिछले कुछ सालों में इंडिया ने कुछ और ऐसे मौके दिए, जब अहसास हुआ कि भ्रूण में किस तरह नारी अस्तित्व बच भी जाए तो दुनिया के पास उसके साथ और भी बहुत कुछ है बुरा करने के लिए। 
 
वहशी एवं दरिंदे लोग ही नारी को नहीं नोंचते, समाज के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वाले लोग और पंचायतें भी नारी की स्वतंत्रता एवं अस्मिता को कुचलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही हैं। स्वतंत्र भारत में यह कैसा समाज बन रहा है जिसमें महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी हिंसक एवं त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने एक बार हम सबको शर्मसार किया है। 
 
नारी के साथ नाइंसाफी चाहे कोटखाई में हो या गुवाहाटी में हुई हो या बागपत में, यह वक्त इन स्थितियों पर आत्ममंथन करने का है, उस अहं के शोधन करने का है जिसमें वह श्रेष्ठताओं को गुमनामी में धकेलकर अपना अस्तित्व स्थापित करना चाहता है।
 
हमें उन आदतों, वृत्तियों, महत्वाकांक्षाओं, वासनाओं एवं कट्टरताओं को अलविदा कहना ही होगा जिनका हाथ पकड़कर हम उस ढलान में उतर गए, जहां रफ्तार तेज है और विवेक का नियंत्रण खोते चले जा रहे हैं जिसका परिणाम है नारी पर हो रहे नित नए अपराध और अत्याचार। हमें जीने के प्रदूषित एवं विकृत हो चुके तौर-तरीके ही नहीं बदलने हैं बल्कि उन कारणों की जड़ों को भी उखाड़ फेंकना है जिनके कारण से बार-बार नारी को जहर के घूंट पीने को विवश होना पड़ता है। 
 
सवाल यह भी है कि सामूहिक बलात्कार के दौरान गुड़िया की मानसिक व शारीरिक स्थिति क्या रही होगी? हिमाचल की पुलिस ने 8 दिन में इस सनसनीखेज मामले का खुलासा तो किया लेकिन हवालात में ही एक आरोपी की हत्या दूसरे आरोपी द्वारा कर दी जाती है। इससे रहस्य गहरा गया। क्या मृतक आरोपी इस घटना के पूरे रहस्य जानता था या फिर वह सरकारी गवाह बनना चाहता था। इससे पहले कि वह कोई राज उगलता, उसकी जुबां हमेशा-हमेशा खामोश कर दी जाती है।
 
हर बार की घटना सवाल तो खड़े करती है, लेकिन बिना उत्तर के वे सवाल वहीं के वहीं खड़े रहते हैं। यह स्थिति हमारी कमजोरी के साथ-साथ राजनीतिक विसंगतियों को भी दर्शाती है। राजनीतिक दल जब अपना राष्ट्रीय दायित्व नैतिकतापूर्ण नहीं निभा सके, तब सृजनशील शक्तियों का योगदान अधिक मूल्यवान साबित होता है।
 
आवश्यकता है कि वे अपने संपूर्ण दायित्व के साथ आगे आएं। अंधेरे को कोसने से बेहतर है कि हम एक मोमबत्ती जलाएं अन्यथा वक्त आने पर वक्त सबको सीख दे देगा। वक्त सीख दे, उससे पहले हमें जाग जाना होगा। हम निर्भया के वक्त कुछ जागे थे, यही कारण है कि निर्भया केस के बाद देशव्यापी चर्चा के बाद कड़े कानून बनाए गए, निर्भया के बलात्कारियों को फांसी की सजा सुनाई गई। महिला सुरक्षा के मुद्दे पर बहुत कुछ किया गया।
 
जघन्य अपराधों में लिप्त नाबालिगों को कड़ी सजा दिलाने के लिए भी केंद्र सरकार ने कानून में संशोधन किया लेकिन न तो महिलाओं के प्रति दरिंदगी रुकी और न ही हिंसा। बल्कि कड़े कानूनों की आड़ में निर्दोष लोगों को फंसाने का धंधा पनप रहा है जिसमें असामाजिक तत्वों के साथ-साथ पुलिस भी नोट छाप रही है। कानून तो केवल कागजों में बदलता है। उसे व्यवहार में लाने वाले पुलिस तंत्र का मिजाज रत्तीभर भी नहीं बदला है। पुलिस को संवेदनशील बनाने की कोई पहल की ही नहीं गई।
 
महिलाओं के प्रति दरिंदगी उस मानसिकता की देन है जिसके तहत महिला को केवल मोम की वस्तु समझा जाता है। एक कहावत है कि 'औरत जन्मती नहीं, बना दी जाती है' और कई कट्टर मान्यता वाले 'औरत को मर्द की खेती' समझते हैं। कानून का संरक्षण नहीं मिलने से औरत संघर्ष के अंतिम छोर पर लड़ाई हार जाती है। आज की औरत को हाशिया नहीं, पूरा पृष्ठ चाहिए। लेकिन यह कब संभव होगा?
 
समाज के किसी भी एक हिस्से में कहीं कुछ जीवन मूल्यों, सामाजिक परिवेश जीवन आदर्शों के विरुद्ध होता है तो हमें यह सोचकर चुप नहीं रहना चाहिए कि हमें क्या? गलत देखकर चुप रह जाना भी अपराध है। इसलिए बुराइयों से पलायन नहीं, उनका परिष्कार करना सीखें। चिंगारी को छोटी समझकर दावानल की आशंका को नकार देने वाला जीवन कभी सुरक्षा नहीं पा सकता। बुराई कहीं भी हो, स्वयं में या समाज, परिवार अथवा देश में- तत्काल हमें अंगुली निर्देश कर परिष्कार करना चाहिए, क्योंकि एक स्वस्थ समाज, स्वस्थ राष्ट्र व स्वस्थ जीवन की पहचान बनता है। 
 
हमें इतिहास से सबक लेना चाहिए कि नारी के अपमान की एक घटना ने एक संपूर्ण महाभारत युद्ध की संरचना की और पूरे कौरव वंश का विनाश हुआ। गुड़िया जैसी मासूम बालिकाओं की अस्मिता को लूटना और उसे मौत के हवाले कर देने की घटनाएं कहीं संपूर्ण मानवता के विनाश का कारण न बन जाए? 
 

Benefits of sugar free diet: 15 दिनों तक चीनी न खाने से शरीर पर पड़ता है यह असर, जानिए चौंकाने वाले फायदे

Vijayadashami essay 2025: विजयादशमी दशहरा पर पढ़ें रोचक और शानदार हिन्दी निबंध

जानिए नवरात्रि व्रत में खाया जाने वाला राजगिरा आटा क्यों है सबसे खास? जानिए इसके 7 प्रमुख लाभ

Navratri 2025: बेटी को दीजिए मां दुर्गा के ये सुंदर नाम, जीवन भर रहेगा माता का आशीर्वाद

Lactose Intolerance: दूध पीने के बाद क्या आपको भी होती है दिक्कत? लैक्टोज इनटॉलरेंस के हो सकते हैं लक्षण, जानिए कारण और उपचार

इस तस्वीर से क्यों सतर्क होनी चाहिए मोदी सरकार को, ट्रंप-शरीफ-मुनीर की तिकड़ी की मुलाकात के पीछे की कहानी क्या है

Bhagat Singh: इंकलाब जिंदाबाद के अमर संदेशवाहक: भगत सिंह पर सर्वश्रेष्ठ निबंध

28 सितंबर जयंती विशेष: शहीद-ए-आजम भगत सिंह: वो आवाज जो आज भी जिंदा है Bhagat Singh Jayanti

World Tourism Day 2025: आज विश्व पर्यटन दिवस, जानें इतिहास, महत्व और 2025 की थीम

Leh Ladakh Protest: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने और छठी अनुसूची में शामिल होने के बाद क्या होगा बदलाव

अगला लेख