काले हिजाब में से झांकती दो चमकती आंखें बहुत सवाल करती हैं, हंसती हैं, बोलती हैं, नम होती हैं, गुनगुनाती हैं और देख लेती हैं पूरा आसमान जिस पर कहीं कोई हिजाब नहीं है... हिजाब (Hijab) क्या है? वास्तव में हिजाब मुस्लिम महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला वह परिधान है जिससे शरीर आंखों के सिवा अधिकांश हिस्सा ढंका होता है।
मुस्लिम महिलाएं हिजाब को इस्लाम द्वारा महिलाओं को दिया गया तोहफा मानती हैं। धर्म के प्रति एकजुटता दर्शाने के लिए ही 1 फरवरी को विश्व हिजाब दिवस (World Hijab Day) मनाने की शुरूआत हुई। इस संदर्भ में मुस्लिम महिलाओं का मानना है कि इस दिवस विशेष पर हिजाब पहनकर वे अपने उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित होती हैं। विश्व हिजाब दिवस उन्हें एहसास दिलाता है कि हिजाब उनके लिए बंदिश नहीं, बल्कि सबसे अनमोल तोहफा है।
आइये जानें किसी भी मुस्लिम महिला के लिए हिजाब क्या मायने रखता है और कैसे इसके लिए दिवस की शुरुआत हुई।
विश्व हिजाब दिवस की शुरुआत कब?
विश्व हिजाब दिवस शुरू कराने का श्रेय नाजमा खान नामक महिला को जाता है। दरअसल नाजमा खान ने सामाजिक बदलाव के लिए मुस्लिम महिलाओं को प्रेरित करने के उद्देश्य से 1 फरवरी 2013 से हिजाब दिवस मनाने की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य बस यही है कि इस दिन हर मुस्लिम महिला इस्लाम के प्रति अपनी एकजुटता दिखाती हैं और अन्य मुस्लिम महिलाओं को जागरूक करती है। इस दिन मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनकर स्वयं को सुरक्षित और सम्माननीय महसूस करती हैं।
इस दिवस को मानने वाली महिलाओं के लिए हिजाब ईश्वर का दिया वह उपहार है, जो महिलाओं को दुनिया की हर तरह की गंदगी से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस दिन को वे अपनी ताकत के तौर पर मनाती हैं। इस दिन महिलाएं संयुक्त रूप से हिजाब को लेकर एक अभियान चलाती हैं, जिनमें महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उन्हें प्रेरित किया जाता है।
बुरखा अथवा हिसाब पहनने का उल्लेख मुस्लिम धर्म के पवित्र पुस्तक 'कुरआन करीम' में मिलता है। इसमें बताया गया गया है कि मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों का लिबास कैसा होना चाहिए? कुरआन के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं को ऐसे वस्त्र ही पहनने चाहिए जिससे उनकी आंखें, चेहरा, हाथ और पैर किसी पराये व्यक्ति को न दिखे। मुस्लिम महिलाएं बुर्का अथवा हिजाब पहनकर शरीर और चेहरे को ढंककर रखती हैं। अरबी भाषा में हिजाब का आशय सिर को ढंककर रखना। इसे पहनने के बाद महिला के बाल और गर्दन छिपे होते हैं, बस चेहरा या कभी कभी सिर्फ आंखें नजर आती हैं।
शायरा लोरी अली बशीर बद्र साहब के मतले को याद कर लिखती हैं....
है रंग खिजाबे हिरास में
फिर भी महक है सांस में
धडकने यूं ही थमी सी हैं
एक तुम्हारे दीद की आस में
शबे माह भी तीरगी ही रही
रहा चांद लिपटा लिबास में
न वो तुम रहे, न वो ग़जल की रुत
न वो सहरे नज़र रहा पास् में
कुछ फिर पलट ही आएगा
जीते रहे हम इसी आस में
फिर् सजेगा हुस्ने पर्दानशीं
ज़रा आशिक़ाना लिबास में...