त्योहारों का उल्लास इतना होता है कि छुट्टी होती है तब भी हम सुबह जल्दी उठ जाते हैं और ये क्रम आज का नहीं बचपन से चल रहा है। और सच पूछा जाए तो बचपन ही उत्साह से लबरेज होकर हर चीज का मजा उठाता है। इसलिए त्योहारों पर तो सभी का मन बच्चा होने का करता है। ये त्योहार हमें रिश्तों के इन्द्रधनुषी रंगों को भरने का अवसर देते हैं। इंसान को इंसान से जोड़ने का सबब होते हैं ये पर्व। घरों को तो रोशन करें ही दिलों को भी इतना रोशन करें कि इसकी रोशनी दूर तक पहुँचे।
हां, लेकिन इस धुन में हमें कुछ बातों का खास तौर पर ध्यान रखना होगा। दीपावली के उत्साह में पर्यावरण की अनदेखी नहीं करें। आखिरकार ये परिवेश हमारा ही है, यहाँ हमें भी साँस लेनी है, जीना है, इसलिए इसका ध्यान रखें।
हर बदलाव बुरा नहीं होता है, हर नई चीज बुरी नहीं होती है, और हर पुरानी चीज अच्छी नहीं होती है। कहने का मतलब है कि वक्त के साथ आने वाले बदलाव को खुले मन से स्वीकार करें। हर दौर के अपने तरीके होते हैं, बदलाव आना जरूरी है और स्वाभाविक भी। बदलाव को स्वीकारें और जो पुराना है, जिसकी प्रासंगिकता नहीं रही है, उसे छोड़ने से परहेज न करें।
आखिर तो परंपराएं इंसान ने अपने ही लिए बनाई हैं। जहां तक खुशी से निभाई जाए निभाएं लादे नहीं, त्योहारों का अर्थ आनंद है, मजबूरी नहीं। इसके साथ ही ऐसा कुछ भी करें कि उल्लास का उजास अंधेरे कोनों तक भी पहुंचे।