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खुशी देकर लौटें मायके से

Webdunia
- मीना अतुल जैन

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गर्मी की छुट्टियों में मायके जाने की ललक हर उम्र की महिला में होती है। बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ लगते ही इसकी प्लानिंग शुरू हो जाती है। सभी से मिलने की उम्मीद भी इसी समय रहती है। छुट्टियों में मायका यानी बेफिक्री, मनपसंद खाना-पीना, सैर-सपाटा, शॉपिंग और ढेर सारी बातें। बच्चों की मस्ती, शोर-शराबा, आइसक्रीम, चॉकलेट की फरमाइशें पूरी करते नाना-नानी, मामा-मामी।

माँ, भाभी, बहनों व ननदों से गप्पे लगाने में गुजरती आधी रात। गर्मी की छुट्टियों में मायके जाने की ललक हर उम्र की महिला में होती है। बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ लगते ही इसकी प्लानिंग शुरू हो जाती है। सभी से मिलने की उम्मीद भी इसी समय रहती है। छुट्टियों में मायका यानी बेफिक्री, मनपसंद खाना-पीना, सैर-सपाटा, शॉपिंग और ढेर सारी बातें।

बच्चों की मस्ती, शोर-शराबा, आइसक्रीम, चॉकलेट की फरमाइशें पूरी करते नाना-नानी, मामा-मामी। माँ, भाभी, बहनों व ननदों से गप्पे लगाने में गुजरती आधी रात। अगर छुट्टियों के ऐसे ही खुशनुमा कुछ दिन मायके में बीते हों तो पूरे साल के लिए रिचार्ज कर जाते हैं।

अब छुट्टियाँ खत्म हो चुकी हैं व बच्चों के स्कूल शुरू हो गए हैं तो जीवन फिर से उसी पुराने ढर्रे पर चलने लगेगा। जल्दी उठना, टिफिन तैयार करना। वही भागमभाग। लेकिन फिर से उसी दिनचर्या में जुटने से पहले जरा सोचिए कि क्या आपने मायके में अपने व्यवहार से खुशियाँ ही फैलाईं हैं या कुछ ऐसा तो नहीं हो गया कि आपने कुछ कड़वाहट खुद में समेटी या दूसरों को दी है?

आपने ऐसा कहा था?
मायके में दिन की शुरुआत कहीं इन कटु शब्दों के साथ तो नहीं हुई, या आपने ऐसी बातें तो नहीं कीः-

' भाभी आजकल इतना लेट उठती हैं क्या?' ये शब्द किचन से आ रही भाभी के कानों में अवश्य पड़े होंगे।

' आजकल खाने का टेस्ट ही पूरा बदल गया है। माँ आप कितनी टेस्टी दाल बनाती थीं। आज क्या दाल भाभी ने बनाई है..? ऐसी तो मुझे जरा भी पसंद नहीं।'

' पापा, सब्जी, राशन का सामान लाने आजकल आपको जाना पड़ता है क्या?'

' बाप रे... भैया के बच्चे तो अपनी कोई भी चीज मेरे बच्चों को खेलने नहीं देते। पता नहीं क्या समझ रखा है।'

' इतने बड़े-बड़े बच्चे जरा भी काम नहीं करते। इनको कुछ तमीज ही नहीं सिखाई लगता भैया-भाभी ने।'

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' उपहार में ऐसे कपड़े रहने ही दो भाभी, ये तो सिर्फ ब्रांडेड ही पहनते हैं। माँ, आप तो नकद ही दे दिया करो।'

ये तो चंद उदाहरण हैं। ऐसे ही कितने तीखे व कटु जुमलों का प्रयोग बिना सोचे-समझे बचपने में, तो कभी उम्र की ठसक के साथ जानते-समझते आप कर आती हैं। इनको मन में दोहराकर विश्लेषण कर देखिए, क्या आप इन्हें सह सकती थीं।

इन बातों पर करें विचार
मम्मी-पापा के प्रति आपका अत्यधिक अपनापन जतलाने वाला व्यवहार दूसरे सदस्यों को आहत करने का कारण तो नहीं बना।

कहीं आपने पति के ऑफिसर होने का रौब या धनाढ्य ससुराल के गुमान में दूसरे भाई-बहनों को नीचा दिखाने का प्रयास तो नहीं किया।

किशोर व जवान भतीजे-भतीजियों को समझाइश देते समय जुबान बहुत तल्ख तो नहीं हो गई थी, जो उन्हें हर्ट कर गई हो।

मायके के घरेलू मामलों में दखलंदाजी इस हद तक तो नहीं कि‍ वहाँ के सदस्‍यों में आपस में खिंचाव आ गया हो।

याद रखि‍ए मायके में आप मेहमान ही हैं। आपके बगैर जैसा वहाँ चल रहा है वैसा ही रहने दें। कुछ पूछने पर अपनी राय जरूर दें लेकि‍न अपना नि‍र्णय थोपने की कोशि‍श न करें। मायके से हर बेटी का रि‍श्ता अटूट होता है। फुर्सत के क्षणों में बैठकर सोचि‍ए कि‍ आपके व्‍यवहार से इस अटूट रि‍श्ते को कोई चोट तो नहीं पहुँची।

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