नए वर्ष पर हो जीवन में नया सवेरा

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Devendra SharmaND
दुनिया में लाखों तरह के जीव हैं, उसमें मनुष्य के रूप में हमारी जो पहचान है उसे हम सार्थक बनाएँ। मनुष्य के रूप में हमें वे क्षमताएँ मिलीं जो किसी अन्य जीव में नहीं हैं। इन क्षमताओं का उपयोग हम अन्य मनुष्यों के, जीवन के अन्य रूपों की भलाई के लिए कर सकें, यही हमारी प्रार्थना है।

नया सवेरा, नए साल। इस वर्ष की पहली सुबह आने पर हम यही प्रार्थना करेंगे कि नववर्ष में सभी मनुष्यों में आपसी सहयोग बढ़े। वे चाहे घर-परिवार में देखें, गली-मोहल्ले में या देश-विदेश की राजनीति में, हमारा कितना समय और ऊर्जा व्यर्थ के झगड़ों और आपसी होड़ में व्यर्थ चले जाते हैं। यह झगड़े क्यों? यह दूसरों से आगे निकलने की प्रवृत्ति क्यों?

एक बार मनुष्य आपसी झगड़ों और द्वेष से बचकर देखे तो सही कि उसकी क्षमता कितनी बढ़ती है और फिर इस क्षमता का उपयोग दूसरों का दुःख-दर्द कम करने में लगाए तो सबसे पवित्र सुख, सबसे गहरा संतोष उसी में मिलेगा।

इस नए वर्ष के पहले दिन हमारी यही प्रार्थना होगी कि इस सच्चे सुख को प्राप्त करने की अपनी क्षमता विकसित कर सकें। घर के पास कुछ निर्माण कार्य करने आए मजदूर उपेक्षित हैं। पास ही उनके बच्चे ठंड से ठिठुर रहे हैं। क्या हम उनके लिए कुछ गर्म दूध का इंतजाम करें? इतनी ठंड में भी सफाई कर्मचारी सुबह-सुबह अपना कर्तव्य निभाने आ गया है।

क्या हम उनके लिए एक प्याला गर्म चाय ले जा सकते हैं? सामने अमरूद के पेड़ पर फल का स्वाद चखने आई चिड़िया शायद बीमार हो गई है। कैसे दुबकी हुई बैठी है। क्या उसे ठंड लग गई है? यदि हम एक छोटा सा कपड़ा उसकी ऊपर की टहनी पर रख दें, तो क्या उसे कुछ मदद मिलेगी? पता नहीं, पर कुछ कोशिश तो करें। इस पेड़ पर कितनी ही चिड़ियाँ, गिलहरियाँ, तितलियाँ आती हैं पर अब तो यह पेड़ ही संकट में है। कुछ लोग इसे काटना चाहते हैं। क्या हम इसे बचा सकेंगे? एक प्रयास तो करें।
  नया सवेरा, नए साल। इस वर्ष की पहली सुबह आने पर हम यही प्रार्थना करेंगे कि नववर्ष में सभी मनुष्यों में आपसी सहयोग बढ़े। वे चाहे घर-परिवार में देखें, गली-मोहल्ले में या देश-विदेश की राजनीति में, हमारा कितना समय और ऊर्जा व्यर्थ के झगड़ों में चला जाता है।      


दैनिक जीवन की ये बहुत छोटी-छोटी बातें हैं। पर यही हमें व हमारे बच्चों को अपने आसपास की भलाई से जुड़ना सिखाती हैं। हम और हमारे बच्चे दूसरों की भलाई से मिलने वाले उस गहरे संतोष को अनुभव तो करें, हम जानें तो सही कि ऐन्द्रिक सुख के आगे भी कोई अनुभव है। यही तो आज की दुनिया भूलती जा रही है। हम प्रार्थना करें कि हम अपनी भलाई को दुनिया की भलाई से जोड़ना सीखें। हम अपनी सुख, संतोष, सार्थकता वहाँ तलाश करें जहाँ वह दुनिया की भलाई को भी आगे बढ़ाए। हम छीन-झपट से बचें, आपसी सहयोग से आगे बढ़ें। दुनिया में लाखों तरह के जीव हैं, उसमें मनुष्य के रूप में हमारी जो पहचान है उसे हम सार्थक बनाएँ।

मनुष्य के रूप में हमें वे क्षमताएँ मिलीं जो किसी अन्य जीव में नहीं हैं। इन क्षमताओं का उपयोग हम अन्य मनुष्यों के, जीवन के अन्य रूपों की भलाई के लिए कर सकें, यही हमारी प्रार्थना है। इस तरह का जीवन जीने के लिए सबसे पहले तो हमें अपने अंदर की कमजोरियों से ही लड़ना होगा। किसी भी मनुष्य की वास्तविक प्रगति का यह अनिवार्य हिस्सा है कि वह अपने अंदर की कमजोरियों के प्रति सचेत रहे और उनसे ऊपर उठने का प्रयास करे। पर साथ ही हमें कदम-कदम पर बाहरी विरोध का सामना भी करना प़ड़ेगा।

चाहे हम वृक्ष बचाने के लिए आगे आएँ या गरीब व्यक्ति के हितों की रक्षा के लिए, हमें गलत कार्य कर रहे लोगों के स्वार्थों का विरोध सहना पड़ेगा। अतः हमारी प्रार्थना यह भी है कि सार्थक कार्यों की राह परचलते हुए जो विरोध हमारे सामने आए उनका सामना कर उन्हें सहने का साहस हमें मिले। यह साहस हम सँजोते चलें, बढ़ाते चलें तो जिंदगी के और बड़े कार्यों के लिए तैयार हो सकेंगे।

साथ ही विरोध का सामना करने के लिए अन्य साथियों का सहयोग प्राप्त करें, अन्याय के विरुद्ध लड़ने का आधार व्यापक बनाते रहें, तभी सफलता मिलेगी। अतः हमारी प्रार्थना है हम दूसरों की भलाई से जुड़ सकें, अपनी कमजोरियों को दूर कर सकें, अपने साथियों का सच्चा सहयोग प्राप्त कर सकें और सत्कार्य के लिए साहस प्राप्त कर सकें।

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