मृदुभाषी बनिए, लोगों का दिल जीतिए

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- रवीन्द्र गुप्ता
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मीठी बानी या वाणी सभी को लुभाती है। सभी कोई यही चाहते हैं कि मीठा-मीठा ही बोला जाए। कटु, कर्कश, कसैला व झल्लाया हुआ स्वर किसी को पसंद नहीं आता है व लोग इस प्रकार के 'चिल्लू' लोगों से खुद-ब-खुद दूर होने लगते हैं।

अगर आप चाहते हैं कि लोग आपसे भी मीठा-मीठा ही बोलें तो क्यों न अपने से ही इसकी शुरुआत की जाए? देखिएगा, जैसा आपका आचरण होगा, वैसा ही लोगों पर आपका प्रभाव पड़ेगा। मीठा बोलने पर मीठा ही आपको वापस मिलेगा तथा कड़वा बोलने पर कड़वा ही।


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वाणी का पड़ता है प्रभा व

जैसा आप सामने वाले से बातचीत के दौरान शब्दों का प्रयोग करते हैं, वैसा ही प्रभाव सामने वाले पर भी पड़ता है। हमेशा शालीन भाषा का प्रयोग करते हुए सामने वाले को प्रभावित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

हो कोशिश मीठा बोलने क ी

हमें हमेशा मीठा बोलने की कोशिश करनी चाहिए। अगर मीठा बोलने की आदत नहीं हो तो इसका प्रयास किया जाना चाहिए। शुरू-शुरू में ज़रूर दिक्कत आएगी, किंतु बाद में धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ जाएगी।

कहा भी गया है कि 'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' (अर्थात अभ्यास करने से 'जड़मति' यानी मूर्ख भी विद्वान हो सकता है)। इसी प्रकार अंग्रेजी में भी कहा गया है कि- Practice Makes A Man Perfect ( अभ्यास से मनुष्य संपूर्ण बनता है।)


सोच-समझकर बोले ं
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हमेशा सोच-समझकर ही बोला जाना चाहिए। बिना सोचे-समझे बोलने से व्यक्ति मुसीबत में फंस सकता है तथा बाद में उसे सफाई भी देनी पड़ सकती है। किरकिरी होती, सो अलग ही। वाणी के दुरुपयोग से पति-पत्नी में तलाक़, दोस्तों में अलगाव, रिश्तेदारी में खटास, दो देशों के बीच युद्ध आदि भी होते देखे गए हैं। द्रौपदी के तीखे व्यंग्य (वाणी) ने महाभारत की लड़ाई करवा दी थी। यह सभी को ज्ञात है।

कां जा रिया हे त ू

हमने देखा है कि कुछ लोगों का जब ज्यादा ही यारानापन होता है तो वे घटिया से घटिया शब्दावली का इस्तेमाल करने से भी बाज नहीं आते। ऐसा करके वे यह दिखाना चाहते हैं कि हम (दोस्तों) में बहुत ही ज्यादा घनिष्ठता है। किंतु ऐसी घनिष्ठता भी किस काम की, जो व्यक्ति को वाणी का सदुपयोग करना नहीं सिखाती हो। 'कहां जा रहा तू' की जगह अगर वह 'कां जा रिया हे तू' जैसी शब्दावली का प्रयोग करेगा गर व्यक्ति, तो क्या यह शोभा देगा? यह स्वयं ही सोचने की बात है।


हरदिल अज़ीज़ बने ं

बोलने से सामने वाले पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साफ-सुथरे कपड़े, हावभाव, बॉडी लैंग्वेज, आई कॉन्टेक्ट से बात करना आदि ऐसे सकारात्मक गुण हैं ‍जिससे आदमी का व्यक्तित्व निखरता है तथा सामने वाले पर इसका भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। हर व्यक्ति प्रेम का भूखा है। मीठी वाणी सोने में सुहागा का काम करती है। इससे व्यक्ति हरदिल अज़ीज़ बन सकता है।

गांधीजी-अटलजी की भाषण-शैल ी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब भाषण देते थे तो उनको सुनने के लिए अपार भीड़ इकट्ठा हो जाया करती थी, क्योंकि गांधीजी की वाणी में ज़रूर कुछ ऐसा प्रभाव रहता था‍ कि लोग उनको सुने बिना नहीं रह पाते थे। उस साधनहीन ज़माने में भी लोग गांधीजी के आने की सूचना पाकर ही उनके भाषण स्थल की ओर कूच कर जाते थे तथा मंत्रमुग्ध हो उनका पूरा भाषण सुनते थे।

इसी प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की भाषण-शैली का तो कहना ही क्या! उनके बोलने का अंदाज, हाव-भाव तथा समीक्षात्मक विवेचना उनको अद्वितीय बनाती थी। वे जरूर भाजपा के राजनेता रहे हैं, लेकिन उनकी तारीफ़ कांग्रेस सहित अन्य विरोधी दलों के नेता भी करते रहे हैं। साफ़-बेदाग़ व्यक्तित्व तथा बेहतर भाषण-शैली के कारण अटलजी भारतीय राजनीति में आज भी शलाका-पुरुष के रूप में याद किए जाते हैं।

इस प्रकार देखा जाए तो व्यक्ति की जादूभरी वाणी का जादूभरा असर सामने वाले पर पड़ता है। हमेशा मीठा-मीठा बोलने वाला ही दूसरों के दिल में पैठ कर सकता है अत: मीठा बोलिए तथा सबके दिल में बसिए ।

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