मीठी बानी या वाणी सभी को लुभाती है। सभी कोई यही चाहते हैं कि मीठा-मीठा ही बोला जाए। कटु, कर्कश, कसैला व झल्लाया हुआ स्वर किसी को पसंद नहीं आता है व लोग इस प्रकार के 'चिल्लू' लोगों से खुद-ब-खुद दूर होने लगते हैं।
अगर आप चाहते हैं कि लोग आपसे भी मीठा-मीठा ही बोलें तो क्यों न अपने से ही इसकी शुरुआत की जाए? देखिएगा, जैसा आपका आचरण होगा, वैसा ही लोगों पर आपका प्रभाव पड़ेगा। मीठा बोलने पर मीठा ही आपको वापस मिलेगा तथा कड़वा बोलने पर कड़वा ही।
वाणी का पड़ता है प्रभा व जैसा आप सामने वाले से बातचीत के दौरान शब्दों का प्रयोग करते हैं, वैसा ही प्रभाव सामने वाले पर भी पड़ता है। हमेशा शालीन भाषा का प्रयोग करते हुए सामने वाले को प्रभावित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
हो कोशिश मीठा बोलने क ी हमें हमेशा मीठा बोलने की कोशिश करनी चाहिए। अगर मीठा बोलने की आदत नहीं हो तो इसका प्रयास किया जाना चाहिए। शुरू-शुरू में ज़रूर दिक्कत आएगी, किंतु बाद में धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ जाएगी।
कहा भी गया है कि 'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' (अर्थात अभ्यास करने से 'जड़मति' यानी मूर्ख भी विद्वान हो सकता है)। इसी प्रकार अंग्रेजी में भी कहा गया है कि- Practice Makes A Man Perfect ( अभ्यास से मनुष्य संपूर्ण बनता है।)
हमेशा सोच-समझकर ही बोला जाना चाहिए। बिना सोचे-समझे बोलने से व्यक्ति मुसीबत में फंस सकता है तथा बाद में उसे सफाई भी देनी पड़ सकती है। किरकिरी होती, सो अलग ही। वाणी के दुरुपयोग से पति-पत्नी में तलाक़, दोस्तों में अलगाव, रिश्तेदारी में खटास, दो देशों के बीच युद्ध आदि भी होते देखे गए हैं। द्रौपदी के तीखे व्यंग्य (वाणी) ने महाभारत की लड़ाई करवा दी थी। यह सभी को ज्ञात है।
कां जा रिया हे त ू हमने देखा है कि कुछ लोगों का जब ज्यादा ही यारानापन होता है तो वे घटिया से घटिया शब्दावली का इस्तेमाल करने से भी बाज नहीं आते। ऐसा करके वे यह दिखाना चाहते हैं कि हम (दोस्तों) में बहुत ही ज्यादा घनिष्ठता है। किंतु ऐसी घनिष्ठता भी किस काम की, जो व्यक्ति को वाणी का सदुपयोग करना नहीं सिखाती हो। 'कहां जा रहा तू' की जगह अगर वह 'कां जा रिया हे तू' जैसी शब्दावली का प्रयोग करेगा गर व्यक्ति, तो क्या यह शोभा देगा? यह स्वयं ही सोचने की बात है।