स्वास्थ्य है आपका अधिकार

Webdunia
NDND
- निर्मला भुराड़िय ा

कन्या भ्रूण हत्या भारतीय समाज का एक बड़ा कलंक है। कानूनन इस पर रोक लग चुकी है, इसके निषेध संबंधी सामाजिक जागृति लाए जाने की इन दिनों बड़ी चर्चा है। दुआ करें कि हम चर्चाएँ ही न करते रह जाएँ, इन चर्चाओं का कोई प्रतिफल भी निकले। फिलहाल इस चर्चा में एक और बात जोड़ने की जरूरत है, वह है गर्भपात करवाने वाली महिला के शारीरिक स्वास्थ्य की हत्या। इस बात पर शायद ही कोई हो-हवाल होता हो क्योंकि कई लोग गर्भपात को खेल समझते हैं। कई तो परिवार नियोजन के आसान (!) तरीके के रूप में भी गर्भपात का उपयोग करते हैं। अपनी पत्नी के शारीरिक स्वास्थ्य और दुःख-दर्द के प्रति लापरवाह पुरुष सहज तरीके से परिवार नियोजन में भागीदारी की जिम्मेदारी भी नहीं उठाते। 'ठीक है अनचाहा गर्भ हुआ तो पत्नी एबॉर्शन करवा लेगी, इतनी-सी तो बात है।' यह उन्हें इतनी आसान बात लगती है। लेकिन प्रक्रिया के आसान और झटपट हो जाने का मतलब यह नहीं कि यह चलते-फिरते करने वाला कार्य हो जाए।

स्त्री के शरीर में बच्चे के विकसित होने और पैदा होने की प्रक्रिया जितनी जादुई है उतनी ही जटिल भी है। यह बेहद ही नाजुक हारमोन संतुलन पर भी टिकी है, अतः एबॉर्शन का परिणाम सिर्फ इतना भर नहीं होता कि स्त्री के शरीर से कोषाओं का एक गुच्छ निकल गयाऔर सब कुछ पूर्ववत। इसके उलट गर्भपात के पश्चात स्त्रियों के हारमोंस का संतुलन बदलता है, भावनात्मक हलचल भी होती है। कई स्त्रियों को अपराध बोध होता है। और कई अपने इस अपराध बोध को खुद ही नहीं चीन्ह पातीं तो अवसाद आदि में भी चली जाती हैं, क्योंकि डिप्रेशन भी हारमोन असंतुलन ही है। गर्भपात के बाद मोटापे पर काबू न रह पाना। अन्य जटिलताएँ होना आम बात हैं। यदि गर्भपात बार-बार करवाया जाए जैसे बेटा न होने तक कोख में स्त्रीलिंग पाकर, या परिवार नियोजन के सरल (!) उपाय के तौर पर, तब तो कल्पना की जा सकती है कि यह स्त्री के स्वास्थ्य के साथ कितना भयानक खिलवाड़ होता होगा।

यह ठीक है कि जब गर्भपात गैरकानूनी था तब अनचाही संतान से मुक्ति के लिए लोग नीम-हकीमों का सहारा लेते थे। अक्सर नादानी या
SubratoND
जबर्दस्ती से गर्भवती हो गई मासूम लड़कियों पर अनगढ़ हाथों से किया गया, कच्चा-पक्का, अवैज्ञानिक तरीके वाला गर्भपात कहर ढाता था। गर्भपात के कानूनी होने से उससे मुक्ति मिली। गर्भपात जायज होना ही चाहिए। पर स्त्री के स्वास्थ्य की कीमत पर इसका अति उपयोग करना दुरुपयोग की श्रेणी में ही आएगा।

इस देश में स्त्री के स्वास्थ्य के बारे में इतनी लापरवाही बरती जाती है कि अधिकांश स्त्रियाँ बचा-खुचा, बासी-कूसी खाती हैं और ऐसा करने में ही बरकत समझती हैं। फल, दूध, सलाद, ताजा भोजन पर पुरुष का ही पहला अधिकार माना जाता है। जहाँ 'मेरा क्या मैं तो नमक-रोटी खा लूँगी 'जैसे स्त्री वक्तव्यों पर महानता का टैग टाँगा जाता है, वहाँ कोई आश्चर्य नहीं कि गर्भपात को भी एक आसान खेल समझ लिया जाता हो।

Show comments

अंतरराष्ट्रीय बुकर प्राइज क्या है? कब शुरू हुआ और किसे मिलता है? जानिए कौन रहे अब तक के प्रमुख विजेता

स्किन से लेकर डाइबिटीज और बॉडी डिटॉक्स तक, एक कटोरी लीची में छुपे ये 10 न्यूट्रिएंट्स हैं फायदेमंद

ये हैं 'त' अक्षर से आपके बेटे के लिए आकर्षक नाम, अर्थ भी हैं खास

अष्टांग योग: आंतरिक शांति और समग्र स्वास्थ्य की कुंजी, जानिए महत्व

पर्यावरणीय नैतिकता और आपदा पर आधारित लघु कथा : अंतिम बीज

अल्जाइमर समेत इन 6 बीमारियों के लिए सबसे असरदार है मेडिटेशन

बच्चों के नाम रखते समय भूल कर भी न करें ये गलतियां, जानिए नामकरण में किन बातों का रखना चाहिए ध्यान

कांस में ऐश्वर्या ने मांग में सजाया सिन्दूर, दुनिया को दिया देश की संस्कृति और ताकत का संदेश

शक्कर छोड़ने के पहले जान लें वो 8 जरूरी बातें जो आपको पहले से पता होनी चाहिए

Operation Sindoor पर भाषण: सिन्दूर का बदला खून, अदम्य साहस और अटूट संकल्प की महागाथा