Hanuman Chalisa

वीरूबाला रामा की अंधविश्वास से लडा़ई

असम में डायन हत्या

Webdunia
- दिनकर कुमा र
ND
भारत के कई ग्रामीण इलाकों में आज भी अंधविश्वास और रूढ़ियाँ इस कदर हावी हैं कि मनुष्य वहाँ हैवान बन जाता है। कभी टेलीविजन या अखबार के जरिए पता चले भी तो हम उन अशिक्षित लोगों को कुछ क्षण कोसकर भूल जाते हैं। लेकिन ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति असल में हमें खबरदार करती है कि अभी मानसिक रूप से हमें और विकसित होना होगा ।

यह सच है कि सिर्फ कानून बना देने से ही डायन हत्या की कुप्रथा समाप्त नहीं हो जाएग ी, लेकिन इस तरह के कानून के सहारे इस कुप्रथा के खिलाफ जंग छेड़ी जा सकेगी। ऐसी ही एक जंग ग्वालपाड़ा जिले की एक निरक्षर महिला वीरूबाला रामा वर्षों से लड़ रही हैं। वे अपने समाज से डायन हत्या की कुप्रथा को समाप्त करने का अभियान चला रही हैं। सीमित संसाधन और असीमित संकल्प शक्ति के सहारे वीरूबाला रामा आज डायन की कुप्रथा के खिलाफ एक प्रतीक बनकर उभरी हैं। उल्लेखनीय है कि नोबल शांति समिति ने विश्व की जिन 1000 महिलाओं को सम्मानित किय ा, उनमें वीरूबाला रामा भी एक थीं।

देश के कई राज्यों के साथ-साथ असम में आज भी डायन हत्या जैसी कुरीति का प्रचलित होना सभ्य समाज के लिए शर्मनाक सचाई है। असम के विभिन्ना हिस्सों में समय-समय पर किसी महिला को डायन घोषित कर बर्बरतापूर्वक मार डाला जाता है। कई बार इस तरह की बर्बरता का शिकार पूरा परिवार होता है। असम के ग्वालपाड़ ा, बौंगाईगाँ व, कोकराझाड़ और शोणितपुर जिले में इस तरह की वारदातें सबसे अधिक होती हैं।

  गाँव में किसी की मौत होने, कोई अज्ञात बीमारी फैलने, मृत बच्चे का प्रसव आदि घटनाओं के लिए अशिक्षित और अंधविश्वासी ग्रामीण किसी गरीब और असहाय महिला को जवाबदेह मानकर उसे 'डायन' घोषित कर देते हैं और फिर नृशंसतापूर्वक उसकी हत्या कर देते हैं।      
गाँव में किसी की मौत होन े, कोई अज्ञात बीमारी फैलन े, मृत बच्चे का प्रसव आदि घटनाओं के लिए अशिक्षित और अंधविश्वासी ग्रामीण किसी गरीब और असहाय महिला को जवाबदेह मानकर उसे 'डाय न' घोषित कर देते हैं और फिर नृशंसतापूर्वक उसकी हत्या कर देते हैं। कई बार महिला की हत्या करने के अलावा उसके परिवार के दूसरे सदस्यों की भी हत्या कर दी जाती है ।

किसी महिला को डायन घोषित करने के बाद गाँव के लोग सामूहिक रूप से दंड के स्वरूप का निर्धारण करते हैं। कई बार ऐसी महिला को गाँव से निष्कासित कर दियाजाता है या उसके परिवार से आर्थिक जुर्माना वसूला जाता है या उसे शारीरिक रूप से यातनाएँ दी जाती हैं। अंतिम सजा के रूप में महिला की हत्या कर दी जाती है।


जिन महिलाओं को डायन घोषित किया जाता है वे अक्सर आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग की होती हैं या विधवा होती हैं या ऐसे निर्धन परिवार की होती हैं जिसके सदस्य ग्रामीणों के आरोप का सशक्त प्रतिवाद करने की स्थिति में नहीं होते। ऐसी महिलाओं को जबग्रामीण एकजुट होकर सजा सुनाते हैं तो उसका अर्थ होता है कि वह महिला अपने घ र, खेत व अन्य संपत्तियों से बेदखल कर दी जाती है। इसके अलावा उसे अपनी आजीविका के साधन को भी छोड़ देने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। डायन हत्या की कुप्रथा के प्रमुख कारण निरक्षरता और अंधविश्वास हैं।

असम महिला समता सोसायटी सहित कई गैर सरकारी संगठन डायन हत्या के खिलाफ राज्यमें जागरूकता अभियान चला रहे हैं साथ ही पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास के लिए भी कदम उठा रहे हैं। विभिन्न घटनाओं से स्पष्ट हो चुका है कि अंधविश्वास के अलावा संपत्ति को हड़पन े, निजी तौर पर बदला लेन े, यौन उत्पीड़न के प्रतिवाद का सबक सिखाने और एक से अधिक विवाह करने के लिए रुकावट दूर करने जैसे उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी डायन हत्या को बढ़ावा दिया जाता है।

जानकारों के अनुसार इस कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए सबसे पहले इसके मूल कारणों की पड़ताल करने और उसी के आधार पर रोकथाम के उपाय करने की जरूरत है। जागरूकता पैदा करना एक दीर्घकालीन उपाय हो सकता ह ै, लेकिन सबसे पहले पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास और दोषियों को दंडित करने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है ।

एक तरफ सरकार मसले को नजरअंदाज कर रही ह ै, तो दूसरी तरफ शिक्षित समाज इसे गाँव के पिछड़े हुए लोगों की समस्या मानकर उदासीन बना हुआ है। राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर डायन हत्या पर कोई गंभीर बहस छेड़ी नहीं गई है। असम के अलावा राजस्था न, गुजरा त, पश्चिम बंगा ल, बिहा र, महाराष्ट् र, आंध्रप्रदेश और उड़ीसा में डायन घोषित कर महिलाओं की हत्या करने का सिलसिला जारी है।

जिस अवैध तरीके से ग्राम पंचायते ं, किसी महिला को डायन घोषित कर दंडित करती हैं उस कार्रवाई को बेहिचक हत्य ा, धन वसूली और निजी नागरिक की संपत्ति छीनने जैसे अपराधों की श्रेणी में रखा जा सकता है। देश के कानून में ऐसे प्रावधान मौजूद हैं जिनके तहत किसी भी महिला को डायन बताकर दंडित करने वालों को गिरफ्तार कर कानूनी सजा दी जा सकती ह ै, मगर समस्या की गंभीरता को देखते हुए इस कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए अलग से कानून बनाने की जरूरत है।

डायन हत्या की कुप्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए राज्य सरकार और गैर सरकारी संगठनों को एकजुट होकर जागरूकता और पुनर्वास का अभियान चलाना पड़ेगा। इसके अलावा शिक्षित समाज को भी ऐसी पाशविक परंपरा पर रोक लगाने के लिए आवाज बुलंद करनी पड़ेगी।

मजबूत और लंबे बालों के लिए 5 बेस्ट विटामिन जो करेंगे कमाल, जानिए हर एक के फायदे

Hair Care: बालों और स्कैल्प के लिए कॉफी कितनी फायदेमंद है? जानें पूरे फायदे और नुकसान

T Point House Vastu Tips: टी’ पॉइंट वाला घर लेना शुभ या अशुभ, जानें बर्बाद होंगे या आबाद

स्प्राउट्स खाने के बाद नहीं लगेगा भारीपन, जानिए अंकुरित अनाज खाने का सही तरीका

ठंड में रोज यदि 10 बादाम खाएं तो क्या होता है?

Winter Health Tips: सर्दियों में रखना है सेहत का ध्यान तो खाएं ये 5 चीजें

Lala Lajpat Rai: लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि पर जानें 10 अनसुने तथ्य

आतंकवादी डॉक्टर का भारत जैसा ही एक जर्मन उदाहरण

Birsa Munda Jayanti: झारखंड के नायक बिरसा मुंडा की जयंती, जानें इतिहास और 10 रोचक तथ्य

बाल दिवस पर कविता: सृष्टि का संगीत हैं बच्चे