दस्‍तक देती दखल

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मार्गरेट थैचर ने एक बार कहा था- यदि आप अपनी बात आगे बढ़ाना चाहते हैं तो पुरुष से कहिए और यदि आपकी इच्‍छा है कि वो काम पूरा हो जाए, तो महिला से कहिए। यह बात भारत के हालिया विकास पर सटीक बैठती है। भारत में वर्तमान में महिलाएँ पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चलने के बजाय तेजी से आगे बढ़ रही हैं।
कारपोरेट सेक्टर से लेकर कृषि तक, पंचायत से पार्लियामेंट तक, संगीत से समाज तक, खेल से प्रशासन तक महिलाओं ने न केवल अपनी दस्तक दी है बल्‍कि वे पहचान बना रही हैं। हाल के कुछ दशकों में लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है। बेटी अब बोझ नहीं हेल्‍पिंग हैंड है। पत्‍नी न केवल घर सँवारती है, बल्‍कि परिवार की उन्‍नति में पति का हाथ भी बँटाती है, महत्‍वपूर्ण निर्णय लेती है। ऑफिस की वो सबसे जिम्‍मेदार साथी है, जिसके भरोसे कंपनी तरक्‍की कर रही है।
महिलाएँ समाज को आगे बढ़ने और उसे दिशा दिखाने में हर प्रकार की भूमिका अदा कर रही हैं। साथ ही कई जिम्‍मेदारियों को पूरी निष्ठा के साथ निभा रही हैं।
महिलाओं की इस प्रगति के कई सकारात्‍मक पहलू हैं। वे तेजी से काम सीखती हैं। हर माहौल में आसानी से ढल जाती हैं। औरतों में अक्‍सर सकारात्‍मक दृष्‍टिकोण होता है और वे पुरुषों की अपेक्षा सभी निर्देशों पर ज्‍यादा गौर करती हैं। अक्‍सर वे अपनी बात को ज्‍यादा बेहतर तरीके से रख पाती हैं और उनका काम भी नपा-तुला होता है।
महिलाओं की प्रगति में कई नाम आज सामने हैं। कारपोरेट में इंदिरा नूई और चंदा कोचर ने प्रगति के नए कीर्तिमान स्‍थापित किए हैं।
महिलाओं की यह प्रगति कोई एक दिन में नहीं आई है। जनसंख्‍या के अनुपात के आधार पर भी काम में उनकी आधी हिस्‍सेदारी होनी चाहिए और आने वाले दिनों में ऐसा होने के संकेत भी मिलने लगे हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक कुछ वर्षों बाद ऐसे बहुत ही कम अवसर होंगे, जब महिलाओं के लिए काम नहीं होगा। सेना में भी महिलाओं की भर्ती ने इस बात को और बल दिया है।

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