महिला यानी हर मोड़ पर खतरा

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महादेवी वर्मा की कविता है- मैं नीर भरी दु:ख की बदली... । लड़कियाँ मानो माटी की गुड़िया हों। हर मोड़ पर टूटने और बिखरने का डर है। हर मोड़ पर परेशानियाँ। पैदा होने पर परेशानी, पहले ही पता लगा लेते हैं और गर्भ में ही मार दिया जाता है। वहाँ बात नहीं बनी तो 5-6 साल की उम्र में ही सही। पढ़ने से वंचित।

कुछ बड़ी हुई तो बाल-विवाह का डर, वो भी नहीं हुई तो गिद्ध की तरह हर वक्‍त घूरती नजरों का खौफ। अगर पढ़ने-लिखने गईं तो अवसरों का डर। अवसर मिल गए तो उसे बनाए रखने के लिए ‘कीम त ’ चुकाने का डर। शादी के लिए दहेज का डर। दिया तो भी पति और ससुराल में प्रताड़ना का डर, नहीं दिया तो जलाकर मारने का डर। इससे बचकर निकले तो पति की संपत्ति में हिस्‍सेदारी का डर। पति न रहा तो बेटे से गुजारे (भत्ता) का डर। तो फिर दु:ख की बदली कहाँ... सागर ठीक होगा।

गर्भ में भी डर-
भ्रूण हत्‍या के मामलों पर गौर करें तो सबसे पहले ये चौकाने वाले हैं। वर्ष 2000 से 2004 तक दर्ज मामले सिर्फ इकाई में हैं, जिससे इस दावे को बल मिलता है कि कानून हर किसी पर चौकस नजर रख सकता है। बनारस, जयपुर जैसे तेजी से व्‍यापारिक दृष्‍टिकोण से उभरती जगहों पर भी कन्‍या को कोख में मार देने की इबारतें राह चलती दिख जाएँगी। विंध्याचल में तो बाकायदा इस संबंध के पोस्‍टर देखने को मिल जाएँगे कि गर्भपात मात्र 200 रुपए में। जो बच्‍चियों को पनपने के पहले रौंदने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
  महादेवी वर्मा की कविता है- मैं नीर भरी दु:ख की बदली...। लड़कियाँ मानो माटी की गुड़िया हों। हर मोड़ पर टूटने और बिखरने का डर है। हर मोड़ पर परेशानियाँ। पैदा होने पर परेशानी, पहले ही पता लगा लेते हैं और गर्भ में ही मार दिया जाता है।      


घूरती आँखें-
राह चलते जुमले और घूरती आँखें हमेशा पीछा करती हैं। यहाँ पूरे देश की एकजुटता दिखाई देती है। उम्र, वर्ग, रंग, जाति, धर्म ... किसी प्रकार का कोई भेद नहीं दिखाई देता है। 2003-04 में उत्‍पीड़न के मामले 1477 दर्ज हुए, 2002-03 में 2019, 2002-01 में 827, 2000-01 में 1164 मामले दर्ज हुए। वैसे यह चिंता केवल भारत की नहीं है, पूरे विश्‍व की है और यूएस में तो इस पर अपने कई कनवेशन भी घोषित किए हैं। 2006 में सभी अपराधों में से 2 फीसदी मामले छेड़खानी के थे।

संगीन साए में-
अपराध के दायरे तो बढ़े हैं लेकिन शरीर से संबंधित अपराधों के केंद्र में हमेशा महिला ही रही है और इस आँकडे़ में कोई कमी नहीं आई है। कागजी बातों पर गौर करें तो 2003-04 में 190 बलात्‍कार हुए, 2002-03 में 226, 2001-02 में 138 और 2000-01 में 274 मामले दर्ज हुए। लेकिन अपराधों की सुर्खियों पर नजर डालें तो बलात्‍कार और बलात्कार के प्रयासों की खबर हर जिले, राज्‍य में हमेशा नजर आती है। चाहे अखबारों को क्‍यों न इसे मसालेदार बनाने के लिए ही छापा जाए।

दहेज की कीमत पर सात फेरे-
दहेज हत्‍या के 2003-04 में 362 मामले आए, जो 2002-03 में 443 थे। वहीं यह आँकड़ा 2002-03 में 308 और 2002-01 में 536 था। दूसरी ओर दहेज के लिए सताई जाने वाली महिलाओं की तादाद 902, 1072, 726, 943 रही। शादी के बाद भी उनकी समस्‍या में कोई कमी नहीं आई। 2003-04 में 143 महिलाएँ या तो छोड़ दी गईं या उनके पति ने दूसरी शादी रचा ली। 2002-03 में यह आँकड़ा बहुत ज्‍यादा था, इस वर्ष 385 महिलाएँ इस त्रासदी की शिकार हुईं। 2001-02 में 420 मामले सामने आए। 2001- 00 में 188 मामले दर्ज हुए। वहीं 2006 में पति या रिश्‍तेदार की उत्‍पीड़न का मामला कुल अपराधों में से 3.4 फीसदी था।

मारपीट और मानसिक वेदना-
घरेलू अत्‍याचार निवारण बिल के बाद भी औरतों के प्रति दोयम व्‍यवहार में कोई कमी आती नजर नहीं आ रही है। वहीं सरकारी तंत्र भी इसे पूरे ऊर्जा के साथ पारित करने के मूड में नहीं दिख रहा, ताकि इसके प्रभावों के बारे में सकारात्‍मक संकेत जा सकें। गत कुछ वर्षों में महिलाओं के प्रति शारीरिक प्रताड़ना पर नजर डालें तो 2004-03 में 29, 2003-02 में 43, 2002-01 में 38 और 2000-01 में 142 मामले दर्ज हुए।

काम पर भी सुकून नहीं-
कहने को आज महिलाएँ पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। उन्‍हें भी काम के अवसर मिल रहे हैं। लेकिन इसके लिए उन्‍हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। कार्यस्‍थल पर महिलाओं को मानसिक और शारीरिक उत्‍पीड़न का शिकार होना पड़ता है। कार्यस्‍थल पर उत्‍पीड़न पर गौर करें तो 2004-03 में 153, 2003-02 में 203, 2002-01 में 165, 2001-00 में 51 मामले उत्‍पीड़न के दर्ज किए गए।

पुलिस नहीं निरापद-
विडंबना यहीं पर खत्‍म नहीं होती है। कई मामलों में पुलिसिया उत्‍पीड़न और मामला दर्ज करने में उदासीनता का भी शिकार इन महिलाओं और इनके परिजनों को भी होना पड़ता है। वर्ष 2004-03 में 842, 2003-04 में 874, 2002-01 में 324, 2001-00 में 311 मामले दर्ज हुए। जब दूसरों से संबंधित मामले पुलिस में दर्ज नहीं किए तो अपने आप से सीधे तौर पर संबंधित मामले कितने दर्ज किए होंगे, ये काबिले गौर है ।

( सभी ऑकड़े नेशनल क्राइम ब्‍यूरो के आधार पर)

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