ये है मेरा सफलता मंत्र

दोहरी भूमिकाएँ और नारी

गायत्री शर्मा
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नारी की तुलना उस कच्ची माटी से की जाती है, जो अलग-अलग साँचों में ढलकर अपने अलग-अलग रूप बदलती है और अपने हर रूप में परिपक्वता व पूर्णता को प्राप्त करती है। आज नारी ने अपने आत्मविश्वास व प्रतिभा से अपने परिवार व समाज में बहू, बेटी व पत्नी के रूप में अपनी एक अलग व सुरक्षित जगह बनाई है। आज उसके कामयाब होने पर किसी को शर्म नहीं बल्कि गर्व महसूस होता है।

आमतौर पर पुरुषों का नौकरीपेशा होना एक सामान्य बात है लेकिन महिलाओं के लिए ये थोड़ा मुश्किल है। मुश्किल इसलिए क्योंकि जब वह बहू व पत्नी बनकर अपने नए घर में कदम रखती है तब से उसकी जिम्मेदारियाँ कई गुना बढ़ जाती हैं। अब उसकी स्वच्छंदता थोड़ी सीमित होकर मर्यादा के चोले में छिप जाती है।

दाम्पत्य सूत्र में बँधने के साथ ही उसकी जिंदगी बदल-सी जाती है। अब एक ओर जहाँ उसे अपने परिजनों का खयाल रखना होता है तथा तमाम रिश्ते-नाते निभाने पड़ते हैं, वहीं दूसरी ओर उसे घर से बाहर निकलकर एक कामकाजी महिला के रूप में अपने करियर को भी एक नई दिशा देनी होती है।

  केवल नौकरीपेशा ही नहीं बल्कि हर वो गृहिणी भी एक सफल नारी के खिताब की हकदार है, जो अब तक रिश्तों को सहेजते हुए अपने परिवार की बगिया में प्यार के फूल खिला रही है तथा अपनी आने वाली पौध को संस्कारों व मर्यादा की खाद से पोषित कर रही है।      
बाहर एक नौकरीपेशा औरत के रूप में तथा घर में गृहिणी की भूमिका में आज की कामयाब नारी अपनी उत्कृष्टता व उत्तरदायित्व दोनों को बखूबी निभा रही है। आज कई औरतें ऐसी हैं, जो एक बेहतर माँ और पत्नी होने के साथ-साथ अपने कार्यालय की एक सफल कामकाजी महिला भी हैं। प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ दोनों की इन दोहरी भूमिकाओं को निभाते हुए भी नारी जीवन की परीक्षा की हर कसौटी पर खरी उतरकर अपनी उत्कृष्टता का प्रदर्शन कर रही हैं।

' नौकरीपेशा महिलाएँ अपनी दोहरी भूमिकाओं में पारिवारिक रिश्ते और प्रोफेशन दोनों के साथ ईमानदारी कैसे कर पाती हैं? कैसे वो एक कुशल गृहिणी और सफल कामकाजी महिला के रूप में अपनी उत्कृष्टता का परिचय देती हैं?' इस प्रश्न पर हमने कई सफल विवाहित महिलाओं से चर्चा की। आइए जानते हैं उनके इस प्रश्न पर क्या विचार हैं और क्या है उनकी सफलता का मूल मंत् र -

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भोपाल में नाक ो (नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन) की एमपी एड्स कंट्रोल सोसायटी में 'ब्लड सेफ्टी' की स्टेट कंसल्टेंट मोनल सिं ह के अनुसार महिलाओं के लिए अपने जीवन में दोहरी भूमिकाएँ निभाना बेहद ही मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होता है। जहाँ एक ओर ऑफिस के कार्यों को सही ढंग से सम्पादित करना उनका लक्ष्य होता है वहीं दूसरी ओर अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझना भी उतना ही जरूरी होता है।

महिलाओं के लिए घर के छोटे-बड़े सामान से लेकर बच्चों की देखभाल, पति का खयाल व परिवार का मान-सम्मान बनाकर चलना तथा सामाजिक रिश्तों को तवज्जो देना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है परंतु यह खूबी भी तो महिलाओं में ही होती है कि वे हर रिश्ते को ताउम्र निभाने तथा हर कार्य को बखूबी करने की कला व हौसला रखती हैं।
मेरा सफलता मंत्र :- अपनी पर्सनल व प्रोफेशनल लाइफ को एक-दूसरे में अतिव्यापित न होने दें।

साहित्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी का दखल रखने वाली भोपाल की साहित्यकार निशा व्या स मानती हैं कि महिलाओं के लिए कामकाजी व गृहिणी दोनों ही रूपों में अपनी श्रेष्ठता का प्रतिपादन करना बहुत ही अधिक चुनौतीपूर्ण है क्योंकि हमारे समाज का माहौल ऐसा है कि महिला से हमेशा यह अपेक्षा की जाती है कि वो अपनी हर भूमिका को बखूबी निभाए।

महिला स्वयं भी ऐसा ही करना चाहती है कि वो सभी को खुशियाँ दे सके लेकिन यह भी सच है कि एक ही समय में एक व्यक्ति दो जगह नहीं रह सकता है। मैं तो यह मानती हूँ कि महिला सब कुछ कर सकती है बशर्ते वो टाइम मैनेजमेंट को अपनाए।
मेरा सफलता मंत्र :- ' टाइम मैनेजमेंट' स‍ीखकर आप हर कार्य में सफल हो सकते हैं।

शिक्षा व साहित्य के क्षेत्र का जाना-पहचाना नाम इंदौर की पुष्पारानी गर् ग का है। इनके अनुसार महिला और चुनौती दोनों लगभग एक-दूसरे के पर्याय से हैं। वर्तमान में एकल परिवारों के बढ़ते प्रचलन के कारण महिलाओं के नौकरीपेशा होने की आवश्यकता बढ़-सी गई है। अब नौकरीपेशा महिलाओं का प्रतिशत दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है।

महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलकर नौकरी करना चुनौतीपूर्ण इसलिए होता है क्योंकि जहाँ उसे अपने दफ्तर का काम करना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर उसे अपने पति, बच्चों व घर के अन्य सदस्यों की जरूरतों का भी पूरा-पूरा खयाल रखना पड़ता है। इससे उसके शरीर व दिमाग पर दोहरा भार होता है। उसके साथ आर्थिक चुनौतियाँ, रिश्ते, घर का काम, बच्चों का लालन-पालन सभी प्रकार की जिम्मेदारियाँ जुड़ी होती हैं।
मेरा सफलता मंत्र - दृढ़ इच्छाशक्ति, समय प्रबंधन व लगन से हर असंभव कार्य संभव हो जाता है।

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उज्जैन के विद्या भवन स्कूल की बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर की सदस्य व कुशल मंच संचालिका चेताली छजलान ी मानती हैं कि महिलाओं का नौकरीपेशा होना चुनौतीपूर्ण इसलिए होता है क्योंकि उनके साथ परिवार व समाज की अपेक्षाएँ बहुत अधिक होती हैं। हालाँकि परिजन उनके नौकरीपेशा होने को तो कबूल कर लेते हैं परंतु हमेशा उनसे यह भी अपेक्षा करते हैं कि वे घर-परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियों में जरा भी कोताही न बरतें।

पहले घर का काम फिर बाहर का काम, ऐसा उनका मानना होता है। इस प्रकार ‍नौकरीपेशा महिलाओं को जिंदगी में दोहरी जिम्मेदारियों को निभाना होता है। यदि उनके बच्चे हैं तो उन पर ध्यान देना भी महिला क‍ी ही जिम्मेदारी होती है इसलिए यदि महिला में थोड़ी-सी भी समझ है तो वह पारिवारिक रिश्तों को निभाने के साथ-साथ अपने करियर को नई दिशा भी दे सकती है। महिलाएँ यदि अपने परिवार को साथ लेकर, उनका विश्वास जीतकर कोई भी कार्य करती हैं तो अवश्य ही उसमें सफल होंगी।
मेरा सफलता मंत्र- अपने पति व परिवार का विश्वास जीतकर महिला जीवन की हर जंग में सफल हो सकती है।

ये है उन महिलाओं के विचार व सफलता मंत्र, जो आज कुशल गृहिणियाँ होने के साथ-साथ अपने कार्यक्षेत्र में भी सफलता अर्जित कर रही हैं। केवल नौकरीपेशा ही नहीं बल्कि हर वो गृहिणी भी एक सफल नारी के खिताब की हकदार है, जो अब तक रिश्तों को सहेजते हुए अपने परिवार की बगिया में प्यार के फूल खिला रही है तथा अपनी आने वाली पौध को संस्कारों व मर्यादा की खाद से पोषित कर रही है।
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