विश्व की आधी आबादी महिलाओं की है, लेकिन भारतीय समाज में महिला को वह स्थान आज तक प्राप्त नहीं हो सका है जिसकी वह हकदार है। भारतीय समाज सदैव से ही पुरुष प्रधान माना गया है, लेकिन इस कथन के बदलाव की बयार 21 वीं सदी से प्रारंभ हो चुकी है।
स्त्रियों को पुरुष के समान दर्जा दिये जाने का सिलसिला शुरु हो चुका है एवं भारतीय महिलाएं आज प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष से कंधे से कंधा मिलाकर अपना योगदान दे रही है चाहे शिक्षा, बैंकिंग, स्वास्थ्य, मनोरंजन, आई.टी. अथवा राजनैतिक क्षेत्र हो।
कई क्षेत्रों में तो भारतीय महिलाएं पुरुषों से भी कहीं बेहतर योगदान दे रही हैं। भारतीय महिलाओं के इसी जज्बे को सलाम करते हुए ही हमारी सरकारों ने महिलाओं के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया है और इस वित्तीय वर्ष में घोषित प्रथम महिला बैंक निर्भया उल्लेखनीय है।
इसके विपरीत हमारे देश में महिला अत्याचार की बढ़ती घटनाओं ने भारतीय नारी की सुरक्षा पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। दिल्ली गैंगरेप, पंजाब के तरण तारण में सरेआम युवती की पुलिस द्वारा की गयी पिटाई और पटना में महिला शिक्षकों पर किया गया लाठीचार्ज हमारे देश के लिये शर्मिंदगी का विषय है।
भारतीय नारी जिसे अबला कहा जाता रहा है, ने आज अपने कौशल एवं जज्बे से विश्वभर में अपनी एक अलग पहचान कायम की है, आज भारतीय नारी चूल्हे-चौके से बाहर आकर समाज एवं देश निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दे रही है, ऐसे में इस प्रकार की वारदातों ने महिला की सुरक्षा पर ही सवाल खड़ा कर दिया है और हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या नारी सुरक्षित है।