आयोग के कई प्रस्ताव कागजों में ही सिमट कर रह गए और उन्हें अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। बात चाहे लिव इन रिलेशनशिप की परिभाषा में परिवर्तन की हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में महिलाओं का अश्लील चित्रण रोकने या फिर विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव हो।
अलबत्ता, बलात्कार पीड़ित महिलाओं के राहत और पुनर्वास के लिए बनने वाले कानून में राष्ट्रीय महिला आयोग की भूमिका को याद किया जाएगा। इससे संबंधित विधेयक बनाने में आयोग ने खूब गंभीरता दिखाई और इसका असर यह हुआ कि कैबिनेट ने इस विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी और जल्द ही यह विधेयक संसद में पेश किया जाएगा। अप्रवासी भारतीय पतियों के जुल्मों और धोखे की शिकार या परित्यक्त महिलाओं को कानूनी सहारा देने के लिए आयोग की भूमिका सराहनीय रही है।
यह प्रकोष्ठ आप्रवासी मामलों के मंत्रालय और विदेशों में स्थित भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों की मदद से जरूरी सहायता मुहैया करा रहा है। "ऑनर किलिंग" रोकने के लिए शीघ्र ही एक विधेयक लाने की तैयारी हो रही है।