न चांद चाहिए न तारे चाहिए, हमको तो अपना पूरा आसमान चाहिए....

डॉ. छाया मंगल मिश्र
हर बैचेन स्त्री तलाशती है घर, प्रेम और जाति से अलग अपनी एक ऐसी जमीन जो सिर्फ़ उसकी अपनी हो एक उन्मुक्त आकाश जो शब्दों से परे हो... मैनें अपने नाम की जमीन अपने भतीजे के नाम कर दी। जिसके पुरखों की थी उन्हें लौटा दी

ये सुनने के बाद रामकुंवर मां के लिए मेरी आंखों में आदर और प्यार से आंसू और चमक दोनों आ गईं, दिल गदगद हो गया। ये केवल भारत की देवी नारी ही निर्णय ले सकती है जो इस देश की मिट्टी के गुणों को आत्मसात कर जी रहीं हो। 'लज्जा ही नारी का आभूषण है' का जाप करने करने वाले कभी नहीं जानते कि 'खुद्दारी, स्वाभिमान उसका ताज है और स्वविवेक और आत्मनिर्भरता उसका मान'

परिभाषाएं बदल जाती हैं यदि औरतें ठान लें और खुद को पहचान लें। इनकी उम्र कम से कम बहत्तर साल तो होगी ही या शायद ज्यादा। दूसरी कक्षा पास हैं। बारह साल की उम्र में शादी कर दी गई दूर गांव में जहां जानवरों से भी बद्तर व्यवहार किया जाता। जैसे-तैसे पीहर वापसी हुई। समझौते के प्रयास भी हुए जैसे कि हर लड़कियों के लिए किए जाते हैं। पर साथ ही पिताजी ने शर्त रखी कि इंसानियत का बर्ताव करेंगे इसकी ग्यारंटी देते हों तो ही वापिस ससुराल भेजेंगे। पर कोई बात नहीं बनी। फिर शुरु हुआ दौर प्रताड़ना का। ससुराल पक्ष ने कोई कमी नहीं छोड़ी जीवन नरक बनाने के लिए। उनके साथ पूरे पीहर ने भी उनके रुतबे, पहूंच और पैसों का दण्ड भोगा।

जैसा कि हम फिल्मों में देखते हैं उसे इन्होंने जीवन में कम उम्र में भुगता। खौफ इतना कि बारह साल तक घर में ही कैद रहने को मजबूर हो गईं। गुंडों के डर से घर वालों का जीना हराम हुआ। कोर्ट, थाना, कचहरी, आरोप, प्रत्यारोप सब जिल्लतें उठाना पड़ीं। पिता-भाई को खोया। अंततः निकाल हुआ और पति ने दूसरा विवाह किया।
अब रामकुंवर मां की जिन्दगी का सफर शुरू हुआ। पर मैं पिछले दो सालों से उन्हें जानने लगी हूं। मेरे घर के नीचे की जगह पर छोटा सा प्लास्टिक बिछाए सब्जी, बोर, आंवला, बेलपत्र-फल,फूल और भी मौसमी व पूजा उपास-बरत, त्यौहारों से सम्बन्धी सामग्री भी बेचती दिखतीं। प्यार से लबरेज, मीठी बोली, अपनत्व का सागर राम कुंवर मां सारे रहवासियों की अति प्रिय हो गईं। सभी उन्हें खूब मान देते। पर जो खासियत है वो यह है कि कभी किसी से मुफ्त खाती-पीतीं नहीं। हमेशा मोल चुकातीं। जो नहीं लेते उन्हें अपने तरीके से वो चुकता करतीं। ताज़ी सब्जियां, निम्बू, धनिया, या कुछ भी पहले देतीं फिर प्रेम पूर्वक अपना दिया सामान ग्रहण करतीं। स्वाभिमान और सेवा भावना ऐसी कि हजारों बार मैंने उन्हें बिना पैसे लिए पूजन सामग्री व सामान मुफ्त बांटते देखा। पर खोटी नियत के कई सम्पन्न ग्राहकों को झिक झिक करते और उनका सामान चुराते भी देखा।

उनके तराजू, बाट, हंसिया, पैसे नजर हटी दुर्घटना घटी का शिकार हो जाते। वैसे कालोनी के सभी दुकानदार उनका बहुत ख्याल करते हैं। खेतों से सामान ले कई किलोमीटर पैदल चल कर गोम्मट गिरी के आसपास से साधन में बैठ कर गठरी सम्हालती मां अपनी आवश्यकताओं को न्यूनतम कर रखती। पिता ने अपनी जमीन में से इनको जीवनयापन के लिए एक हिस्सा दिया। ससुराल पक्ष को जब मालूम हुआ तो बावजूद संबंध-विच्छेद के फिर से रिश्ते गांठने में देर नहीं की। बेशर्मी का पर्दा आंखों पर डाले पति भी प्रेमी होने को आया। दूसरी बीबी से पैदा बच्चे अपनी बड़ी मां की सेवा को तत्पर हो पड़े। पर ज़माने को परखती, समझती, उम्र की किताबों से सबक लेती, रिश्तों के छल को जानती रामकुंवर मां अब इतनी सायानी तो हो चुकी थी कि नीयत भांप ले। उसका गुजरा समय कोई किसी भी कीमत पर लौटा नहीं सकता। राधास्वामी पर अटूट श्रद्धा रखने वाली, सत्संगों में इस उम्र में भी सेवा देने वाली मां ने वक्त की नजाकत को और होने वाले कपट को भांपा और तुरंत निर्णायक हो गईं। समय रहते जमीन अपने भतीजे को सौंप मुक्त हुईं भौतिक कर्ज से और अब तन,मन,धन से राधास्वामीजी की भक्ति में रमी हैं।
जहां आज निशुल्क पानी भी मिलना दुर्लभ है, वहां ऐसी माताएं आदर्श हैं, जहां पढ़ी-लिखी, सक्षम औरतें समाज से टक्कर लेने में घबराती हैं वहा इन्होने अपवाद बन मिसाल कायम की, अन्याय का जवाब देने का साहस, समझदारी के साथ निश्छल प्यार का ये दरिया हमारे लिए नए आसमान खोलता है, उनकी नेक दिली और विशाल हृदय से निशुल्क वस्तुएं बांट देना उनका बड़प्पन और प्यार का दीपक जलाता है...

उनकी ये कहानी आज महिला दिवस की पूर्व संध्या पर इसीलिए लिखी कि इन्हें न कोई उपलब्धि के अवार्ड चाहिए, न इन्हें मंचों के सम्मान चाहिए इन्हें तो अपना पूरा असमान चाहिए। केवल इनसे ही जिन्दा हैं जिंदगी जीने के लिए अदम्य साहस, बुद्धि, निर्णय, स्वाभिमान, प्यार, संवेदनाएं, इंसानियत जैसी चीजें और उससे भी बढ़कर बिना किसी आडम्बर के नारी होने और उसको जीने का अंदाज। मां राम कुंवर जैसी अनगिनत नारियां इस देश में होंगी जिनके लिए मेरे दिल से हमेशा यही निकलता है एक तू ही धनवान है गौरी बाकी सब कंगाल....

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