घर से लेकर ऑफिस तक। राजनीति से लेकर समाज तक। यह वह दौर है जब महिलाएं हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर रही हैं। कई मामलों में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। ठीक इसी तरह सांप्रदायिकता और अराजकता के इस माहौल में भी महिलाएं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, दरअसल, महिलाएं अपने बच्चों, पति और घर के अन्य पुरुषों को अपनी सकारात्मक सोच और विचार से प्रभावित कर सकती हैं।
इसमें कोई संशय नहीं कि किसी भी पुरुष और बच्चे में सकारात्मक सोच की शुरुआत घर से ही होती है। बच्चा घर में जैसा माहौल देखेगा या उसके परिजन खासतौर से मां जो उसे सिखाएगी, जिन विषयों पर उससे चर्चा करेगीं, वही आगे चलकर उसके विचारों में शामिल होगा। ठीक इसी तरह पुरुषों की सोच, विचार और मानसिकता को भी घर की महिलाएं बहुत हद तक नियंत्रित या यूं कहें कि प्रभावित कर सकती हैं।
महिलाओं की भूमिका को इस सकारात्मक परिपेक्ष्य में इसलिए भी देखा जाना चाहिए क्योंकि शारीरिक तौर के साथ ही मानसिक तौर पर भी उन्हें ‘सॉफ्ट’ माना जाता है। वे कई विषयों को लेकर बेहद संवेदनशील होती हैं।
ऐसे में जब समाज में कोई अराजक स्थिति पैदा होती है तो सबसे पहले महिलाओं से उनकी संवेदनशीलता के पैमाने पर ही अपेक्षा की जाती है।
हालांकि शाहीन बाग इस मामले में अपवाद है। यहां महिलाओं की तय छवि से अलग तस्वीर नजर आई। यह सही है कि यहां महिलाएं अपनी अभिव्यक्ति की आजादी के लिए प्रदर्शन में शामिल हुईं हैं, लेकिन अपने मासूम बच्चों को इसमें शामिल करना, उन्हें ऐसे आंदोलनों का हिस्सा बनाना महिलाओं की छवि से अलग छवि को गढता है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी जगह बनाई है, लेकिन सामाजिक जागरुकता के परिपेक्ष्य में भी महिलाओं के लिए जरुरी है कि वे अपनी ताकत को फिर से पहचाने, अपने स्त्री पक्ष से घर में, समाज में और अपने कार्यक्षेत्र में अपनी सकारात्मक सोच का निर्माण करें।