'कैप्टन कूल' हैं पाँच 'कॉरपोरेट' गुरों से लैस

- हर्षवर्धन प्रकाश

Webdunia
गुरुवार, 31 मार्च 2011 (17:21 IST)
विश्वकप के सुपर सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ शानदार जीत के बाद एक अरब से ज्यादा भारतवासियों के अरमानों के सारथी बने महेंद्रसिंह धोनी में ऐसा क्या है, जो उन्हें दूसरे समकालीन कप्तानों से अलग करता है।
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इंदौर के भारतीय प्रबंधन संस्थान में हुए ताजा अध्ययन के अनुसार टीम इंडिया के कैप्टन कूल अगुवाई के पाँच ‘कॉरपोरेट’ गुरों से लैस हैं, जो उन्हें मैदानी और ‘दिमागी’ खेल में सिरमौर बनाते हैं।

अध्ययन के मुताबिक इन्हीं गुरों के बूते कप्तान धोनी पाकिस्तान जैसे धुर प्रतिद्वंद्वी को धूल चटाने में कामयाब रहे। अब श्रीलंका के खिलाफ मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में दो अप्रैल को होने वाले विश्वकप फाइनल में उनकी कप्तानी की एक बार फिर परीक्षा होनी है।

भारी दबाव और कशमकश से भरी भारत-पाक भिड़ंत की पृष्ठभूमि में धोनी के नायकत्व का अध्ययन किया आईआईएमआई में रणनीतिक प्रबंधन पढ़ाने वाले प्रोफेसर प्रशांत सालवान ने।

सालवान ने अपने अध्ययन के हवाले से बताया कि धोनी का पहला गुर है कि वह एक टीम प्लेअर हैं। आपने कई बार देखा होगा कि कई बार उन्होंने टीम के हित में अपनी स्वाभाविक शैली की आक्रामक बल्लेबाजी नहीं की और सबको साथ लेकर चले।

आईआईएमआई के अध्ययन के मुताबिक धोनी का गुर नंबर दो है कि वह अपने खिलाड़ियों की खूबियों और खामियों को भलीभांति जानते हैं और तमाम जोखिमों के बावजूद उन पर भरोसा करते हैं।

सालवान ने कहा कि किसी कॉरपोरेट फर्म के अध्यक्ष की तरह धोनी अच्छी तरह जानते हैं कि टीम की ताकत को कब और किस तरह भुनाना है। पाकिस्तान के खिलाफ अहम सेमीफाइनल में आर. अश्विन की जगह आशीष नेहरा को आजमाने का जोखिम भरा, लेकिन आखिरकार कामयाब फैसला धोनी के इसी गुण की गवाही देता है।

भारतीय क्रिकेट टीम के 29 वर्षीय कप्तान का तीसरा गुर है कि वह एक संरक्षक की तरह खिलाड़ियों को उनकी प्रतिभा के विकास का पूरा मौका देते हैं। इससे खिलाड़ियों में आत्मविश्वास और पररस्पर विश्वास, दोनों पनपते हैं।

सालवान ने कहा कि ऐसा लगा कि पाकिस्तान के खिलाफ विश्व कप सेमीफाइनल में धोनी युवराजसिंह, हरभजनसिंह और सुरेश रैना में मन में उमड़ रहे भावनात्मक ज्वार को जाँचने में कामयाब रहे और उन्हें मैदान के बाहरी वातावरण से प्रभावित हुए बिना अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने की ओर अग्रसर किया।

धोनी का चौथा गुर गिनाते हुए आईआईएम.आई का अध्ययन बताता है कि वह मौके और माहौल के मुताबिक एक ऐसे खेल की रणनीति बदलने में माहिर हैं, जो अनिश्चितता से भरा है।

अध्ययन में कहा गया है कि पाकिस्तान से खेले गए विश्वकप सेमीफाइनल मैच में धोनी ने क्षेत्ररक्षकों और गेंदबाजों की जमावट को स्थिति के अनुसार बदला। वह अपनी रणनीति में कामयाब भी रहे।

मिसाल के तौर पर भारतीय कप्तान ने निर्णायक पलों के दौरान 42वें ओवर में हरभजनसिंह को गेंदथमाई, क्योंकि वह अपने पाकिस्तानी समकक्ष शाहिद अफरीदी की इस कमजोरी से वाकिफ थे कि वह ललचाती गेंदों पर उँचे शॉट खेलने से खुद को रोक नहीं पाते। अफरीदी ने एक बार फिर गलती की और पाकिस्तान का यह आक्रामक बल्लेबाज महज 19 रन के स्कोर पर हरभजन की गेंद पर वीरेंद्र सहवाग के हाथों लपक लिया गया।

सालवान के अध्ययन के मुताबिक कप्तान धोनी का पाँचवाँ गुर है कि जीत या हार उनके व्यक्तित्व पर बड़ा असर नहीं डाल पाती और दोनों ही सूरतों में उनकी मानसिक दृढ़ता कायम रहती है।

उन्होंने कहा कि धोनी की यह खूबी उनकी मानसिक शांति बनाये रखती है, जिससे उन्हें भविष्य की रणनीति बनाने में मदद मिलती है। इसके अलावा, वह पेशेवर व्यस्तताओं के बावजूद अपने परिवार के साथ मजबूती से जुड़े हैं।

सालवान ने कहा कि राँची से ताल्लुक रखने वाला यह युवा क्रिकेटर अहम फैसले करते वक्त अपने साथी खिलाड़ियों, अनुभवी लोगों और विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाओं का पूरा ध्यान रखता है। यह भी एक सफल नायक की निशानी है। (भाषा)

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