सचिन पर 'महाशतक' का बोझ

- सीमान्त सुवीर

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हम हिन्दुस्तानी एक फन में तो उस्ताद हैं और ये उस्तादी है तुकबंदी करने की और जब तुकबंदी सचिन रमेश तेंडुलकर के बारे में की जा रही हो फिर कहने ही क्या... नई तुकबंदी है 20 मार्च को चेन्नई के चेपॉक स्टेडियम में 'रंग नहीं बल्कि सचिन के बल्ले से रन बरसेंगे'। 20 मार्च के रोज होली है और जाहिर है कि रंगों के इस त्योहार के दिन पूरा देश 'रंगीन' हो जाता है।

जब भी क्रिकेट का कोई बड़ा प्रसंग आता है तो आम प्रचलन में कहा जाता है 'क्रिकेट का महासंग्राम' क्रिकेट के मैदान को 'रनभूमि' की उपमा दी जाती है। क्रिकेट को योद्धा के रूप में पेश किया जाता है और टीम इंडिया को 'धोनी की सेना' के नाम से पुकारा जाता है। इस तरह की तमाम उपमाएँ सुनकर और पढ़कर लगता है कि खिलाड़ी खेलने नहीं किसी युद्ध के मोर्चे पर जा रहे हैं।

पूरी दुनिया में केवल हिंदुस्तानी मीडिया ही ऐसा अनोखा है जो क्रिकेट जैसे शालीन खेल के मैदान को 'जंग का मैदान' बनाने की कवायद में जुट जाता है। जीत पर 'दीवाली' मन जाती है और हार पर 'मातम' मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती। क्रिकेट का जुनून जितना अपने देश में है, शायद ही इतना हल्ला और शोर दूसरे देशों में होता होगा।

कारण ये है कि आज भारत का हर तीसरा आदमी अपने आपको क्रिकेट का विशेषज्ञ मानने का भ्रम पाले रखता है। मैच के पूर्व अपने ज्ञान की उल्टियाँ करता है और मैच के बाद अपने इस ज्ञान को विस्तारित करने से नहीं चूकता। आ प देखिय े इतन े सार े टीव ी चैन ल ह ो ग ए है ं औ र उनक ी मजबूर ी ह ै क ि उन्हे ं आध े घंट े क ा प्रोग्रा म विश्वक प प र देन ा है । क ई चैनलो ं प र रणज ी स े लेक र कु छ वनड े य ा टेस् ट खेलन े वाल े खिलाड़ियो ं क ा जमावड़ ा दिखत ा ह ै ज ो सचि न स े लेक र टी म इंडिय ा त क प र अपन ी जुबा न रगड़त े हु ए नज र आत े रहत े हैं । अपवा द स्वरू प कु छ टीव ी चैन ल ह ी ऐस े है ं, जि न प र सह ी मायन े मे ं तजुर्बेका र टीकाका र आत े है ं औ र सह ी बा त करत े है ं, लेकि न 90 फीसद ी चैन ल कोर ी बकवा स क े सिवा य कु छ नही ं करते।

स च त ो य े ह ै क ि हिन्दुस्ता न क े आ म आदम ी क ा क्रिके ट स े को ई लेन ा- देन ा नही ं है । महानगरो ं मे ं य ह खे ल ए क ' स्टेट स सिंब ल' ब न गय ा है । यान ी ऐस े नगरो ं मे ं पलन े वाल े लोगो ं क ो क्रिके ट क ा ज्ञा न नही ं ह ै त ो उस े ऐस ा लगत ा ह ै क ि मान ो व ह अपराधबो ध स े ग्रस् त है । मुझे आज भी याद है जब भारत ने कपिलदेव निखंज की अगुआई में 28 बरस पहले लॉर्ड्‍स के ऐतिहासिक मैदान पर 1983 का विश्वकप जीता था, तब लंदन से प्रकाशित होने वाले 150 पन्ने वाले अखबार 'न्यूयॉर्क' टाइम्स ने 63वें पन्ने के एक कोने में सात-आठ (एक पैराग्राफ) लाइनों की खबर प्रकाशित की थी कि भारत ने विश्वकप जीत लिया है। ये उस देश के अखबार का हाल था, जिसे दुनिया क्रिकेट का जनक मानती है।

बात शुरू हुई थी सचिन तेंडुलकर से जो इस विश्वकप को आखिरी लीग मैच में वेस्टइंडीज के खिलाफ चेन्नई के चेपॉक स्टेडियम में उतरने जा रहे हैं। इस मैच के लिए मीडिया सचिन को इसलिए इतनी तवज्जो दे रहा है क्योंकि यदि वे वनडे का एक और सैकड़ा जमाने में सफल हो जाते हैं तो वे 'महाशतक वीर' हो जाएँगे। यानी वनडे में उनका यह 49वाँ और टेस्ट के 51 शतकों का कुल जोड़ 100 शतक पर पहुँच जाएगा।

एक बात कभी गले नहीं उतरती कि आप एक क्रिकेटर पर उम्मीदों का इतना दबाव (सिर्फ मीडिया) क्यूँ बना देते हैं कि वो अपना वास्तविक खेल भूलकर 1 अरब 10 करोड़ भावनाओं के बोझ तले दब जाए? सचिन को अपनी जिम्मेदारी और क्षमता का अहसास है। अपने क्रिकेट जीवन का छठा विश्वकप खेलते हुए छठा शतक जमाने का खयाल उनके दिमाग में भी है।

सचिन को ये भी अहसास है कि उनके भीतर खयालों के पंख अभी पूरी तरह झड़े नहीं हैं और उनका एक शतक न जाने कितने मुरझाए चेहरों पर चमक ला सकता है। जब वे मैदान पर बल्लेबाजी करने उतरेंगे तो उनके भीतर भी जज्बातों की चिंगारियाँ भड़क रही होंगी। सचिन के अंदर से उठने वाली आवाज और शतक जमाने के बाद होने वाले मंजर को वो अभी से महसूस कर रहे होंगे।

सवाल ये है कि सचिन जैसे जाँबाज के दमखम की कटार पर धार चढ़ाने वाले आप और हम कौन होते हैं? बस इतनी गुजारिश है कि अपने दिलों में 'सुनामी' जैसी उफनती लहरों पर काबू रखें और 20 मार्च को चेपॉक मैदान में होने वाले पुरकशिश माहौल का इंतजार करें। ताकि सचिन जैसा महान बल्लेबाज अपना नैसर्गिक खेल खेलते हुए शतक बनाए।

इस विश्वकप में अब तक खेले पाँच मैचों में सचिन अपनी क्रिकेट हैसियत का अहसास करवा चुके हैं। इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसी कद्दावर टीमों के खिलाफ वे शतक लगा चुके हैं। इन पाँच मैचों में सचिन ने 64.80 के औसत के साथ 324 रन बटोरे हैं, लेकिन आप इसे दुर्भाग्य मानिए कि दोनों शतकों के बाद भी भारत जीत नहीं सका। आलोचकों को मौका मिल जाता है कि सचिन जब शतक लगाते हैं तो भारत नहीं जीतता। इसमें बेचारे सचिन का क्या कसूर है? इसे आप एक संयोग से ज्यादा कुछ नहीं मान सकते हैं।

क्रिकेट की किताबों में सचिन के शतक और टीम इंडिया के न जीत पाने के बहुतेरे प्रसंग हो सकते हैं लेकिन सचिन पर ये आरोप लगाना बेमानी है कि वे सिर्फ रिकॉर्ड के लिए खेलते हैं। टीम में दूसरे खिलाड़ी भी क्या वे हाथों में चूड़ियाँ पहनकर उतरते हैं? सचिन ने शतक क्या लगाया, वे बेफिक्र हो जाते हैं। टीम में मौजूद ज्यादातर स्टार कहे जाने वाले खिलाड़ी पंख कटे हुए पक्षी की मानिंद नीचे आ गिरते हैं।

37 साल की उम्र, 22 साल का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर, बाजुओं में गजब की ताकत, कलाइयों के जरिये गेंद को दिशा देने की अद्‍भुत क्षमता, बेहतरीन टाइमिंग, ऑन साइट और ऑफ साइट पर कलात्मक ढंग से प्लेसिंग और विरोधी गेंदबाज के सामने गरज-गरजकर बोलने वाले बल्ले को थामने वाले शख्स का नाम है सचिन रमेश तेंडुलकर। यकीन मानिए कि इस कायनात में सचिन जैसे खिलाड़ी एक बार ही जन्म लेते हैं, ठीक उसी तरह जैसे पूरी दुनिया में सुरों की साम्रज्ञी एक ही लता मंगेशकर है।

सचिन‍ रिकॉर्डों के पीछे नहीं भागते, बल्कि रिकॉर्ड उनका पीछा करते हैं। चेन्नई में जैसे ही वेस्टइंडीज जैसी काली आँधी के खिलाफ वे 48 रन बनाएँगे तो उनका एक दिवसीय क्रिकेट में रनों का आँकड़ा 18000 पर पहुँच जाएगा। एक शतक के बाद यह उनके करियर का 100वाँ शतक होगा। एक सैकड़ा छठे विश्वकप में दर्ज किया गया सर्वाधिक छठा शतक होगा और जाहिर है कि ये सब करने वाले वे दुनिया के पहले क्रिकेटर होंगे।

चेपॉक सचिन के लिए भाग्यशाली रहा है और टेस्ट मैचों में वे यहाँ 6 शतक लगा चुके हैं। दुआ कीजिए कि सचिन वेस्टइंडीज के तूफानी आक्रमण को नेस्तनाबूत करके पारी खेलें जो बरसों बरस यादों के झरोखे में रहे। पूरे स्टेडियम में सचिन के नाम का डंका बजे और दिली खुशी तो तब होगी कि टीम के ‍दूसरे खिलाड़ी भी भारत की जीत में सहभागी बने, ताकि होली के त्योहार और उसके सुरूर का आनंद दोगुना हो जाए।

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