'योद्धा संन्यासी' साबित हुए कैप्टन कूल

देवाशीष निलोसे
एडिलेड में पाकिस्तान के खिलाफ विश्व कप के अपने पहले ही मैच में धोनी के धुरंधरों ने हैरतअंगेज प्रदर्शन करते हुए न केवल जीत हासिल की बल्कि करोड़ों क्रिकेटप्रेमियों की आस भी जगा दी है। विराट कोहली पाकिस्तान के खिलाफ पहला शतक बनाने वाले खिलाड़ी के रूप में दर्ज किए गए। 
मैदान पर धोनी की वही पुरानी टीम नजर आई जिसने कई सूरमा टीमों को शिकस्त दी थी। खिलाड़ियों में वही लय, वही सामंजस्य और एकजुटता दिखाई दी। भारतीय सलामी जोड़ी जब मैदान में उतरी तो उनकी बॉडी लेंग्वेज से ही आप पहचान सकते थे कि भारतीय टीम कितनी दृढ़ संकल्पी है। 
 
यकीनन टीम इंडिया की यह वापसी अद्‍भुत है। विश्व कप में उतरने से पहले भारत को ऑस्ट्रेलिया के हाथों टेस्ट में पराजय मिली और उसके बाद त्रिकोणीय क्रिकेट सीरीज में वह एक मैच नहीं जीत सकी थी। निराशा की गर्त से निकलकर उसने पाकिस्तान के खिलाफ जिस तरह का प्रदर्शन किया, वह काबिले तारीफ है। कप्तान धोनी एवं टीम प्रबंधन को सलाम लेकिन अभी तो टीम इंडिया को विश्व कप में लंबा सफर तय करना है। यदि आगाज अच्छा होगा तो अंजाम भी अच्छा ही होगा। 
 
34 रन के स्कोर पर भारत रोहित शर्मा का विकेट गंवा चुका था, उस मुश्किल हालात में शिखर धवन और विराट कोहली ने मोर्चा संभाला। इन दोनों सूरमा बल्लेबाजों ने मानसिक परिपक्वता का परिचय देकर 125 रनों की भागीदारी निभाई और एक बड़े स्कोर की नींव रखी। विराट के शतक में हम शिखर धवन के प्रदर्शन को नकार नहीं सकते। उनकी यह पारी बहुत अहम थी। 
 
163 रनों पर शिखर का विकेट गिरने के बाद रैना ने बखूबी विराट का साथ निभाया और एक और बड़ी साझेदारी की। 110 रनों की इस साझेदारी ने नींव को और पुख्ता किया। सुरेश रैना ने अपनी 74 रनों की साहसिक पारी में सिर्फ 56 गेंदों का सामना किया। उन्होंने कभी भी विराट पर दबाव नहीं आने दिया। 
 
वहीं दूसरी तरफ विराट अपनी मैराथन पारी को आगे बढ़ाते रहे। उन्होंने 126 गेंदों में 107 रन बनाए। मैं विराट की इस पारी को कपिल देव की जिम्बाब्वे के विरुद्ध की पारी और सचिन तेंडुलकर की पाकिस्तान के खिलाफ खेली गई पारी के समकक्ष रखता हूं क्योंकि पाकिस्तान के खिलाफ हमेशा एक अतिरिक्त दबाव हर भारतीय खिलाड़ी पर रहता है। 
 
ऐसे में उस दबाव में संयमित रहकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना विराट जैसे जुझारू और परिपक्व बल्लेबाज से ही संभव था। सचमुच यह उनका 'विराट' प्रदर्शन था, जिसने उन्हें आज विश्व के अग्रिम श्रेणी के बल्लेबाजों में शुमार कर दिया है। विराट की इस अद्‍भुत शतकीय पारी ने रैना व शिखर की जुझारू पारी को जरूर ओवर शेडो किया पर हम इन दोनों पारियों की महत्ता को समझते है, इसी लिए उन्हें भी जीत का सूत्रधार मानते हैं। 
 
भारत के विशाल स्कोर को पार पाने केलिए पाकिस्तान को एक बहुत अच्छी शुरुआत की आवश्यकता थी और यह तभी मुमकिन था, अगर उनके बल्लेबाज ऊपरी श्रेष्ठ पारियां खेलते या भारतीय गेंदबाज दिशाहीन, लयहीन गेंदबाजी करते पर धोनी के वीर तो कुछ और ही सोचे बैठे थे। उनका अपना गेम प्लान था। उन्होंने आक्रामक गेंदबाजी की। हां कभी कभी वे दिशाहीन भी हुए। 
 
भारत-पाकिस्तान के इस मुकाबले में जिसने भी अपनी भावनाओं को वश में किया, वह सफल हुआ। मोहम्मद शमी और उमेश यादव ने उम्दा प्रदर्शन करके क्रमश: चार और दो विकेट झपटे, वहीं दूसरी तरफ मोहित शर्मा, अश्विन और जडेजा ने अ‍पनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। 
 
वैसे देखा जाए तो विश्व कप इतिहास की यह पाकिस्तानी टीम सबसे अपरिपक्व टीम है। कप्तान मिस्बाह ने ही परिपक्व पारी खेली, बाकी सभी अपनी अपरिपक्वता की वजह से अपने विकेट गंवाते रहे। यही अपरिपक्वता पाकिस्तान की हार का कारण भी बनी। अगर अहमद शहजाद और सोहेल थोड़ी जिम्मेदारी के साथ सयंमित रहते तो मैच शायद और रोचक होता। यही फर्क एक परिपक्व खिलाड़ी को महान खिलाड़ियों की श्रेणी में रखता है। 
 
यहां पर हम धोनी की अनुभवी कप्तानी को नजरअंदाज नहीं कर सकते। गजब की व्यूहरचना थी उनकी। अपनी इसी व्यूहरचना में अपने प्रतिद्वंद्वी को फांसना, उलझाना बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैच पर न तो धोनी ने अपनी पकड़ ढीली होने दी और न ही विरोधी को हावी होने का अवसर दिया। 
 
यह सब केप्टन कूल के ही बूते की बात थी। यह काम एक योगी ही कर सकता था। मुझे आज माही को योद्धा संन्यासी कहते हुए कतई संकोच नहीं हो रहा है। उन्होंने अपने गेंदबाजों का चतुराई से उपयोग किया। अश्विन को गेंदबाजी मोर्चे पर लगाकर सोहेल एवं शहजाद की भागीदारी को तोड़ना उनकी कुशल रणनीति दर्शाता है। उनकी यही खूबी उन्हें भारत के ही नहीं बल्कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों की कतार में खड़ा करती है। 
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