बहुत पुरानी बात ह ै एक जंगल हुआ करता थ ा जहाँ हुआ करता था वृक्षों का नृत्य और ठंडी हवाओं के साथ पत्तों की जुगलबंद ी
उसी के पास गोरी-सी नदिय ा नदी किनारे धुली हुई घा स जैसे नदी अभी-अभी नहाकर आई ह ो हवाओं में सुगंध घोलती हुई फूलों की पत्तियाँ और फूलों पर मंडराते हुए भँवरे ं और पहाड़ जब भी अपने हृष्ट-पृष्ठ बदन को पोंछता हुआ नीचे देखता थातो धरती हरी चुनरिया से अपना मुँह ढाँक लेती थ ी जब भी कोई प्रकृति की बात करता है मुझे अकसर बुजुर्गो द्वारा सुनाई गई ये पौराणिक कथा याद आती है।