विज्ञापनों के बोझ तलें पर्यावरण

Webdunia
- धर्मराज जै न

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विभिन्न कंपनियों के विज्ञापन बोर्डों ने शहरों को अपनी चपेट में ले लिया है। शहर का कोई ऐसा खाली हिस्सा नहीं बचा है, जहाँ पर ये विज्ञापन बोर्ड लगे न हों। इन विज्ञापन बोर्डों को लगाने में यदि बीच में कोई बड़ा पेड़ आया है तो उसको बेरहमी से काटने में संकोच नहीं किया गया है, जिससे उपभोक्ता की नजर उस बोर्ड पर दूर से ही पड़ जाए। इससे शहरों के पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ा है।

पेड़ सुख, शांति, समृद्धि और दीर्घायु के प्रदाता माने -गए हैं। ये मनुष्य को प्रकृति के अत्यंत निकट ले जाकर स्वस्थ, प्रसन्ना और सुखी रखते हैं। पेड़ आँधी-तूफान, शोरगुल एवं प्रदूषण से मनुष्य की रक्षा करते हैं। पेड़ों से जीवन प्रदाता ऑक्सीजन और अनुकूल चुम्बकीयतरंगों की प्राप्ति होती है। लेकिन मनुष्य की व्यावसायिक सोच ने इन पेड़ों का निर्ममतापूर्ण दोहन करके प्रकृति की व्यवस्थाओं को छिन्ना-भिन्ना और चौपट कर दिया है। आज गाँवों में पेड़ों के कारण पर्यावरण अभी भी मोटे तौर पर साफ और शुद्ध है, वहीं शहरों में पेड़ों के नहीं रहने से पर्यावरण अधिक प्रदूषित हो चुका है। सड़कों पर बढ़ते वाहनों के दबाव तथा धुआँ उगलते उद्योगों ने शहरों के पर्यावरण को बिगाड़ने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। शहरों में सड़कों के किनारे जो बड़े-बड़े पेड़ थे, उनको सड़क के चौड़ीकरण और शहर के सौंदर्यीकरण के नाम पर काटकर शहर के पर्यावरण को पूरी तरह नष्ट किया जा रहा है। उनमें से कुछ पेड़ किसी कारणवश बच गए थे। किंतु उन पर भी बड़ी-बड़ी कंपनियों की नजर पड़ गई। इन कंपनियों के बड़े-बड़े विज्ञापन बोर्ड उन बचे पेड़ों को उजाड़ने में लगे हुए हैं।

भौतिकता के इस युग में बिना विज्ञापन के कोई भी वस्तु बिकना संभव नहीं है। विभिन्ना देशी-विदेशी कंपनियों ने अपने उत्पाद बेचने के लिए विज्ञापनों का सहारा लिया है। उन कंपनियों ने उत्पादों के प्रचार-प्रसार के लिए भिन्ना-भिन्ना प्रकार से विज्ञापन तैयार करवाए हैं। उन्हें तरह-तरह से प्रचारित और प्रसारित करने का प्रयोग आजमाया जा रहा है। इसमें चट्टानों पर विज्ञापन लिखवाना, ग्लोसाइन बोर्ड, इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड एवं साधारण बोर्ड के जरिए विज्ञापन आदि शामिल हैं। इन कंपनियों में अपने उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए बड़े-बड़े विज्ञापनबोर्डों को व्यावसायिक और औद्योगिक केंद्रों पर लगाने की होड़ मच गई है। अधिकांश ग्रामीण और छोटे शहरों के लोगों को व्यावसायिक कार्य से रोजी-रोटी की तलाश में आवश्यक जीवनोपयोगी वस्तुओं की खरीदी करने के लिए या फिर अच्छी स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने के लिए बार-बार बड़े शहर आना पड़ता है। उन शहरों में देशी-विदेशी कंपनियों को उपभोक्ताओं का एक बड़ा वर्ग उपलब्ध हो जाता है। इसलिए विभिन्ना कंपनियों के विज्ञापन बोर्डों ने शहर को अपनी चपेट में ले लिया है। शहर का कोई ऐसा खाली हिस्सा नहीं बचा है, जहाँ पर ये विज्ञापन बोर्ड लगे न हों। इन विज्ञापन बोर्डों को लगाने में यदि बीच में कोई बड़ा पेड़ आया है तो उसको बेरहमी से काटने में संकोच नहीं किया गया है, जिससे उपभोक्ता की नजर उस बोर्ड पर दूर से ही पड़ जाए। इससे शहर के पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ाहै।

अभी कुछ समय पूर्व मुंबई महानगर पालिक निगम द्वारा शहर में विज्ञापन बोर्डों को लगाने पर रोक लगा दी गई तथा लगे हुए विज्ञापन बोर्डों को हटाकर उन कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की गई एवं जुर्माना वसूल किया गया। इन विज्ञापन बोर्डों को लगाने के लिए कईपेड़ों के काटे जाने से पर्यावरण को बेतहाशा नुकसान पहुँचा था, वहीं चट्टानों पर विषैले पेंटों से विज्ञापन लिखने के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार पर जुर्माना लगाया था।

आज किसी भी शहर में सड़क के दोनों ओर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लगे हुए बड़े-बड़े विज्ञापन बोर्ड आपको नजर आ जाएँगे। ये बोर्ड जितनी जगह घेरते हैं, उसे देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि इनके बीच में कोई पेड़ आया होगा तो निश्चित रूप से उसको काटागया होगा।

शहरों में वैसे ही मोटर वाहनों और कारखानों के कारण प्रदूषण अत्यधिक बढ़ गया है। अब सड़कों के दोनों किनारे लगे पेड़ों के कटने से पर्यावरण के बिगड़ने का खतरा बढ़ता जा रहा है। मुंबई महानगर पालिक निगम द्वारा पर्यावरण को बचाने के लिए जो सार्थक कदमउठाया गया तथा विभिन्ना कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की गई, उसी तरह का सार्थक कदम अन्य बड़े शहरों में उठाकर पर्यावरण को बचाना चाहिए।

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