साल 2021 कई बड़ी सियासी घटनाओं का गवाह बना। गणतंत्र दिवस पर लाल किले कांड से विवादों के घेर में आया किसान आंदोलन साल खत्म होते-होते विजय के उद्घोष के साथ खत्म हो गया। तो कृषि कानूनों को वापस लेने को मोदी सरकार की सबसे बड़ी हार के तौर पर देख गया। पश्चिम बंगाल में भाजपा के तमाम दवाओं के बावजूद ममता बनर्जी न केवल अपना किला बचाया बल्कि भाजपा को चारो खानों चित करते हुए बड़ी हार का मुंह भी दिखाया। बंगाल विजय के बाद अब ममता 2024 में केंद्र में खुद को मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करने के लिए सियासी जुगलबंदी में जुट गई है। वहीं साल 2021 आजादी के बाद के सबसे बड़े आंदोलन किसान आंदोलन की ऊंचाई पर पहुंचने के साथ साल के अंत में खत्म होने का गवाह भी बना।
आइए ऐसे ही 10 बड़ी सियासी घटनाओं पर डालते हैं नजर...
1-बंगाल में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत-साल 2021 की सबसे बड़ी सियासी लड़ाई के तौर पर देखे गए बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। विधानसभा की 294 सीटों में ममता बनर्जी की पार्टी ने 213 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं भाजपा को मात्र 77 सीटें मिली।
भाजपा के चुनाव पूर्व तमाम दावों को नकारते हुए टीएमसी को भाजपा से करीब 10 फीसदी ज्यादा वोट हासिल हुए। बंगाल में भाजपा को मात देने क बाद अब ममता बनर्जी खुद को केंद्र की राजनीति में स्थापित करने की कोशिश में है। 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर खुद को पेश कर रही ममता गैर भाजपा और गैर कांग्रेस गठबंधन की ओर बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।
2-बदल गए मोदी सरकार के चेहरे-कोरोना और किसान आंदोलन की चुनौतियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल कर अपनी पार्टी के साथ-साथ विरोधियों को भी चौंका दिया है। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने डॉ. हर्षवर्धन, रविशंकर प्रसाद, रोमेश पोखरियाल निशंक और प्रकाश जावड़ेकर जैसे कद्दावर 12 मंत्रियों को एक झटके में कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया, मनसुख मंडाविया सहित 36 चेहरों को कैबिनेट में शामिल किया।
3-पेगासस बना सियासी मुद्दा- साल 2021 में पेगासस जासूसी कांड भारत में सियासी गलियारों में छाया रहा है। पेगासस स्पाइवेयर के जरिए देश में कई पत्रकारों और चर्चित हस्तियों के फ़ोन की जासूसी कराने का दावा सरकार पर लगाया गया। जबकि सरकार ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। जुलाई में सामने आई रिपोर्ट में भारत में 300 भारतीयों के फोन टैप करने का दावा किया गया। इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रहलाद पटेल आदि के नाम शामिल थे। पेगासस जासूसी कांड को लेकर संसद का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया है।
4-राज्यसभा से 12 सांसदों के निलंबन पर हंगामा-संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही राज्यसभा से 12 सांसदों को को पूरे सत्र के लिए सस्पेंड कर दिया गया। मानसून सत्र में हंगामे के चलते सांसदों के निलंबन की कार्यवाही विरोध में पूरा शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। विपक्ष ने इसे सरकार की तानाशाही बताते हुए लोकतंत्र का गला घोंटने वाला कदम बताया। वहीं सत्ता पक्ष सांसदों के बिना शर्त माफी मांगने की मांग पर अड़ा रहा। सांसदों के निलंबन के विरोध के सुर संसद से लेकर सड़क तक सुनाई दें। विपक्षी सांसदों ने सड़क पर मार्च भी निकाला।
5-चुनाव के लिए सियासी गठबंधन- 2022 के शुरुआत में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का शंखनाद 2021 में हो गया। देश के सबसे बड़े राज्य को जीतने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। चुनाव से पहले अपने खेमों को मजबूत करने के लिए भाजपा और समाजवादी पार्टी छोटे दलों के साथ गठबंधन करती रही। भाजपा ने निषाद पार्टी के साथ अन्य कई छोटे दलों के साथ गठबंधन किया। वहीं भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया तो 2017 की हार से सबक लेते हुए अखिलेश यादव चाचा शिवपाल यादव को अपने साथ लाने में कामयाब रहे।
6-काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण- उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में लोकार्पण की सियासत और उस पर श्रेय लेने की राजनीति भी खूब हुई। साल खत्म होते-होते पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण हुआ। एक ओर जहां पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के जरिए भाजपा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश की। तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय सीट वाराणसी में एक भव्य कार्यक्रम में श्री काशी विश्वनाथ धाम राष्ट्र को समर्पित कर हिंदुत्व के कार्ड को और मजबूत कर दिया।
भव्य लोकार्पण कार्यक्रम में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री भी शामिल हुए। बाबा विश्वनाथ का अभिषेक करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद गंगा से जल लेकर मंदिर तक पहुंचे। कार्यक्रम के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कॉरिडोर बनाने वाले कारीगरों के साथ भेंटकर भोजन किया और फोटो भी खिचवाई। वहीं देर रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी संसदीय सीट में विकास कार्यों का जायजा लेने के लिए बनारस की सड़कों पर निकले।
7-लालकिला कांड और टिकैत के आंसू- केंद्र सरकार के लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में शुरु हुए किसान आंदोलन में 26 जनवरी को किसानों ने दिल्ली में टैक्टर रैली निकाली। संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से निकाली गई टैक्टर रैली हिंसक हो गई है और कुछ प्रदर्शनकारी ऐतिहासिक लाल किले पर चढ़ गए। प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर चढाई करते हुए वहां अपना झंडा फहरा दिया। इस घटना से शांतिपूर्ण चल रहे किसान आंदोलन पर बड़ा आघात पहुंचा और आंदोलन पर सवालिया निशान उठा गए। लालकिला कांड पर जमकर सियासत भी हुई और भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ गए।
लालकिला कांड के बाद सवालों से घिरे किसान आंदोलन की प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे। इस बीच जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने किसान नेता राकेश टिकैत को जबरन उठाने की कोशिश की तो राकेश टिकैत रो दिए और टिकैत के आंसू खत्म हो रहे किसान आंदोलन में संजीवनी का काम किया और देखते-देखते आंदोलन फिर खड़ा हो गया।
8-लखीमपुर कांड में किसानों की मौत- किसान आंदोलन के बीच में ही 3 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृहराज्यमंत्री अजय मिश्रा का विरोध करने पर उनके बेटे आशीष मिश्रा ने विरोध कर रहे किसानों जीप चढ़ा दी जिसमें कई किसानों की मौत हो घई। घटना के बाद भीड़ ने गाड़ी को आग लगाने के अलावा ड्राइवर समेत चार लोगों पीट-पीटकर मारा डाला। पुलिस ने आशीष मिश्रा के बेटे पर इरादत हत्या का केस दर्ज किया तो गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा के इस्तीफे को लेकर विपक्ष संसद से लेकर सड़क तक विरोध प्रदर्शन किया।
9-कृषि कानून रद्द,किसान आंदोलन खत्म- पूरे वर्ष भर कृषि कानून पर जारी रहने वाली सियासी तकरार के बीच दिल्ली बॉर्डर पर जब किसानों के आंदोलन के एक साल पूरे हो रहे थे उसी बीच गुरुनानक जयंती यानि प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक से किसानों से माफी मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया और संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन कृषि कानून वापस ले लिए गए।
कृषि कानून की वापसी के बाद किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन को खत्म करने का एलान कर दिया। इसके बाद 11 दिसंबर को आंदोलन स्थल पर विजय पर्व मानने के बाद किसानों ने दिल्ली बॉर्डर को खाली कर दिया और 15 दिसंबर को किसान नेता राकेश टिकैत भी दिल्ली बॉर्डर वापस अपने गांव लौट आए।
10-अध्यक्ष के चुनाव से लेकर बगावत तक जूझती रहीं कांग्रेस- देश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इस साल भी अपने अध्यक्ष का चुनाव नहीं चुन पाई वहीं पार्टी में शीर्ष स्तर पर अंदरूनी गुटबाजी समय-समय पर खुलकर सामने आती रही। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी, सलमान खुर्शीद और राशिद अल्वी की किताब ने कांग्रेस की जमकर किरकिरी करवाई।