अंधकार से ज्योति की ओर

मोक्ष का शॉर्ट- अंतिम

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
।।ॐ।।असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतंगमय।।ॐ। ।
‘‘असत्य से सत्य की ओर मुझे ले चलो, अंधकार से ज्योति की ओर मुझे ले चलो, मृत्यु से अमृत की ओर मुझे ले चलो।’ ’

सिर्फ कुछ कदम पर है मोक्ष- उठो, चलो और पा लो। अब हम आपको धर्म का मर्म बताते हैं। इसे छोड़कर बाकी सब प्रपंच है।

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पहले यह जाने:-
क्या मिलेगा मोक्ष से : आँखों के बगैर देखने की ताकत, कानों के बगैर सुनने की ताकत, मन और मस्तिष्क के बगैर बोध करने की ताकत, जन्म और मरण के चक्र से बाहर निकलकर स्वयं को कहीं भी किसी भी रूप में अभिव्यक्त करने की ताकत और सच मानो तो इस ब्रह्मांड से अलग रहने की ताकत। ब्रह्मांड से अलग वही रह सकता है, जो ब्रह्म स्वरूप शुद्ध चैतन्य है।

क्या हैं मोक्ष : मोक्ष का अर्थ अणु-परमाणुओं से मुक्त साक्षीत्व पुरुष हो जाना। तटस्थ या स्थितप्रज्ञ अर्थात परम स्थिर, परम जाग्रत हो जाना। ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय का भेद मिट जाना। इसी में परम शक्तिशाली होने का 'बोध' छुपा है, जहाँ न भूख है न प्यास, न सुख, न दुख, न अंधकार न प्रकाश, न जन्म है, न मरण और न किसी का प्रभाव। हर तरह के बंधन से मुक्ति। परम स्वतंत्रता अतिमानव या सुपरमैन।

मोक्ष के प्रकार : छह मुक्ति कही गई है- (1) साष्ट्रि, (ऐश्वर्य), (2) सालोक्य (लोक की प्राप्ति), (3) सारूप (ब्रह्मस्वरूप), (4) सामीप्य, (ब्रह्म के पास), (5) साम्य (ब्रह्म जैसी समानता) (6) लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।

योग में समाधि के दो स्तर बताएँ गए है- (1) संप्रज्ञात और (2) असंप्रज्ञात। संप्रज्ञात समाधि वह स्थिति है जिसमें ध्यान के विषय का अनुभव होता है, और जब ध्यान के विषय की चेतना भी अदृश्य हो जाती है तो यह असम्प्रज्ञात समाधि है।

सिद्धियाँ : मोक्ष मार्ग पर कदम बढ़ाते ही बहुत-सी चमत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, जिन्हें सिद्धियाँ कहते हैं, किंतु इनके प्रलोभन में उलझने वाला अंतत: पछताता है। फिर भी जान लें कि अट्‍ठारह सिद्धियाँ होती हैं- (1) अणिमा, (2) लघिमा, (3) गरिमा, (4) प्राप्ति, (5) प्राकाम्य, (6) महिमा, (7) ईशित्व, (8) वशित्व, (9) सर्वकामवा सादिता (10) सर्वज्ञ, (11) दूरश्रवण, (12) परकाया प्रवेश, (13) वाक्य सिद्धि, (14) कल्पवृक्ष, (15) सृष्टि शक्ति, (16) सहांरशक्ति, (17) अमरत्व और (18) सर्वाग्रगण्यता।

अब जानें शॉर्ट कट:-
अष्टावक्र, कृष्ण, बुद्ध और महावीर सभी यही कहते हैं कि सिर्फ साक्षी बनो साक्षी का अर्थ हैं विटनेस, गवाह। इस साक्षीत्व के भी साक्षी बनो इसे अणु को तोड़कर देखने जैसी प्रक्रिया कह सकते हैं। फिर 'जागरण' जिसे अवेयरनेस कह सकते हैं को गहराओ।

जब यह अभ्यास जाग्रत अवस्था में गहराएगा तो आपके स्वप्नों में आपकी घुसपैठ बढ़ जाएगी। आप सपने देखेंगे लेकिन होशपूर्वक अर्थात आपको इसका भान होगा कि यह सपना चल रहा है। फिर जब यह अभ्यास और गहराएगा तब आपकी घुसपैठ सुषुप्ति में भी बढ़ जाएँगी। आप गहरी ‍नींद में होंगे लेकिन आपको इस बात का होश होगा कि 'मैं' गहरी नींद में हूँ। बस यहीं से शरीर से अटैचमेंट खत्म होना शुरू।

कैसे होगा संभव : न योग करना है न ध्‍यान। न भोग, न दमन, न संयम और न नियम, बस जागरण। सारे उपाय इसलिए हैं कि तुम्हारी तंद्रा को तोड़ा जा सके। क्या बगैर उपाय के तुम अपनी तंद्रा तोड़ने का प्रयास नहीं कर सकते? करना कुछ भी नहीं है पहले यंत्रवत जीते थे अब अयंत्रवत जियो। जैसे तुम्हारे और इस आलेख के बीच एक फासला है बस उस तरह तुम्हारे समस्त क्रियाकलाप और विचारों के बीच भी तुम्हारा फासला होना चाहिए। सोचते वक्त सोचें कि कोई सोच रहा है। दुनिया को फिर से गौर से स्थिर चित्त हो देखें। देखो प्रत्येक व्यक्ति को, जो कितना यंत्रवत और बेहोशी भरी धुन में जी रहा है। लोग जागे हुए भी सोए-सोए से लगते हैं। असली जागरण की ओर बढ़ो।

तुम्हारी स्थिति : तुम इस ब्रह्मांड में एक ऐसी धरती पर हो जो रेत के एक कण बराबर की है उस पर तुम हो। तुम एक मनुष्य हो। सोचते हो, दुख करते हो, खुश होते हो जैसे कि अन्य जानवर भी यही करते हैं। तुम अपने ‍भीतर वैराग्य भाव मत लाओ लेकिन जानों की क्या मैं इतना कमजोर हूँ कि अस्थिर चित्त हूँ। शरीर हूँ, आत्मा तो कतई नहीं?

अंतत: जब भी होश आए कि अरे! मैं जिंदा हूँ, धरती पर हूँ, मानव हूँ तब पूरी तरह से भीतर ठहर जाएँ भीतर की सारी गतिविधियाँ रोक दें, गहरी साँस ले और उसे भीतर-बाहर जाते हुए महसूस करें और अपने चारों ओर का होशपूर्वक सिंहावलोकन करें, बस इतना ही करते रहें तो सत्य मान लो की आपकी मौत सामान्य लोगों कि तरह नहीं होगी। इसे ही कहते है अंधकार से ज्योति की ओर चलना।

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