Festival Posters

सेक्स और भय...!

योग का मनोविज्ञान जानें

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
।।ॐ।।योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:।।ॐ। ।

हमने सुना है कि सिग्मंड फ्रायड का मानना था कि सारे मनोरोगों का कारण सेक्स है। इसे वे सेक्स मनोग्रस्तता कहते थे। पूरा पश्चिम इसी रोग से ग्रस्त है। चौबीस घंटे सेक्स की ही बातें सोचना। कहते हैं कि फ्रायड भी इसी रोग से ग्रस्त थे। उनके शिष्य कार्ल गुस्ताव जुंग के अनुसार मृत्यु का भय ही मूल में सभी मनोरोगों का कारण है। आश्चर्य कि गुरु और शिष्‍य में इतनी असमानता। कहते हैं कि पूरा पूरब इसी रोग से ग्रस्त है तभी तो वह जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाना चाहते हैं।

ND
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिन्होंने भारतीय मनोविज्ञान की धारणा को समझा है उनके लिए यह दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में अधूरे थे, लेकिन फिर भी इनकी प्रतिभा पर शंका नहीं की जा सकती, क्योंकि उन्होंने इतना तो किया कि मन के एक हिस्से को खुद समझा और दुनिया को समझाया। मनोविज्ञान के क्षेत्र में इनके योगदान को भूला नहीं जा सकता।

दुःख की बात है कि दुनिया के महान मनोवैज्ञानिकों में इनकी गिनती की जाती है और हम भारतीय इन्हें बड़े चाव से पढ़कर लोगों के समक्ष इनकी बातें इसलिए करते हैं कि कहीं न कहीं हम स्वयं को बौद्धिक साबित करना चाहते हैं- यह तीसरे तरह का मनोरोग है।

पतंजलि से श्रेष्‍ठ मनोवैज्ञानिक खोजना मुश्‍किल है। पतंजलि कहते हैं कि इस 'चित्त' को समझो। पतंजलि मानते हैं कि सभी रोगों की शुरुआत चित्त की अतल गहराई से होती है। शरीर और मस्तिष्क पर उसका असर बाद में नजर आता है। चित्त का अर्थ है अंत:करण। योग में ‍बुद्धि, अहंकार और मन इन तीनों को मिलाकर 'चित्त' कहा गया है। मन को जानने को ही मनोविज्ञान कहते हैं, लेकिन अब आप सोचें मन से बढ़कर तो चित्त है। इस चित्त को समझना पश्चिमी मनोवैज्ञानिकों के बस की बात नहीं।

पतंजलि का दर्शन:
वृत्तियाँ पाँच प्रकार की होती है:- (1) प्रमाण, (2) विपर्यय, (3) विकल्प, (4) निद्रा और (5) स्मृति। कर्मों से क्लेश और क्लेशों से कर्म उत्पन्न होते हैं- क्लेश पाँच प्रकार के होते हैं- (1) अविद्या, (2) अस्मिता, (3) राग, (4) द्वेष और (5) अभिनिवेश। इसके अलावा चित्त की पाँच भूमियाँ या अवस्थाएँ होती हैं। (1) क्षिप्त, (2) मूढ़, (3) विक्षित, (4) एकाग्र और (5) निरुद्ध। ऊपर लिखें एक-एक शब्द और उनके अर्थ को समझने से पतंजलि के मनोदर्शन का पता चलता है।

चित्त वृत्तियाँ:
(1) प्रमाण: प्रमाण के तीन प्रकार है- प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द। यही शुद्ध चित्त वृत्ति है कि हम जैसा देख रहे हैं वैसा ही व्यक्त कर रहे हैं।
(2) विपर्यय: विपर्यय को मिथ्याज्ञान कहते हैं। इसके अंतर्गत संशय या भ्रम को ले सकते हैं। जैसे रस्सी को देखकर हम उसे साँप समझने की भूल करते रहें।
(3) विकल्प: शब्द ज्ञान से उपजा सत्यशून्य ज्ञान जिसे 'कल्पना' मात्र माना गया है। यह ठीक वैसा ही है जैसे कि खरगोश के सिर पर सिंग की कल्पना की जाए। कल्पना में जीने वाले लोगों की ही संख्या अधिक है।
(4) निद्रा: निद्रा ज्ञान का अभाव मानी जाती है, किंतु इसके वृत्तित्व में संदेह नहीं किया जा सकता क्योंकि सोते वक्त नहीं, जागने पर व्यक्ति को भान होता है कि उसे खूब गहरी नींद आई।
(5) स्मृति: संस्कारजन्य ज्ञान है। इसके कई विस्तृत पहलू है। इससे भी कई तरह के मनोरोग उत्पन्न होते हैं।

पंच क्लेश:
(1) अविद्या : अनित्य, अशुचि, दुख तथा अनात्म में नित्य, शुचि, सुख और आत्मबुद्धि रखना अविद्या है, यह विपर्यय या मिध्याज्ञान हैं।
(2) अस्मिता : पुरुष (आत्मा) और चित्त नितांत भिन्न हैं दोनों को एक मान लेना अस्मिता है।
(3) राग : सेक्स के बजाय हम इसे राग कहते हैं। विषय सुखों की तृष्णा या आसक्ति राग है।
(4) द्वेष : सुख के अवरोधक और दुख के उत्पादक के प्रति जो क्रोध और हिंसा का भाव है उसे द्वेष कहते हैं।
(5) अभिनिवेश : आसक्ति और मृत्यु का भय स्वाभाविक रूप से सभी प्राणियों में विद्यमान रहता है।

चित्त की अवस्थाएँ:
(1) क्षिप्त : क्षिप्त चित्त रजोगुण प्रधान रहता है। ऐसे व्यक्ति बहुत ज्यादा व्यग्र, चंचल, अस्थिर और विषयोन्मुखी रहते हैं। यह सुख-दुख में तूफान से घिरी नाव की तरह है।
(2) मूढ़ : मूढ़ चित्त तमोगुण प्रधान है। ऐसा व्यक्ति विवेकशून्य, प्रमादी, आलसी तथा निद्रा में पड़ा रहता है या विवेकहीन कार्यो में ही प्रवृत्त रहता है।
(3) विक्षिप्त : विक्षिप्त का अर्थ विशेष रूप से क्षिप्त, अर्थात अधिक क्षिप्त नहीं, लेकिन क्षिप्त से उत्तम। विक्षिप्त चित्त में सत्वगुण की अधिकता होती है, लेकिन कभी-कभी रजोगुण भी जोर मारता है।
(4) एकाग्र : चित्त की चौथी अवस्था में यहाँ रज और तम गुण दबे रहते हैं और सत्व की प्रधानता रहती है। चित्त बाहरीवृत्तियों से रहित होकर ध्येयवृत्ति पर ही स्थिर या एकाग्र रहता है। लक्ष्य के प्रति एकाग्र रहता है।
(5) निरुद्ध : इस अवस्था में वृत्तियों का कुछ काल तक निरोध हो जाता है, किंतु उसके संस्कार बने रहते हैं।

उक्त पाँच अवस्थाओं में से प्रथम तीन अवस्थाओं को समझना आवाश्यक है क्योंकि यही सारे मनोरोगों की जड़ का हिस्सा है। अब यहाँ यह कहना आवश्यक है कि चित्त वृत्तियाँ क्या है इसे समझने से ही क्लेश और अवस्थाएँ समझ में आती है। पातंजलि का मनोविज्ञान पश्चिम के मनोविज्ञान से कहीं आगे, विस्तारपूर्ण और पूर्ण मनोविज्ञान है। जरूरत इस बात की है कि हम भारतीय उनके दर्शन को गंभीरता से लेते हुए उसे मनोविज्ञान की किताबों में शामिल करें।

Heart attack symptoms: रात में किस समय सबसे ज्यादा होता है हार्ट अटैक का खतरा? जानिए कारण

शरीर में खून की कमी होने पर आंखों में दिखते हैं ये लक्षण, जानिए समाधान

क्या बार-बार गरम ड्रिंक्स पीने से बढ़ सकता है कैंसर का खतरा? जानिए सच

लॉन्ग लाइफ और हेल्दी हार्ट के लिए रोज खाएं ये ड्राई फ्रूट, मिलेगा जबरदस्त फायदा

Hair Care: बालों और स्कैल्प के लिए कॉफी कितनी फायदेमंद है? जानें पूरे फायदे और नुकसान

Vastu for Toilet: वास्तु के अनुसार यदि नहीं है शौचालय तो राहु होगा सक्रिय

Winter Superfood: सर्दी का सुपरफूड: सरसों का साग और मक्के की रोटी, जानें 7 सेहत के फायदे

Kids Winter Care: सर्दी में कैसे रखें छोटे बच्चों का खयाल, जानें विंटर हेल्थ टिप्स

Winter Health: सर्दियों में रहना है हेल्दी तो अपने खाने में शामिल करें ये 17 चीजें और पाएं अनेक सेहत फायदे

Jhalkari Bai: जयंती विशेष: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को धूल चटाने वाली वीरांगना झलकारी बाई का इतिहास