इसे 'पावर योगा' न कहें

हठयोग आज का योग

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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जब समाधि आसानी से प्राप्त न हो तो हठयोग ही एक मात्र विकल्प बच जाता है। हठयोग में अभ्यास का बहुत महत्व है। कहते हैं कि समाधि के पीछे इस कदर पड़ जाओ की हर दिन वह नजदीक आती जाएँ। छोड़ना नहीं। हठयोग का अर्थ ही यह होता है कि पीछा नहीं छोड़ना। सतत और निरंतर लगे रहना।

सात हठ : षट्कर्मासनमुद्रा: प्रत्याहारश्च प्राणसंयाम:। ध्यानसमाधी सप्तैवांगनि स्युर्हठस्य योगस्य।।- षट्कर्म, आसन, मुद्रा, प्राणायम, प्रत्याहार, ध्यान और समाधि- ये हठयोग के सात अंग है।- हठयोगप्रदिपिका

हठयोगी का जोर आसन, बंध, मुद्रा और प्राणायम पर अधिक रहता है। उसे शरीर के निम्न भाग में स्थित मूलाधारचक्र के अंदर सोई हुई कुंडलिनी-शक्ति को जाग्रत कर, शेष पाँच चक्रों के मार्ग से सहस्रारचक्र में ले जाने की धुनी सवार रहती है।

धौति, वस्ति, नेति, त्राटक, नौली एवं कपालभात ि- ये छ: षट्‍कर्म के अंग है। हठयोग प्रदीपिका में 10 बंध-मुद्राओं का उल्लेख कर उनके अभ्यास पर जोर दिया गया है। ये हैं- महामुद्रा, महा बंध, महावेधश्च, खेचरी, उड्डीयान बंध, मूल बंध, जालंधर बंध, विपरीत करणी, वज्रोली, शक्ति चालन- ये दस मुद्राएँ जराकरण को नष्ट करने वाली एवं दिव्य ऐश्वर्यों को प्रदान करने वाली हैं। अर्थात 4 बंध और 6 मुद्राएँ हुईं।

हठयोग की शुरुआत : भगवान शिव को की हठयोग का प्रणेता माना जाता है। ऋग्वेद में जिन वृषभनाथ की चर्चा की गई है वह दिगम्बर हठयोगी ही तो थे। प्राचीन काल में मार्केंडेय ऋषि इस योग के साधक थे।

गुरु मत्स्येंद्रनाथ की तरह ही गोरखनाथ, चर्पटि, जलन्धर, कनेड़ी, चतुरंगी, विचारनाथ, आदिनाथ सम्प्रदाय के योगाचार्यों ने ही हठयोग में पारगत होकर संसार में इसका प्रचार-प्रसार किया। हठयोगी हाथ में चिमटा और सामने धूना रमाए रहते हैं। एकांत प्रिय, भ्रमणशील तथा शिव की भक्ति ही उन्हें प्रिय है।

हठयोग के ग्रंथ : गोरक्षशतक, गोरक्षसंहिता, सिद्धि-सिद्धांत पद्यति, सिद्धि-सिद्धांतसंग्रह, गोरक्षसिद्धांतसंग्रह, अमनस्क, योग-बीज, हठयोगप्रदीपिका, हठतत्वकौमुदी, घेरंडसंहिता, निरंजनपुराण इत्यादि बहुत से ग्रंथ आज भी मिलते हैं।

आधुनिक युग में हठयोग : हठयोग का अभ्यास कर आज का मानव सभी तरह के रोगों से निजात पा सकता है। इस योग का पालन करने से व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक शक्ति बढ़ जाती है, जिसके कारण उसका कार्य और व्यवहार और अच्छे से अमल में आता है। आधुनिक यु ग मे ं हठयो ग उनक े लि ए ह ै ज ो पूर्ण त: बदलन ा चाहत े ह ै स्वय ं को । आधुनि क यु ग मे ं इस े पाव र योग ा क े ना म स े जान ा जात ा है।

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