चमत्कारिक केवली प्राणायाम

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
मंगलवार, 5 अक्टूबर 2010 (18:24 IST)
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केवली प्राणायाम को कुम्भकों का राजा माना गया है। सभी प्राणायामों का अच्छे से अभ्यास होने से केवली प्राणायाम स्वत: ही घटित होने लगता है, लेकिन फिर भी साधक इसे साधना चाहे तो साध सकता है। इस केवली प्राणायाम को कुछ योगाचार्य प्लाविनी प्राणायाम भी कहते हैं। हालाँकि प्लाविनी प्राणायाम करने का और भी तरीका है।

विधि- स्वच्छ तथा उपयुक्त वातावरण में सिद्धासन में बैठ जाएँ। अब दोनों नाक के छिद्र से वायु को धीरे-धीरे अंदर खींचकर फेफड़े समेत पेट में पूर्ण रूप से भर लें। इसके बाद क्षमता अनुसार श्वास को रोककर रखें। फिर दोनों नासिका छिद्रों से धीरे-धीरे श्वास छोड़ें अर्थात वायु को बाहर निकालें। इस क्रिया को अपनी क्षमता अनुसार कितनी भी बार कर सकते हैं।

दूसरी विधि- रेचक और पूरक किए बिना ही सामान्य स्थिति में श्वास लेते हुए जिस अवस्था में हो, उसी अवस्था में श्वास को रोक दें। फिर चाहे श्वास अंदर जा रही हो या बाहर निकल रही हो। कुछ देर तक श्वासों को रोककर रखना ही केवली प्राणायाम है।

विशेषता- इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने के बाद फलरूप में जो प्राप्त होता है, वह है केवल कुम्भक। इस कुम्भक की विशेषता यह है कि यह कुम्भक अपने आप लग जाता है और काफी अधिक देर तक लगा रहता है। इसमें कब पूरक हुआ, कब रेचक हुआ, यह पता नहीं लगता। अपने आप कभी भी कुम्भक लग जाता है। उसका श्वास-प्रश्वास इतना अधिक लंबा और मंद हो जाता है कि यह भी पता नहीं रहता कि योगी कब श्वास-प्रश्वास लेता-छोड़ता है। इसके सिद्ध होने से ही योगी घंटों समाधि में बैठे रहते हैं। यह भूख-प्यास को रोक देता है।

इसके लाभ- यह प्राणायाम कब्ज की शिकायत दूर कर पाचनशक्ति को बढ़ाता है। इससे प्राणशक्ति शुद्ध होकर आयु बढ़ती है। यह मन को स्थिर व शांत रखने में भी सक्षम है। इससे स्मरण शक्ति का विकास होता है। इससे व्यक्ति भूख को कंट्रोल कर सकता है और तैराक पानी में घंटों बिना हाथ-पैर हिलाएँ रह सकता है।

इस प्राणायाम के सिद्ध होने से व्यक्ति में संकल्प और संयम जागृत हो जाता है। वह सभी इंद्रियों में संयम रखने वाला बन जाता है। ऐसे व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति होने लगती हैं। इसके माध्यम से सिद्धियाँ भी प्राप्त की जा सकती है।

सावधानी- इसका अभ्यास किसी योग शिक्षक के सानिध्य में ही करें।

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