जोश कायम रखे 'उड्‍डीयान बंध'

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उम्र के साथ व्यक्ति का पेट तो बढ़ता ही है त्वचा भी ढीली पड़ने लगती है। जिन नाड़ियों में रक्त दौड़ता है वे भी कमजोर होने लगती है, लेकिन उड्डीयान बंध से उम्र के बढ़ते असर को रोका जा सकता है। योग के बंध और क्रियाओं को करने से व्यक्ति सदा तरोताजा और युवा बना रह सकता है।

उड्‍डीयान का अर्थ होता है उड़ान। इस बंध के कारण आँख, कान, नाक और मुँह अर्थात सातों द्वार बंद हो जाते हैं और प्राण सुषुम्ना में प्रविष्ट होकर उड़ान भरने लगता है। दरअसल प्राण सुषुम्ना में ऊपर की ओर उठने लगता है इसीलिए इसे उड्डीयान बंध कहते हैं। उड्डीयान बंध को दो तरह से किया जा सकता है, खड़े होकर और बैठकर।

खड़े होकर : दोनों पाँवों के बीच अंतर रखते हुए, घुटनों को मोड़कर थोड़ा-सा आगे झुके। दोनों हाथों को जाँघों पर रखें और मुँह से बल पूर्वक हवा निकालकर नाभी को अंदर खींचकर सातों छीद्रों को बंद कर दें। यह उड्‍डीयान बंध है। अर्थात रेचक करके 20 से 30 सेंकंड तक बाह्य कुंभक करें।

बैठकर : सुखासन या पद्मासन में बैठकर हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखकर थोड़ा आगे झुके और पेट के स्नायुओं को अंदर खींचते हुए पूर्ण रेचक करें तथा बाह्म कुंभक करें और इसके पश्चात श्वास धीरे-धीरे अंदर लेते हुए पसलियों को ऊपर उठाएँ और पेट को ढीला छोड़ दें। इस अवस्था में पेट अंदर की ओर सिकुड़कर गोलाकार हो जाएगा।

दोनों ही तरह की विधि या क्रिया में पेट अंदर की ओर जाता है। इसके अभ्यास के माध्यम से ही नौली क्रिया की जा सकती है।

उड्डीयान के लाभ : इस बंध से पेट, पेडु और कमर की माँसपेशियाँ सक्रिय होकर शक्तिशाली बनती है। पेट और कमर की अतिरिक्त चर्बी घटती है। फेफड़ें और हृदय पर दबाव पड़ने से इनकी रक्त संचार प्रणालियाँ सुचारु रूप से चलने लगती है। इस बंध के नियमित अभ्यास से पेट और आँतों की सभी बीमारियाँ दूर होती है। इससे शरीर को एक अद्‍भुत कांति प्राप्त होती है।

मूलबंध और जालंधरबंध का एक साथ अभ्यास बन जाने पर उसी समय में अपनी लंबी जिह्वा को उलटकर कपालकुहर में प्रविष्ट कर वहाँ स्थिर रखें, तो उड्डियानबंध भी बन जाता है। इससे कान, आँख, मुख आदि के आवागमन के सातों रास्ते बंद हो जाते हैं। इस प्रकार सुषुम्ना में प्रविष्ट प्राय अंतराकाश में ही उड़ान भरने लगते हैं। इसी प्राण के उड़ान भरने के कारण इसका नाम उड्डियानबंध पड़ा है। इस बंध की महता सबसे अधिक प्रतिपादित की गई है, क्योंकि इस एक ही बंध से सात द्वार बंद हो जाते हैं।

1.क्या है बंध और मुद्रा
2.बंध को जानें
3.षट्‍कर्म अथवा शुद्धिकारक क्रियाएँ

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